पश्चिम बंगाल में चीनी भाषा में प्रचार कर रही है ममता बनर्जी की पार्टी, जानें कारण
अगर हम आपसे कहें कि भारत को कोई पार्टी चीनी भाषा में भी प्रचार कर रही है, तो आप शायद इसे मजाक समझकर टाल देंगे। लेकिन यह मजाक नहीं है और यह काम कोई छोटी पार्टी नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) कर रही है। जी हां, TMC चीनी भाषा में भी प्रचार कर रही है। लेकिन बंगाली राज्य में वह आखिर चीनी क्यों 'पढ़' रही है, आइए इस बारे में जानते हैं।
चीनी भाषा में लिखा 'तृणमूल कांग्रेस को वोट दो'
दरअसल, पूर्वी कोलकाता के तांगड़ा इलाके के एक दर्जन से अधिक दीवारें 'तृणमूल कांग्रेस को वोट दें' के नारों से रंगी हुई हैं। ये पहली बार है जब ममता की पार्टी ने चीनी भाषा में प्रचार किया है। इसका कारण है इलाके में रहने वाले चीनी मूल के लोग। तांगड़ा इलाके को कोलकाता का 'चाइना टाउन' कहा जाता है। हालांकि चीनी मूल के वोटर्स की संख्या इतनी ज्यादा नहीं है कि यह चुनाव पर कोई बड़ा असर डाल सकें।
चीनी भाषा में अन्य तरीकों से भी प्रचार करेगी TMC
इलाके में प्रसिद्ध भोजनालय चलाने वाले रॉबर्ड होउ ने इन दीवारों को रंगा है। TMC इसके अलावा चीनी भाषा में और भी बहुत कुछ करने की सोच रही है। पार्टी पत्रक छपवा कर उन्हें तांगड़ा के लोगों में बांटेगी। उसके स्थानीय पार्षद फैज अहमद खान ने बताया, "अगर हमारे उम्मीदवार के पास समय होगा तो हम छोटी सी सभा भी करेंगे जिसमें चीनी भाषा में संदेश दिया जाएगा।" उन्होंने बताया कि इलाके में चीनी मूल के कुल 2,000 वोटर्स हैं।
कामचलाऊ बंगाली और हिंदी जानते हैं चीनी मूल के लोग
वैसे तो यहां रहने वाली सभी चीनी मूल के लोगों को बंगाली और हिंदी की कामचलाऊ जानकारी है, लेकिन तृणमूल के नेताओं का मानना है कि उनसे उनकी मातृभाषा में बात संबोधित करने से प्रचार में ज्यादा प्रभाव आएगा।
18वीं शताब्दी से चीन और कोलकाता का रिश्ता
चीन और कोलकाता का रिश्ता काफी पुराना है। योंग अटच्यू नामक चीनी 1780 में बंगाल आए थे और यहां एक गन्ने की खेती की और चीनी मिल लगाया। इसके बाद 18वीं शताब्दी के अंत में चीनी मजदूरों ने भारत आना शुरु कर दिया। पहले वह केवल चमड़े का काम करते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने कपड़ों और भोजनालयों समेत अन्य क्षेत्रों में भी काम करना शुरु कर दिया। 1951 की पहली जनगणना में कोलकाता में उनकी संख्या 5710 बताई गई थी।
पश्चिम बंगाल की राजनीति में हमेशा रहा है 'चीन'
अगर राजनीतिक मोर्चे की बात करें तो यहां भी पश्चिम बंगाल और चीन का एक गहरा रिश्ता है। ममता की सरकार से पहले राज्य में दशकों तक वामपंथियों की सरकार रही थी, जिनके अक्सर चीन से जोड़ा जाता है। इसके अलावा 1960 और 1970 के दौर में कोलकाता की दीवारों पर 'चीन का चेयरमैन ही हमारा चेयरमैन है' के नारे दिखाए देते थे, जिन्हें माओवादियों ने लिखा होता था। हालांकि यह नारे बंगाली में लिखे होते थे।