जम्मू-कश्मीर: परिसीमन आयोग की रिपोर्ट की बड़ी बातें क्या हैं और इससे क्या बदलेगा?
क्या है खबर?
परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर के लिए अपनी अंतिम रिपोर्ट जारी कर दी है। इससे केंद्र शासित प्रदेश में चुनावों का रास्ता साफ हो गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, अब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की सीटें 83 से बढ़कर 90 हो जाएंगी। सात नई सीटों में से छह जम्मू में और एक कश्मीर में होगी। इसके साथ ही जम्मू में कुल सीटों की संख्या 37 से बढ़कर 43 और कश्मीर में 46 से बढ़कर 47 हो जाएगी।
आइये, पूरी खबर जानते हैं।
जानकारी
पहले समझिये परिसीमन का मतलब
परिसीमन की प्रक्रिया के जरिये लोकसभा और विधानसभा चुनाव क्षेत्रों की सीमाओं को तय किया जाता है।
इस प्रक्रिया का मकसद सभी नागरिकों को संसद और विधानसभा में उचित प्रतिनिधित्व मुहैया करवाना होता है। जनसंख्या में आए बदलावों को ध्यान में रखते हुए एक निश्चित अंतराल के बाद इस प्रक्रिया को दोहराया जाता है।
जम्मू-कश्मीर की बात करें तो यहां आखिरी बार 1995 में परिसीमन हुआ था। उसके बाद से यहां हालात और स्थितियां काफी बदल गई हैं।
जम्मू-कश्मीर
लोकसभा सीटों में नहीं हुआ बदलाव
जम्मू-कश्मीर में पहले की तरह पांच लोकसभा सीटें ही रहेंगी।
हालांकि, इनके बंटवारे में इस बार थोड़ा बदलाव हुआ है। दरअसल, पहले जम्मू क्षेत्र में लोकसभा की दो और कश्मीर में तीन सीटें थीं। अब हर लोकसभा के तहत 18 विधानसभा सीटें होंगी।
परिसीमन के बाद अनंतनाग-रजौरी लोकसभा सीट के तहत सात विधानसभाएं जम्मू और इतनी ही कश्मीर डिविजन की रखी गई है। इस तरह यह इस सीट से चुने जाने वाला प्रतिनिधि दोनों डिविजनों के क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करेगा।
परिसीमन रिपोर्ट
क्या हैं रिपोर्ट की अन्य बड़ी बातें?
परिसीमन आयोग ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें आरक्षित रखने की सिफारिश की है, जिसमें से एक महिलाओं के लिए आरक्षित होगा। इन सदस्यों को मतदान का अधिकार होगा।
आयोग ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से विस्थापित लोगों को भी प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश की है। PoK के लिए आरक्षित 24 सीटें पहले की तरह खाली रहेंगी।
सात सीटें अनुसूचित जाति और नौ सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होंगी।
जानकारी
कुछ विधानसभा सीटों के बदलेंगे नाम
स्थानीय प्रतिनिधियों की मांग पर 13 विधानसभा सीटों के नाम बदले गए हैं। श्रीनगर की सोनवार विधानसभा अब लाल चौक सीट, तंगमार्ग को गुलमर्ग और जूनिमार सीट को जैडिबल सीट के नाम से जाना जाएगा।
विरोध
कई पार्टियां कर रहीं विरोध
जम्मू-कश्मीर के कुछ राजनीतिक दल परिसीमन का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने इसे संविधान का उल्लंघन बताते हुए कहा कि इससे यहां के लोगों को शक्तियों को कमजोर करने की कोशिश हो रही है।
परिसीमन आयोग को अपनी सिफारिशें सौंपने के लिए एक साल का वक्त दिया गया था, लेकिन बाद में इसे बढ़ाया गया। शुरुआती दौर में नेशनल कॉन्फ्रेंस बैठकों में शामिल नहीं हुई थी।
पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने इस रिपोर्ट का खारिज किया है।
वजह
अभी क्यों किया गया परिसीमन?
2026 में पूरे देश में परिसीमन होना है, लेकिन उससे पहले जम्मू-कश्मीर में परिसीमन हो गया।
दरअसल, अनुच्छेद 370 खत्म होने और जम्मू-कश्मीर राज्य के दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन के बाद परिसीमन जरूरी हो गया था।
6 मार्च, 2020 को सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में परिसीमन आयोग का गठन किया गया और देश के मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र और जम्मू-कश्मीर के चुनाव आयुक्त केके शर्मा इसके सदस्य हैं।
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
बदलाव के मायने क्या?
BBC के अनुसार, पहले जम्मू की करीब 44 फीसदी आबादी 44.5 फीसदी सीटों और कश्मीर की 56 फीसदी आबादी 55.4 प्रतिशत सीटों पर मतदान करती थी, लेकिन नई व्यवस्था में जम्मू की 44 फीसदी आबादी 48 फीसदी सीटों और कश्मीर की 56 फीसदी आबादी 52 प्रतिशत सीटों पर मतदान करेगी।
इसी तरह लोकसभा सीटों पर आरक्षण आदि व्यवस्थाओं के चलते अलग-अलग समुदायों की जनसंख्या का असर प्रभावित होगा।
फिलहाल सरकार के नोटिफिकेशन का इंतजार किया जा रहा है।