देश में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर क्या है प्रक्रिया?
क्या है खबर?
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने-सामने है।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल पर सवाल खड़े करते हुए केंद्र सरकार से पूछा कि आखिर उनकी नियुक्ति में बिजली की गति क्यों दिखाई गई? सरकार ने इस प्रक्रिया को इतनी तेजी से पूरा क्यों किया?
इस बीच आइये जानने की कोशिश करते हैं कि चुनाव आयुक्तों की भर्ती का नियम क्या है।
नियम
छह साल के लिए होती है नियुक्ति
मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति छह वर्ष या 65 साल की उम्र, जो भी पहले हो, तक होती है। चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर वेतन और सुविधाएं मिलती हैं।
चुनाव आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है और उसे अपनी शक्तियां संविधान से मिलती हैं। संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग को चुनावों की निगरानी, निर्देश और नियंत्रण की शक्तियां दी गई हैं।
जानकारी
चुनाव आयोग में कितने सदस्य हो सकते हैं?
संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों को लेकर कुछ साफ नहीं कहा गया है। अनुच्छेद 324 (2) कहता है कि आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और समय-समय पर राष्ट्रपति की तरफ से नामित किए गए चुनाव आयुक्त होंगे।
आकार
पहले होते थे सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त
शुरुआत से चुनाव आयोग में केवल मुख्य चुनाव आयुक्त का ही एकमात्र पद होता था। आगे चलकर 16 अक्टूबर, 1989 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने दो चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिए।
नौवें आम चुनाव से पहले हुई इन नियुक्तियों पर खूब विवाद हुआ था और इसे तत्कालीन CEC आरवीएस पेरी शास्त्री की स्वतंत्रता को कम करने की कोशिश बताया गया था।
अगले ही साल तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने चुनाव आयुक्तों के पद खत्म कर दिए।
जानकारी
1993 में अध्यादेश लाकर की गई दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति
तीन साल बाद 1993 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने अध्यादेश लाकर फिर से दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर दी। उसके बाद से ही चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों समेत तीन सदस्य होते हैं।
प्रक्रिया
कैसे नियुक्त होते हैं चुनाव आयुक्त?
बुधवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सचिव के पदों पर काम कर रहे और सेवानिवृत हुए अधिकारियों की सूची तैयार की जाती है। फिर नामों का पैनल बनाकर प्रधानमंत्री की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। इस पर विचार के बाद प्रधानमंत्री एक नाम राष्ट्रपति के पास भेजते हैं।
वहीं चुनाव आयुक्तों में से सबसे वरिष्ठ को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया जाता है।
सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में चल रही है सुनवाई
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सुधार की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई है। कोर्ट 18 नवंबर से उन पर सुनवाई कर रहा है।
बुधवार को हुई सुनवाई में अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने चुनाव आयुक्त गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाया था।
उन्होंने कहा कि सरकार ने गोयल को समय से पहले सेवानिवृत्ति देकर 24 घंटे में ही चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया। इस पर कोर्ट ने सरकार से उनकी नियुक्ति से जुड़ी फाइलें मांगी थी।
सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछे तीखे सवाल
गोयल की नियुक्ति की फाइलें देखने के बाद जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, "चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में इतनी जल्दबाजी क्यों? इतनी सुपरफास्ट नियुक्ति क्यों? 18 नवंबर को हम मामले की सुनवाई करते हैं। उसी दिन आप फाइल पेश कर आगे बढ़ा देते हैं, उसी दिन प्रधानमंत्री उनके नाम की सिफारिश करते हैं। इस जल्दबाजी का कारण क्या है?"
पीठ ने कहा कि गोयल की तेजी से नियुक्ति का कारण स्पष्ट नहीं है।
जवाब
सरकार ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के सवालों के बाद सरकार ने स्पष्ट किया कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में न्यायपालिका की भूमिका नहीं हो सकती। ऐसे में उसे इन मामलों में दखल नहीं देना चाहिए।
इसी तरह केंद्र सरकार ने कोर्ट की ओर से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी गठित किए जाने के सुझाव पर भी सवाल उठाया है।
सरकार ने कहा कि यह कदम न्यायपालिका के गैर-जरूरी कदम और शक्तियों के बंटवारे का उल्लंघन होगा।