#NewsBytesExplainer: सीरिया में तख्तापलट का भारत पर क्या होगा असर, कैसे हैं दोनों देशों के संबंध?
सीरिया में तख्तापलट के बाद राष्ट्रपति बशर अल-असद को देश छोड़कर जाना पड़ा है। उनके शासन का अंत होने पर लोग खुशियां मना रहे हैं। हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के नेतृत्व में कई विद्रोही गुटों ने राजधानी दमिश्क समेत देश के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है। इस घटनाक्रम पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजरें हैं। सीरिया के साथ भारत के संबंध दशकों पुराने हैं। आइए जानते हैं इस घटनाक्रम का भारत पर क्या असर हो सकता है।
घटनाक्रम को किस तरह से देख रहा है भारत?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत HTS के अगले कदमों के बारे में बहुत सतर्क है। विदेश मंत्रालय के एक जानकार ने कहा, "गद्दाफी के पतन के बाद लीबिया में अरब स्प्रिंग कैसे अराजकता में बदल गया। कैसे मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड ने नियंत्रण कर लिया। इसलिए भारत में इस बात को लेकर सावधानी है कि असद के बाद सीरिया में यह कैसे चलेगा।" विदेश मंत्रालय ने भी कहा है कि सीरिया के हालात पर भारत की नजर है।
भारत-सीरिया संबंधों का इतिहास क्या है?
भारत-सीरिया के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध रहे हैं। 1957 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सीरिया जाकर द्विपक्षीय दौरों की शुरुआत की थी। नेहरू ने 1960 में दोबारा सीरिया का दौरा किया था। 1978 और 1983 में तत्कालीन सीरियाई राष्ट्रपति हाफिज अल-असद भारत आए थे। 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सीरिया का दौरा किया था। 2008 में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद भारत आए। 2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल भी सीरिया गई थीं।
आर्थिक मोर्चे पर कितने मजबूत हैं संबंध?
भारत ने सीरिया में बिजली संयंत्र के लिए 24 करोड़ डॉलर की ऋण सहायता, इस्पात संयंत्र आधुनिकीकरण, IT और उर्वरक क्षेत्र में निवेश शामिल है। भारत सीरिया को कपड़े, मशीनरी और दवाइयां निर्यात करता है तो वहां से रॉक फॉस्फेट और कपास का आयात करता है। भारत ने सीरिया के तेल क्षेत्र में 2 महत्वपूर्ण निवेश किए हैं। भारत की ONGC ने सीरिया में तेल और प्राकृतिक गैस की खोज के लिए IPR के साथ समझौता किया है।
कश्मीर पर भारत का सहयोगी रहा है सीरियाे
कश्मीर के मामले में सीरिया भारत का समर्थक रहा है। 2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया तो कई मुस्लिम देशों ने पाकिस्तान का साथ दिया, लेकिन सीरिया ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया। भारत भी ऐतिहासिक तौर पर इजरायल द्वारा कब्जा किए गए गोलान हाइट्स पर सीरिया के दावे का समर्थन करता रहा है। भारत ने कई बार सीरिया के नेतृत्व में संघर्ष के समाधान का समर्थन किया है।
भारत के सामने क्या हैं चुनौतियां?
आशंका जताई जा रही है कि सीरिया में अब ISIS समेत अन्य चरमपंथी समूहों दोबारा अपना सिर उठा सकते हैं। इसके अलावा विद्रोही गुटों को तुर्की का समर्थन हासिल है। माना जा रहा है कि सीरिया के नए शासन में तुर्की का प्रभाव देखने को मिलेगा। पिछले कुछ सालों तक भारत-तुर्की के संबंध इतने अच्छे नहीं रहे हैं, लेकिन अच्छी बात है कि अब इनमें सुधार देखा जा रहा है।
भारत पर क्या होगा असर?
पश्चिम एशिया मामलों के जानकार डॉक्टर अशुतोष सिंह ने BBC से कहा, "भारत हमेशा गुटनिरपेक्ष आंदोलन और उपनिवेशी इतिहास के कारण पश्चिम एशिया के अधिकांश देशों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखता है। सीरिया का घटनाक्रम भारत को कई तरह से प्रभावित कर सकता है। इसके दूरगामी प्रभाव होंगे। आप जो सीरिया में कदम उठाएंगे, उनसे आपके ईरान के साथ रिश्ते प्रभावित होंगे। फिर ये इजराइल के साथ आपके रिश्ते प्रभावित करेगा।"