#NewsBytesExplainer: असम में परिसीमन के मसौदे में क्या-क्या है और इसका विरोध क्यों हो रहा है?
चुनाव आयोग ने 20 जून को असम में परिसीमन का मसौदा जारी किया था। इसमें राज्य की कई लोकसभा और विधानसभा सीटों की सीमाओं में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है। आयोग ने 11 जुलाई तक इस पर सुझाव और आपत्तियां मांगी हैं। इस मसौदे में सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया है, इसके बावजूद विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं। आइए इस मसौदे की बड़ी बातें और इसके विरोध की वजह समझते हैं।
सबसे पहले जानिए परिसीमन क्या होता है
परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य समय के साथ जनसंख्या में बदलाव को देखते हुए लोकसभा और विधानसभा की सीटों की सीमाओं को निर्धारित करना है, ताकि समान जनसंख्या वाले क्षेत्र का लोकसभा और विधानसभा में समान प्रतिनिधित्व हो और किसी एक राजनीतिक पार्टी को फायदा न हो। आमतौर पर ये काम पिछली जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर किया जाता है। देशभर में आखिरी बार साल 2008 में परिसीमन किया गया था।
असम में क्यों किया जा रहा है परिसीमन?
जब 2008 में देश के बाकी हिस्सों में परिसीमन का काम किया गया था, तब सुरक्षा कारणों की वजह से असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड में इस काम को नहीं किया जा सका था। इसके बाद केंद्र सरकार ने 6 मार्च, 2020 को इन 4 उत्तर-पूर्वी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग का पुनर्गठन किया था। दिसंबर, 2022 में चुनाव आयोग ने परिसमीन प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की थी।
असम परिसीमन मसौदे की बड़ी बातें
मसौदे के मुताबिक, अनुसूचित जाति (SC) की सीटें 8 से बढ़ाकर 9 और अनुसूचित जनजाति (ST) की सीटें 16 से बढ़ाकर 19 की जानी है। पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले में 1 और बोडो प्रादेशिक क्षेत्र में 3 सीटें बढ़ाना प्रस्तावित है। कलियाबोर लोकसभा सीट का नाम काजीरंगा किया जाए। लखीमपुर संसदीय सीट को अनारक्षित रखा जाए। बराक घाटी जिलों के लिए 2 लोकसभा सीट प्रस्तावित की गई हैं। धेमाजी जिले में एक अनारक्षित विधानसभा सीट होगी।
मसौदे का विरोध क्यों हो रहा है?
विपक्षी पार्टियों का मुख्य आरोप है कि ये परिसीमन जानबूझकर 2001 की जनगणना के आधार पर किया जा रहा है। कांग्रेस से विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने कहा, "असम में परिसीमन समय की आवश्यकता थी, लेकिन 2001 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करने का कोई मतलब नहीं है। जम्मू-कश्मीर में अभी जो परिसीमन प्रक्रिया पूरी की गई है, उसका आधार भी 2011 की जनगणना थी, फिर असम के लिए 2001 क्यों?"
मसौदे में मुस्लिम प्रतिनिधित्व को लेकर भी विवाद
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) और कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों का कहना है कि ये कदम मुस्लिम प्रतिनिधित्व को कम करने का राजनीतिक एजेंडा है। AIUDF का कहना है कि इस मसौदे के लागू होने से मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों की संख्या 29 से घटकर 22 हो जाएगी। एक ट्वीट में AIUDF के विधायक करीमुद्दीन बरभुया ने कहा, "चुनाव आयोग ने परिसीमन का मसौदा ऐसे तैयार किया है, जिससे विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व को कम किया जा सके।'
क्या परिसीमन से मुस्लिम प्रतिनिधित्व कम होगा?
BBC से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठनाथ गोस्वामी ने कहा, "राज्य में SC के लिए 8 और ST के लिए 16 सीटें हैं। मुसलमान बहुल सीटों को आरक्षित सीटों के साथ मिलाने की कोशिश होगी। लिहाजा नए परिसीमन से 110 विधानसभा सीटें ऐसी निकल कर आएंगी, जिन पर केवल हिंदू उम्मीदवार जीत पाएंगे। भाजपा का यह मुख्य मकसद है। भाजपा यहां हमेशा 100 प्लस सीटें जीतने की जो बातें करती रही है, उसका संबंध इस नए परिसीमन से है।"
आरोपों पर भाजपा का क्या कहना है?
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का कहना है कि राज्य में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन में कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा, "प्रस्ताव का विरोध केवल उन लोगों द्वारा किया गया है, जो प्रक्रिया को नहीं समझते हैं या जिन्हें चुनावी हार नजर आ रही है। हम एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं, जहां निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण सभी की भलाई को ध्यान में रखकर किया जाता है। आरक्षण एक विशिष्ट समुदाय की जनसंख्या के आधार पर किया जाता है।"