चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर आमने-सामने है सुप्रीम कोर्ट और सरकार, जानिए क्या है मामला
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट और सरकार आमने-सामने आ गए हैं। कोर्ट ने गुरुवार को चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल देखकर उस पर सवाल खड़े किए और केंद्र सरकार से पूछा कि आखिर गोयल की नियुक्ति में बिजली की गति क्यों दिखाई और सरकार ने इस प्रक्रिया को इतनी तेजी से पूरा क्यों किया? इस पर सरकार ने नियमानुसार नियुक्ति करना बताकर कोर्ट को अपनी सीमा याद दिलाई।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सुधार की मांग वाली याचिकाओं पर चल रही सुनवाई
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सुधार की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई है। कोर्ट 18 नवंबर से उन पर सुनवाई कर रहा है। बुधवार को हुई सुनवाई में अधिवक्ता प्रशांत भूषण चुनाव आयुक्त गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि सरकार ने गोयल को समय से पहले सेवानिवृत्ति देकर 24 घंटे में ही चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया। इस पर कोर्ट ने सरकार से उनकी नियुक्ति से जुड़ी फाइलें मांगी थी।
AG ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी नियुक्ति की फाइलें
अटार्नी जनरल (AG) आर वेंकटरमणि ने गुरुवार को गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइलें सुप्रीम कोर्ट को सौंपते हुए पूरी प्रक्रिया की जानकारी दी। इस दौरान उन्होंने कहा कि विधि और न्याय मंत्रालय ही चुनाव आयुक्त के लिए संभावित उम्मीदवारों की सूची तैयार करता है और फिर उनमें से सबसे उपयुक्त का चुनाव किया जाता है। इसमें प्रधानमंत्री की भी भूमिका होती है। इस पर कोर्ट ने नियुुक्ति की फाइलों पर नजर डालना शुरू कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछे तीखे सवाल
गोयल की नियुक्ति की फाइलें देखेने के बाद जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, "चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में इतनी जल्दबाजी क्यों? इतनी सुपरफास्ट नियुक्ति क्यों? 18 नवंबर को हम मामले की सुनवाई करते हैं। उसी दिन आप फाइल पेश कर आगे बढ़ा देते हैं, उसी दिन प्रधानमंत्री उनके नाम की सिफारिश करते हैं। इस जल्दबाजी का कारण क्या है?" पीठ ने कहा कि गोयल की तेजी से नियुक्ति का कारण स्पष्ट नहीं है।
जस्टिस अजय रस्तोगी ने भी पूछे तीखे सवाल
संविधान पीठ में शामिल जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा, "यह नियुक्ति छह महीने के लिए की जानी थी। फिर जब इस मामले की सुनवाई अदालत ने शुरू की तो सरकार ने अचानक नियुक्ति क्यों की? बिजली की गति से नियुक्ति क्यों?" उन्होंने इतनी तेज रफ्तार से फाइल आगे बढ़ने और नियुक्ति हो जाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि महज 24 घंटे में ही सब कुछ हो गया। इस आपाधापी में सरकार ने कैसे उपयुक्त की जांच पड़ताल की?
गोयल की नियुक्ति में सरकार की प्रक्रिया से हैं चिंतित- सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस जोसेफ ने कहा, "विधि और न्याय मंत्रालय ने चार नामों का चयन किस आधार किया? उन चार में से सही का चुनाव कैसे किया गया? हम सरकार द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया से अधिक चिंतित हैं।" उन्होंने कहा, "चयन प्रक्रिया का क्या मापदंड है, जिसका पालन किया गया। अगर इसे ध्यान से चुना गया है तो यह यस मैन की बात होगी। आपको निष्पक्ष रूप से बताना चाहिए कि उन्हें कैसे चुना। इस पद के लिए स्वतंत्रता की आवश्यकता है।"
AG ने क्या दिया जवाब?
संविधान पीठ के सवालों पर AG वेंकटरमणि ने कहा कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा तैयार डाटाबेस के आधार पर चार नामों का चयन किया गया था। डाटाबेस के आधार पर किए गए चुनाव को यस मैन के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने की नियुक्ति प्रक्रिया पर टिप्पणी
AG वेंकटरमणि ने कहा कि यदि कोर्ट प्रत्येक कदम पर संदेह करेगी तो संस्था की अखंडता और स्वतंत्रता और सार्वजनिक धारणा पर प्रभाव पड़ेगा। इस पर जस्टिस जोसफ ने कहा कि सरकार उन्हीं को निर्वाचन आयुक्त बनाने के लिए चुनती हैंं, जो सेवानिवृत्ति के करीब हों और अपना छह साल का कार्यकाल पूरा न कर पाएं। क्या यह तार्किक प्रक्रिया है? आपको खुलेआम बता रहे हैं कि आप नियुक्ति प्रक्रिया की धारा छह का उल्लंघन करते हैं।
क्या प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है चुनाव आयुक्त?
मंगलवार को हुई सुनवाई में संविधान पीठ ने पूछा कि क्या चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई प्रक्रिया है। इस पर AG वेंकटरमणि ने कहा था कि नियुक्ति परंपरा के आधार पर होती है। इस पर पीठ ने कहा कि बिना प्रक्रिया के तो सरकार अपनी जी हुजूरी करने वालों को ही CEC नियुक्त करती होगी। ऐसे में वह कैसे सरकार के खिलाफ काम कर सकता है। क्या कोई चुनाव आयुक्त प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।
1990 से ही उठ रही चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सुधार की मांग
संविधान पीठ ने कहा था कि हर सरकार जी हुजूरी करने वाले को ही चुनाव आयुक्त नियुक्त करती है। इससे सरकार को मनचाहा अधिकारी मिल जाता है और अधिकारी को नौकरी की सुरक्षा। पीठ ने कहा कि 1990 के बाद से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति मे सुधार की मांग उठ रही है। वर्तमान में जो हालात बने हुए हैं, वो लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी है। हालांकि, उन्हें पता है कि इस मामले में उन्हें सरकार का विरोध झेलना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था टीएन शेषन का उदाहरण
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को याद करते हुए कहा कि इतिहास में शेषन ही ऐसे शख्स रहें हैं, जिन्होंने कुछ सुधार के प्रयास किए। आज के दौर में भी चुनाव आयुक्त के तौर पर शेषन जैसे अधिकारियों की जरूरत है।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को याद दिलाई उसकी सीमा
सुप्रीम कोर्ट के सवालों के बाद सरकार ने स्पष्ट किया कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में न्यायपालिका की भूमिका नहीं हो सकती। ऐसे में उसे इन मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। इसी तरह सरकार ने कोर्ट की ओर से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता में कमेटी गठित किए जाने के सुझाव पर भी सवाल उठाया है। सरकार ने कहा कि यह कदम न्यायपालिका के गैर-जरूरी कदम और शक्तियों के बंटवारे का उल्लंघन होगा।