कोरोना वायरस का भय: महामारी ने किस तरह किया लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित?
दुनिया में चल रही कोरोना वायरस महामारी अभी भी 'अदृश्य दुश्मन' की तरह लगातार रुक-रुक कर हमला कर रही है। इसके बदलते स्वरूप और गंभीरता के कारण अब लोगों के मन में एक ऐसा खतरनाक डर बैठ गया है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है। इसके कारण सामान्य व्यक्ति भी खुद को संक्रमित महसूस करने लगा है। इस लेख में जानेंगे कि कोरोना वायरस महामारी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित किया है?
मानसिक बीमारियों का शिकार है देश के 20 करोड़ लोग
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI) द्वारा प्रकाशित 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 19.73 करोड़ लोग विभिन्न मानसिक विकारों का शिकार हैं। इसी बीच महामारी की दूसरी लहर ने ऐसे लोगों की संख्या को चरम पर पहुंचा दिया है। कारण है कि 25 अप्रैल से 25 मई के बीच एक महीने में महामारी से 1,14,860 लोगों की मौत हो गई, जबकि पहली लहर में सात महीनों में 1,14,682 की मौत हुई थी।
महामारी के कारण लोगों में बढ़ा मौत का खौफ
बेंगलुरु में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS) के अनुसार कोरोना महामारी के कारण लोगों के दिमाग में सबसे बड़ा डर मौत का बैठा है। महामारी के दौरान सोशल मीडिया पर चली सामूहिक कब्रों और जलती हुई चिताओं की फोटो और वीडियो, अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन और दवाइयों की कमी से मरीजों की मौतों की खबरों ने मौत के डर को दिमाग पर हावी कर दिया है। ऐसे में लोग संक्रमित नहीं होकर भी सहमे हुए हैं।
दर्दनाक बना हुआ है पूरा माहौल- पारिख
दिल्ली में फोर्टिस हेल्थकेयर में मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान विभाग के निदेशक डॉ समीर पारिख ने इंडिया टुडे से कहा, "आज आपका पूरा वातावरण दर्दनाक है। यह लोगों के जिंदा रहने की चिंता का सबसे बुनियादी रूप है। लोगों में मौत का डर बैठ गया है।"
महामारी की दूसरी लहर में तेजी से बढ़ा मौत का डर
दूसरी लहर में लोगों में मौत का डर अधिक बढ़ा है। इंडियन जर्नल ऑफ साइकेट्री में प्रकाशित 'साइकोलॉजिकल इम्पैक्ट ऑफ कोविड -19 लॉकडाउन' शीर्षक से अप्रैल 2020 के अध्ययन में 21 प्रतिशत लोगों ने मौत का डर महसूस करने की बात कही थी, लेकिन अब 45 प्रतिशत से अधिक लोगों में यह स्थिति है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) मुंबई की डॉ चेतना दुग्गल ने कहा कि पहली लरह में प्रवासी मजदूरों में मौत का भय सबसे अधिक था।
महामारी के कारण लोगों के मन में बैठा परिवार को खोने का डर
लोगों में खुद की मौत के डर के साथ परिवार को खोने की चिंता भी बढ़ी है। दूसरी लहर में तेजी से हुई मौतों के कारण डर में इजाफा हुआ है। कई लोगों ने अपने पूरे परिवार को खो दिया और अब वह घर में अकेले रह गए हैं। ऐसे में वह मानसिक विकारों का शिकार हो गए हैं। इसी तरह लोग संक्रमित होने के बाद अपनों को बचाने को लेकर चिंतित हुए हैं और उन्होंने दूरी बना ली।
अनजाने डर के कारण होता है गंभीर मानसिक बीमारियों का खतरा- छाबड़िया
मुंबई में माइंड टेम्पल क्लिनिक की मनोचिकित्सक डॉ अंजलि छाबड़िया ने कहा कि परिवार को खोने के अनजाने डर के कारण कई गंभीर मानसिक बीमारियों के होने का खतरा रहता है। कुछ बीमारियों में लोगों को पता होता है कि उनकी मौत होगी, लेकिन कोरोना में ऐसा न होकर केवल संभावनाओं का डर रहता है। उन्होंने कहा कि कोरोना में मौत के बाद अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने देने के नियम ने भी लोगों को अधिक संवेदनशील बनाया है।
अपनों को खोने की आंशका से बढ़ रहे मानसिक विकार- विश्वनाथन
दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम्स के प्रोफेसर सुसान विश्वनाथन ने कहा कि कोरोना के कारण लोग पूर्वानुमान लगा रहे हैं। इससे उनमें अपनों को खोने का डर बढ़ रहा है और यही मानसिक विकार का कारण है।
कोरोना महामारी के कारण लोगों में बढ़ा अकेलेपन का डर
कोरोना संक्रमित लोगों को क्वारंटाइन अवधि में अपने घर की चार दीवारी में कैद होना पड़ता है। ऐसे में वह पूरी तरह से अकेले हो जाते हैं। इस अकेलेपन ने उन्हें मानसिक बीमारियों को ओर घसीटा है। लोग कोरोना संक्रमित हुए लोगों के अनुभवों को जानकर सही होते हुए भी अकेलापन महसूस करने लगे हैं। इसके बारे में सोचकर ही उनकी घबराहट बढ़ जाती है। इस अकेलेपन के फोबिया का सबसे अधिक असर युवा वर्ग में देखने को मिला है।
महामारी ने युवाओं में बढ़ाया असुरक्षित भविष्य का डर
