पश्चिम बंगाल में 112 जिंदा बम बरामद, पुलिस ने गिरफ्तार किए 399 लोग
राजनीतिक हिंसा का सामना कर रहे पश्चिम बंगाल में शनिवार को 112 जिंदा बम और 6 देशी हथियार बरामद किए गए। हथियारों और विस्फोटकों से होने वाली हिंसा को रोकने के लिए की गई इस कार्रवाई में पश्चिम बंगाल पुलिस ने 399 लोगों को गिरफ्तार किया है। ये छापे बीरभूम जिले के 6 अलग-अलग पुलिस थाना क्षेत्रों में मारे गए। बता दें कि इलाके में हथियारों और विस्फोटकों की मदद से होने वाली हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है।
पुलिस ने 6 थाना क्षेत्रों में मारे छापे
बीरभूम SP श्याम सिंह ने कार्रवाई की जानकारी देते हुए बताया, "बीरभूम में एक साथ कई जगहों पर छापा मारा गया और 112 जिंदा कच्चे और सॉकेट बम बरामद किए गए।" उन्होंने बताया कि 120 में से 32 नानूर से, 40 लभपुर से, 20 पानरुई से, 9 सदाईपुर से और 2 रामपुरहाट थाना क्षेत्र से बरामद किए गए। इसके साथ ही 6 देशी हथियार और भारी गोला-बारूद भी बरामद किया है।
हथियारों और विस्फोटकों से हिंसा के मामलों में वृद्धि
SP सिंह ने बताया कि मामले में कुल 399 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिसमें से 65 विशिष्ट मामलों में गिरफ्तार किया गया है। 228 लोगों को सुरक्षा की दृष्टि से और 106 लोगों को पहले से चल रहे मामलों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। बता दें कि इलाके में हिंसक मामलों में वृद्धि देखने को मिली है। हाल ही में बीरभूम के पंचायत उप स्वास्थ्य केंद्र की पुरानी इमारत में एक बम विस्फोट हुआ था।
बंगाल में लगातार जारी है राजनीतिक हिंसा
बता दें कि राज्य में सत्तारूढ़ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) और भारतीय जनता पार्टी में राजनीतिक भिडंत के बीच बंगाल को राजनीतिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। दोनों ही पार्टियों के कई कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हिंसा में हत्या की जा चुकी है और दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप लगाती हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ इस राजनीतिक हिंसा को बंगाल के भविष्य के लिए अच्छा नहीं मान रहे हैं।
हमेशा हिंसक रहा है बंगाल की राजनीति का चरित्र
वैसे तो बंगाल की राजनीति हमेशा ही हिंसक रही है। आजाद भारत में बंगाल में में 'बम बारूद की राजनीति' की शुरूआत वामदलों ने की थी। उनकी इसी राजनीति को चुनौती देकर ममता सरकार में आईं, लेकिन धीरे-धीरे उनकी पार्टी ने भी यही गुण अपना लिए। इसलिए बंगाल की राजनीति में हिंसा नई बात नहीं है, लेकिन आजादी के बाद इस राजनीतिक हिंसा में ऐसी सांप्रदायिक देखने को नहीं मिली, जो अब दिख रही है।