#NewsBytesExplainer: क्या है 9वीं अनुसूची, कैसे इससे बिहार का बढ़ा हुआ आरक्षण सुरक्षित हो सकता है?
क्या है खबर?
बिहार सरकार राज्य की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की सीमा 65 प्रतिशत करने के नए प्रावधान को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह करेगी।
सरकार का कहना है कि ऐसा करने से इस फैसले को कानूनी सुरक्षा मिलेगी और इसे किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
आइए जानते हैं कि कैसे संविधान की 9वीं अनुसूची बिहार के बढ़े हुए आरक्षण को सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
आरक्षण विधेयक
सबसे पहले जानें बिहार में आरक्षण में क्या बदलाव किया गया है
बिहार सरकार ने विधानसभा से कानून पारित कर राज्य में पिछड़े वर्गों को मिलने वाले आरक्षण को बढ़ा दिया है।
सरकार ने अनुसूचित जाति का आरक्षण 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति का आरक्षण एक प्रतिशत से बढ़ाकर 2 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ी जाति (EBC) का आरक्षण 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का आरक्षण 15 प्रतिशत से बढ़कर 18 प्रतिशत कर दिया है।
इससे बिहार में जातिगत आरक्षण 65 प्रतिशत हो गया है।
संविधान
क्या है संविधान की 9वीं अनुसूची?
भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों की एक सूची शामिल है, जिन्हें न्यायिक समीक्षा संरक्षण प्राप्त है, यानि इन्हें कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।
इस अनुसूची को संविधान के अनुच्छेद 31A और 31B के तहत ये संरक्षण मिला हुआ है।
इसे संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा जोड़ा गया था और तब इसमें कुल 13 कानून शामिल थे।
विभिन्न संशोधनों के बाद वर्तमान में संरक्षित कानूनों की संख्या 284 हो गई है।
जानकारी
बिहार सरकार आरक्षण कानून को 9वीं अनुसूची में शामिल कराना क्यों चाहती है?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के ऐतिहासिक 'इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ' फैसले में अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा तय की थी। हालांकि, इसके साथ ही उसने ये कहा था कि असाधारण परिस्थितियों में इस सीमा को पार किया जा सकता है। ऐसे में बिहार के 65 आरक्षण को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, जिसके बाद कोर्ट ये देखेगा कि आखिर किन "असाधारण परिस्थितियों" के कारण आरक्षण बढ़ाया गया। बिहार सरकार इसी समीक्षा से बचना चाहती है।
चुनौती
9वीं अनुसूची पर क्या कहते हैं कोर्ट के फैसले?
1973 के केशवानंद भारती मामले से लेकर 2007 के कोएल्हो बनाम तमिलनाडु सरकार मामले तक, सुप्रीम कोर्ट अपने कई फैसलों में कह चुकी है कि वो ऐसे किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकती है, जो 'संविधान की मूल संरचना' का उल्लंघन करता हो।
9वीं अनुसूची में आने वाले कानून भी इससे अछूते नहीं हैं, लेकिन इन्हें असंवैधानिक घोषित करना कोर्ट के लिए बहुत मुश्किल होता है और ये कानूनी समीक्षा से लगभग सुरक्षित हो जाते हैं।
Facts
क्या किसी राज्य के आरक्षण को 9वीं अनुसूची के तहत संरक्षण मिला हुआ है?
एक बात जो बिहार सरकार को भरोसा देती है कि 9वीं अनुसूची में डाले जाने के बाद उसका आरक्षण सुरक्षित हो जाएगा, वो ये कि तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करने वाला कानून भी इस अनुसूची में शामिल है।
1993 में बने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, लेकिन जटिलताओं के कारण कोर्ट ने अब तक फैसला नहीं सुनाया है।
छत्तीसगढ़ और झारखंड की सरकारों ने भी केंद्र से ऐसा ही अनुरोध किया है।
न्यूजबाइट्स प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को पार करने के कारण कोर्ट अब तक कई राज्यों के आरक्षण कानूनों को रद्द कर चुकी हैं।
इसका सबसे चर्चित मामला मराठा आरक्षण का है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 16 प्रतिशत मराठा आरक्षण को ये कहते हुए रद्द कर दिया था कि राज्य में 50 प्रतिशत सीमा से अधिक आरक्षण करने के लिए कोई "असाधारण परिस्थितियां" नहीं हैं।
छत्तीसगढ़, उड़ीसा और राजस्थान की हाई कोर्ट भी ऐसे कानूनों को रद्द कर चुकी हैं।