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    सुप्रीम कोर्ट का चुनावी बॉन्‍ड की बिक्री पर रोक लगाने से इनकार

    सुप्रीम कोर्ट का चुनावी बॉन्‍ड की बिक्री पर रोक लगाने से इनकार
    लेखन भारत शर्मा
    Mar 26, 2021, 01:49 pm 1 मिनट में पढ़ें
    सुप्रीम कोर्ट का चुनावी बॉन्‍ड की बिक्री पर रोक लगाने से इनकार

    सुप्रीम कोर्ट में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और आगामी 1 अप्रैल से नए चुनावी बॉन्ड की बिक्री की अनुमति दे दी। बता दें कि इस मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था और फैसले के लिए 26 मार्च का दिन निर्धारित किया था।

    क्या होते हैं चुनावी बॉन्ड?

    केंद्र सरकार ने वित्त विधेयक 2017 में चुनावी बॉन्ड शुरू करने का ऐलान किया था। इन्हें भारतीय स्टेट बैंक (SBI) जारी करता है और ये ब्याज मुक्त होते हैं। चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों को 15 दिन के अंदर उन्हें अपनी मनपसंद राजनीतिक पार्टी को चंदे के तौर पर देना होता है। राजनीतिक पार्टी अपने सत्यापित खाते में उन्हें प्राप्त चुनावी बॉन्ड्स को कैश करा सकती है। पारदर्शिता को लेकर शुरुआत से चुनावी बॉन्ड्स पर विवाद होता रहा है।

    ADR ने बिक्री पर रोक के लिए दाखिल की थी याचिका

    NDTV के अनुसार चुनावी और राजनीतिक सुधारों के क्षेत्र में काम करने वाली एक गैर-सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने गत दिनों सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए 1 अप्रैल और 10 अप्रैल के बीच निर्धारित किए गए चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी। इसमें ADR ने कहा था कि यह बॉन्ड एक तरह का दुरूपयोग है। शेल कंपनियां इसका उपयोग कालेधन को सफेद बनाने में करती है।

    सिर्फ सरकार के पास होती है बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी

    ADR ने याचिका में कहा था कि चुनावी बॉन्ड कौन खरीद रहा है। इसी जानकारी सिर्फ सरकार को होती है। यहां तक कि चुनाव आयोग भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं ले सकता है। बॉन्ड एक तरह कि करेंसी है और सात हजार करोड़ से ज्यादा बॉन्ड खरीदें जा चुके हैं। याचिका में आगे कहा गया कि बॉन्ड सत्ता में बैठे राजनीतिक दल को रिश्वत देने का एक तरीका है। इसमें चुनाव में फर्जीवाड़े कि बड़ी आशंका रहती है।

    चुनावी बॉन्ड से हो रही सरकार की छवि खराब

    ADR ने कहा यह भी कहा था कि सरकार एक तरफ कालेधन को खत्म करने कि बात कर रही है और दूसरी तरफ इस तरह की व्यवस्था लाकर कालेधन को खपा रही है। इस व्यवस्था से लोगों में सरकार कि छवि खराब हो रही है।

    बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने का नहीं है कोई औचित्य- सुप्रीम कोर्ट

    मामले में फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रह्मणियन की पीठ ने कहा, "चूंकि चुनावी बॉन्ड को 2018 और 2019 में बिना किसी रुकावट के जारी करने की अनुमति दी गई थी और इसके लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं। ऐसे में चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं है।" इसी तरह चुनाव आयोग ने भी इसका समर्थन किया है। ऐसे में आगामी 1 अप्रैल से इनकी बिक्री की जा सकती है।

    कोर्ट ने पूछी थी चुनावी बॉन्‍ड पर किसी भी प्रकार के नियंत्रण की बात

    बता दें पिछले सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्‍ड के जरिये लिए जाने वाले फंड का आतंकवाद जैसे गलत कार्यो में दुरुपयोग होने की आशंका को लेकर सवाल पूछा था। सुप्रीम कोर्ट ने जानना चाहा था कि क्या इस फंड का उपयोग किए जाने पर सरकार का कोई नियंत्रण है? इसके बाद मामले में सरकार ने जवाब दिया था कि चुनावी बॉन्ड प्रक्रिया पर सरकार की ओर से पूरी निगरानी रखी जाती है।

    चुनावी बॉन्ड को लेकर चुनाव आयोग ने दी थी यह दलील

    सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा था कि वह चुनावी बॉन्ड योजना का समर्थन करते हैं क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो राजनीतिक दलों को चंदा कैश में मिलेगा। हालांकि, आयोग ने कहा कि वह इस प्रक्रिया में पारदर्शिता भी चाहता है।

    चुनावी बॉन्ड में संभव नहीं है भ्रष्टाचार- अटॉर्नी जनरल

    सुप्रीम कोर्ट में जवाब देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड को को सिर्फ राजनीतिक दल ही भुना सकते हैं यानी वही इन बॉन्ड को कैश में परिवर्तित करा सकते हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि इसमें सरकार कि क्या भूमिका है। अटॉर्नी ने कहा कि इसमें कोई भ्रष्टाचार नहीं है। यह पूरी तरह गलत है। यह चुनाव प्रक्रिया में बहुत ही अहम सुधार है जो पैसे के दुरुपयोग को रोकने के लिए जरूरी था।

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