#NewsBytesExplainer: क्या होते हैं ग्रीन पटाखे, जिन्हें जलाने से कम मात्रा में होता है प्रदूषण?
क्या है खबर?
दिल्ली और आसपास के इलाके इन दिनों वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं।
हाल ही में दिल्ली समेत देश के अन्य राज्यों में दिवाली पर पटाखे जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की है।
इसे देखते हुए दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में पटाखों पर प्रतिबंध है, जबकि देशभर में ग्रीन पटाखे बेचने और जलाने की अनुमति दी है।
आइए जानते हैं कि ये ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों से कैसे अलग हैं।
ग्रीन
ग्रीन पटाखों की किसने की खोज?
राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) ने ग्रीन पटाखों की खोज की है, जिन्हें चलाने से कम प्रदूषण होता है। NEERI एक सरकारी संस्थान है, जो वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CISR) के अधीन आता है।
इस संस्थान के शोध का लक्ष्य पटाखे जलाने से निकलने वाली हानिकारक गैसों की मात्रा को कम करना था। यहां के वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे फॉर्मूले बनाए हैं, जिनसे बने पटाखे जलाने पर वातावरण में कम हानिकारक गैस घुलती है।
ग्रीन पटाखे
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे?
ग्रीन पटाखे दिखने, चलाने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इन्हें बनाने में पारंपरिक पटाखों से अलग फॉर्मूले का प्रयोग किया जाता है।
इन पटाखों को जलाने पर 40 से 50 प्रतिशत तक कम हानिकारक गैस पैदा होती हैं, जो पर्यावरण के लिए ज्यादा सुरक्षित है।
NEERI के वैज्ञानिकों का कहना है कि पारंपरिक पटाखे बनाने बेरियम का इस्तेमाल होता है। इसकी वजह से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर जैसी हानिकारक गैसें निकलती है।
रिपोर्ट
कितने प्रकार के होते हैं ग्रीन पटाखे?
BBC के अनुसार, NEERI की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ साधना रायलू ने बताया कि उनके संस्थान ने ग्रीन पटाखों के लिए ऐसे फॉर्मूले तैयार किए हैं, जिनके जलने के बाद पानी बनेगा और हानिकारक गैसों में घुल जाएगा।
उन्होंने बताया कि NEERI ने 4 फॉर्मूलों से ग्रीन पटाखे बनाए हैं। इनमें पानी बनने वाले पटाखे, कम हानिकारक गैस उत्सर्जित करने वाले पटाखे, न्यून एल्यूनियम वाले पटाखे और जलने के बाद खुशबू फैलाने वाले पटाखे शामिल हैं।
खासियत
कैसे काम करते हैं ग्रीन पटाखे?
NEERI ने अनुसार, पहले फॉर्मूले से बने ग्रीन पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फर और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे। पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है।
इन पटाखों को 'सेफ वाटर रिलीजर' नाम दिया गया है।
दूसरे फॉर्मूले बने पटाखों को 'स्टार क्रैकर' नाम दिया है। इनमें ऑक्सीकारक एजेंट का प्रयोग होता है, जिससे जलने के बाद सल्फर और नाइट्रोजन जैसी हानिकारक गैस कम मात्रा में पैदा होती है।
पटाखे
ग्रीन पटाखों की और क्या है खासियत?
NEERI के वैज्ञानिकों के अनुसार, तीसरी फॉर्मूले से बने पटाखों में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 प्रतिशत तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है।
इन पटाखों को 'सेफ मिनिमल एल्यूमीनियम' नाम दिया गया है, जिनमें एल्यूमिनियम के स्थान पर मैग्नीशियम का इस्तेमाल किया जाता है।
इसी तरह चौथे फॉमूले से बने पटाखों को 'अरोमा क्रैकर्स' नाम दिया गया है। इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ हानिकारक गैसें कम पैदा होगी बल्कि ये खुशबू भी बिखेरेंगे।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बेरियम वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बाद 2019 से कोर्ट ने दिवाली के मौके पर ग्रीन पटाखे को जलाने की अनुमति दी है।
इस साल महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, तमिलनाडु की राज्य सरकारों ने दिवाली पर केवल ग्रीन पटाखे जलाने के आदेश जारी किए हैं।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए दिल्ली से सटे नोएडा और गाजियाबाद में पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगाया है।