महामारी के कारण सभी तहर की शिक्षण संस्थाएं बंद हो गई और नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाओं को स्थगित कर दिया। इससे युवाओं में भविष्य की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। डाटा अंतर्दृष्टि और सामुदायिक जुड़ाव संगठन के सह-संस्थापक निखिल तनेजा ने कहा कि महामारी में युवाओं में भविष्य की असुरक्षा को लेकर आत्महत्या करने के ख्याय बढ़े हैं। इसी तरह युवा उम्र निकलने के कारण खुद को नाकाम महसूस करने लगे हैं।
रोजगार को लेकर बढ़ा मानसिक तनाव
कोरोना महामारी के खिलाफ लागू किए गए लॉकडाउन से करोड़ों लोगों की नौकरी गई। ऐसे में अब लोगों में अपने भविष्य और रोजगार को लेकर भी मानसिक तनाव बढ़ाव है। आर्थिक मंदी के कारण लोगों को नए रोजगार नहीं मिल रहे हैं। कुछ लोगों की नौकरी कोरोना संक्रमित होने के बाद लंबी छुट्टी के कारण चली गई। ऐसे में लोग नौकरी बचाने के लिए संक्रमण से बचने का प्रयास कर रहे हैं और नौकरी की सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
कोरोना साबित हो रहा है बहुआयामी महामारी- सरीन
दिल्ली में सीताराम भरतिया इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च के मनोचिकित्सक डॉ आलोक सरीन ने भारत की वर्तमान स्थिति को न केवल एक वायरल महामारी बल्कि बहुआयामी महामारी के रूप में वर्णित किया है। उन्होंने कहा कि इनका मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ अर्थव्यवस्था, आजीविका और सामाजिक सामंजस्य पर बुरा प्रभाव पड़ा है। इसके कारण मौजूदा मानसिक विकारों में गंभीरता आई है और लोगों में इसके कई दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं।
कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद दुबारा संक्रमित होने का डर
कोरोना महामारी में संक्रमित हुए लोगों में ठीक होने के बाद दुबारा संक्रमित होने का डर भी बड़े स्तर पर बढ़ा है। अस्पताल में रहकर ममहामारी को मात देने वाले लोग घर पहुंचने के बाद दुबारा संक्रमित होने के डर से ग्रसित है। यही कारण है कि वह दिनभर अपना तापमान और ऑक्सीजन का स्तर मापते रहते हैं। हालात यह है कि तापमान बढ़ते ही वह खुद को संक्रमित मानने लगते हैं और इसका दिमाग पर बुरा असर पड़ता है।
अधिक डर के कारण प्रभावित हो रही सोचने-समझने की क्षमता- गुप्ता
मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स की निदेशक और न्यूरोलॉजिस्ट डॉ सोनिया लाल गुप्ता ने कहा कि उनके कुछ मरीजों में कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद न्यूरोलॉजिकल-मनोरोग संबंधी लक्षण सामने आए हैं। इन मरीजों में संक्रमण के बाद 'ब्रेन फॉग' की समस्या सामने आई है। उन्होंने बताया कि इसके कारण वह स्पष्ट रूप से सोचने और समझने में सक्षम नहीं हैं और उन्हें सोने में परेशानी के साथ लगातार सिरदर्द, चिड़चिड़ापन और थकान की शिकायत हो रही है।
स्टेरॉयड से भी बढ़ते हैं मानसिक विकार- NIMHANS
NIMHANS रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाले स्टेरॉयड के कारण लोगों में मनोरोग सिंड्रोम जैसी स्थिति पैदा होती है। मनोचिकित्सक डॉ विनोद कुमार ने कहा कि स्टेरॉयड के अधिक उपयोग से मानसिक बीमारियों के बढ़ने का खतरा अधिक रहता है।
महामारी का रूप ले रही मानसिक बीमारियां
कोरोना महामारी के कारण अब मानसिक बीमारियां भी महामारी का रूप ले रही है। यही कारण है कि NIMHANS द्वारा संचालित 24x7 टोल-फ्री हेल्पलाइन पर 29 मार्च, 2020 से अब तक 54,000 लोगों ने मदद के लिए कुल 4,48,400 से अधिक कॉल किए हैं। इसके बाद भी सरकार मानसिक बीमारियों को गंभीरता से नहीं ले रही है। हालात यह है कि देश में प्रत्येक चार लाख लोगों पर महज दो मनोचिकित्सक और एक मनोवैज्ञानिक की सुविधा उपल्बध है।
महामारी से मुकाबले के लिए मानसिक मजबूती है बेहद जरूरी
विशेषज्ञों की माने तो किसी भी परेशानी या महामारी से लड़ने के लिए मानसिक मजबूती बेहद जरूरी है। ऐसे में लोगों को मानसिक रूप से परेशानी होने पर तत्काल मनोचिकित्सक की मदद लेनी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग रूढिवादिता के कारण मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं। इससे परेशानियों में इजाफा होता है। ऐसे में सरकार को मानसिक मजबूती के लिए जारगरुकता अभियान चलाने चाहिए और लोगों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए विशेष पहल करनी चाहिए।
महामारी के दौर में मानसिक बीमारियों से बचने के लिए करें ये उपाय
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ गुप्ता ने बताया कि मानसिक बीमारियों से बचने के लिए लोगों को दैनिक दिनचर्या बनाए रखने के साथ पर्याप्त नींद लेने, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, योग और मेडिटेशन करना चाहिए। इसी तरह कोरोना महामारी संबंधित अपने डर को पहचानते हुए उसके बारे में अपने किसी मित्र या प्रियजन के साथ चर्चा करनी चाहिए। यह बातचीत और कार्य लोगों के मन से कोरोना महामारी के डर को दूर करने में मदद कर सकते हैं।