#NewsBytesExplainer: जीतनराम मांझी के भाजपा से हाथ मिलाने की अटकलें क्यों लगाई जा रही हैं?
क्या है खबर?
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के प्रमुख जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन ने मंगलवार को नीतीश कुमार की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद से ही HAM के महागठबंधन से नाता तोड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। मांझी ने 18 जून को पटना में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है। इसमें वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ जाने का ऐलान कर सकते हैं।
आइए समझते हैं नीतीश और मांझी के बीच दूरी क्यों आई।
दूरी
नीतीश और मांझी में क्यों आई दूरी?
माना जाता है कि मांझी का महागठबंधन से मोहभंग किसी एक घटना की वजह से नहीं हुआ है।
इससे पहले NDA सरकार में संतोष के पास 2 मंत्रालयों का कार्यभार था। बाद में संतोष से लघु जल संसाधन मंत्रालय छीन लिया गया था।
शराबबंदी को लेकर भी मांझी नीतीश के खिलाफ मुखर रहे हैं। वे कह चुके हैं कि पुलिस सिर्फ गरीबों और कमजोरों को ही पकड़ती है और शराबबंदी की समीक्षा होनी चाहिए।
सीट
लोकसभा सीटों पर फंसा पेंच
नीतीश और मांझी के बीच लोकसभा सीटों पर भी सहमति नहीं बन सकी।
चर्चा है कि पिछले दिनों मांंझी ने नीतीश से मुलाकात कर 5 लोकसभा सीटें मांगी थीं। मांझी ने कहा था कि पार्टी का जनाधार बढ़ा है और कार्यकर्ताओं का भी ख्याल रखना है, इसलिए 5 सीटें भी कम हैं।
हालांकि, इस मुद्दे पर दोनों के बीच सहमति नहीं बन सकी और बाद में मांझी ने कहा कि उनकी पार्टी एक भी सीट पर लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगी।
बैठक
विपक्षी पार्टियों की बैठक से मांझी बाहर
नीतीश ने 23 जून को पटना में विपक्षी पार्टियों की बैठक बुलाई है। इसमें राहुल गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक, तमाम विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया गया है।
हालांकि, नीतीश ने इस बैठक के लिए अपने सहयोगी मांझी को न्योता नहीं भेजा है। इसके बाद वे राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर से भी मिले।
यहीं से कयास लगाए जा रहे थे कि मांझी जल्द ही कोई बड़ी घोषणा कर सकते हैं।
भाजपा
मांझी की भाजपा के साथ जाने की अटकलें क्यों?
मांझी ने 13 अप्रैल को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। जब उनसे इसकी वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि पहाड़ काटने वाले दशरथ मांझी को भारत रत्न देने की मांग को लेकर वे गृह मंत्री से मिले।
चर्चा है कि इस बैठक में शाह और मांझी के बीच राजनीतिक गतिविधियों को लेकर बातचीत हुई। तब से कयास हैं कि मांझी को शाह की ओर से आश्वासन मिला है या गठबंधन को लेकर कोई चर्चा हुई है।
राज्यपाल
राज्यपाल बनने की मांझी की चाहत भी एक कारण
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मांझी को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से राज्यपाल बनाने का आश्वासन दिया गया है।
इसके साथ ही मांझी के बेटे को गया लोकसभा सीट से NDA के टिकट पर उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इस सीट को NDA के लिए सुरक्षित सीट माना जाता है।
2019 के लोकसभा चुनावों में यहां से जनता दल यूनाइटेड (JDU) के विजय कुमार मांझी ने जीत दर्ज की थी।
रणनीति
मांझी से भाजपा को क्या फायदा हो सकता है?
नीतीश से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा बिहार में 2014 की तर्ज पर काम कर रही है।
इसके लिए पार्टी अब तक चिराग पासवान, पशुपति पारस और उपेंद्र कुशवाहा को साधने में कामयाब रही है।
अब अगर मांझी भी भाजपा के साथ आते हैं तो पार्टी के लिए ये फायदे वाला सौदा होगा क्योंकि मांझी मुसहर जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनकी राज्य में करीब 3 प्रतिशत आबादी है। नीतीश को इससे नुकसान हो सकता है।
पाला
न्यूजबाइट्स प्लस
इसी साल 27 फरवरी को मांझी ने कसम खाकर कहा था कि वे नीतीश का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे। हालांकि, उन्होंने 107 दिनों के भीतर ही ये कसम तोड़ दी।
इससे पहले वे 43 साल के राजनीतिक सफर में 8 बार पाला बदल चुके हैं।
उन्होंने साल 1980 में कांग्रेस से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। 1983 में पहली बार विधायक बने मांझी को मंत्री पद भी मिल गया। वे 1990 तक मंत्री बने रहे।