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शोध में हुआ ख़ुलासा, फिल्में करती हैं डिप्रेशन से दूर रहने में मदद

शोध में हुआ ख़ुलासा, फिल्में करती हैं डिप्रेशन से दूर रहने में मदद

Dec 31, 2018
03:16 pm

क्या है खबर?

आज के समय में ज़्यादातर लोग बीमारी की गिरफ़्त में हैं। कोई छोटी बीमारी से पीड़ित है तो कोई बड़ी बीमारी से पीड़ित है। आधुनिक युग में लोगों की जीवनशैली में तेज़ी से बदलाव हुआ है, इस वजह से लोग तनाव और डिप्रेशन (अवसाद) जैसी समस्या से जल्दी घिर जाते हैं। हाल ही में हुए एक अध्ययन में ख़ुलासा हुआ है कि सिनेमा, थिएटर और संग्रहालय जैसी सांस्कृतिक गतिविधियां डिप्रेशन से दूर रखती हैं।

जानकारी

दुनिया भर में 35 करोड़ लोग शिकार हैं डिप्रेशन के

दुःख, बुरा महसूस करना, काम में रुचि न लेना, जब ये लक्षण ज़्यादा समय तक रहकर लोगों को प्रभावित करते हैं तो इस स्थिति को डिप्रेशन कहते हैं। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लगभग 35 करोड़ लोग डिप्रेशन के शिकार हैं।

रिपोर्ट

ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ साइकियाट्री में प्रकाशित हुई अध्ययन की रिपोर्ट

दरअसल अध्ययन के अनुसार जो लोग दो-तीन महीने में फिल्में, नाटक या प्रदर्शनी देखते हैं, उनमें डिप्रेशन का जोखिम 32 प्रतिशत कम होता है। इसके अलावा जो लोग महीने में ये सब काम एक बार करते हैं, उनमें डिप्रेशन होने का ख़तरा 48 प्रतिशत तक कम रहता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें इस अध्ययन की रिपोर्ट ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ साइकियाट्री में प्रकाशित हुई है।

अध्ययन

मनोरंजन के लिए लोग जुड़ते हैं सांस्कृतिक गतिविधियों से

ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की वरिष्ठ रिसर्च एसोसिट डेजी फैनकोर्ट का कहना है कि लोग मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ते हैं। फैनकोर्ट ने आगे कहा कि आज लोगों के बीच इसके व्यापक फ़ायदों के बारे में जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है। इस अध्ययन के मुताबिक, इन सांस्कृतिक गतिविधियों की शक्ति सामाजिक संपर्क, रचनात्मकता, मानसिक उत्तेजना और सौम्य शारीरिक गतिविधि के संयोजन में निहित है, जो उन्हें प्रोत्साहित करती है।

सांस्कृतिक जुड़ाव

सांस्कृतिक जुड़ाव करता है मानसिक स्वास्थ्य की सक्रिय रूप से मदद

फैनकोर्ट का कहना है कि सांस्कृतिक जुड़ाव वह चीज़ है, जिसकी वजह से हम मानसिक स्वास्थ्य की सक्रिय रूप से मदद कर सकते हैं। सांस्कृतिक जुड़ाव से व्यक्ति की ऐसी हालत नहीं होती है, जिसकी वजह से उसे पेशेवर चिकित्सा की मदद लेनी पड़े। शोध से यह पता चला है कि बुज़ुर्गों में बेचैनी बढ़ने के लक्षण एमिलाइड बीटा स्तरों में वृद्धि से जुड़े हो सकते हैं, जो अल्ज़ाइमर बढ़ने का एक प्रमुख कारक है।