#NewsBytesExplainer: डिफ्लेशन क्या है, जिसने चीन में दी दस्तक और यह अर्थव्यवस्था के लिए क्यों खराब?
क्या है खबर?
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में डिमांड इतनी ज्यादा कम हो गई है कि अब इस देश पर डिफ्लेशन (अपस्फीति) का खतरा मंडराने लगा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के निर्यात और घरेलू डिमांड दोनों में गिरावट है।
डिफ्लेशन की बात करें तो यह इंफ्लेशन (मुद्रास्फीति) की विपरीत स्थिति होती है।
जब महंगाई दर 0 प्रतिशत से भी नीचे चली जाती है तब डिफ्लेशन की परिस्थितियां बनती हैं।
महंगाई
डिफ्लेशन में घट जाती है वस्तुओं और सेवाओं की कीमत
डिफ्लेशन की स्थिति में महंगाई या कीमतों में लगातार गिरावट की स्थिति जारी रहती है। डिफ्लेशन के दौरान उत्पादों और सेवाओं के मूल्य लगातार कम होते जाते हैं।
इस दौरान बेरोजगारी भी बढ़ती है क्योंकि अर्थव्यवस्था में डिमांड काफी घट जाती है।
रोजगार की कमी से मांग और कम हो जाती है, जिससे डिफ्लेशन और तेज होता है।
डिमांड में कमी आने पर निवेश में भी गिरावट देखी जाती है।
कीमत
डिफ्लेशन के दौरान बढ़ने लगती है बेरोजगारी
डिफ्लेशन के दौरान चीजों की कीमतें घटती जाती हैं, लेकिन लोग कीमतों के और कम होने की उम्मीद में खरीदारी नहीं हैं। ऐसे में वस्तुओं की बिक्री न होने से उसे बनाने वाले उत्पादकों की आय घट जाती है।
ऐसी स्थिति में प्रोडक्शन कंपनियां लोगों को नौकरी से निकालती हैं और नतीजन बेरोजगारी बढ़ती है।
इन स्थितियों में ब्याज दरें भी काफी ज्यादा बढ़ जाती हैं। कम कीमत और लोगों के कम खर्च से स्थिति और बिगड़ती जाती है।
माप
ऐसे मापा जाता है डिफ्लेशन
डिफ्लेशन को कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स (CPI)) जैसे इकोनॉमिक इंडीकेटर्स का उपयोग करके मापा जाता है। यह खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को ट्रैक कर हर महीने उनकी कीमतों में हुए बदलाव की जानकारी देता है।
जब CPI द्वारा एक निश्चित अवधि में मापी गई कीमतें पिछली अवधि की तुलना में कम होती हैं तो अर्थव्यवस्था में डिफ्लेशन का अनुभव किया जाता है।
कीमतें जब सामूहिक रूप से बढ़ती हैं तो अर्थव्यवस्था में इंफ्लेशन (महंगाई) का अनुभव होता है।
जानकारी
डिफ्लेशन के कारण
डिफ्लेशन के 2 बड़े कारण मांग में कमी या सप्लाई में वृद्धि होते हैं। यदि सप्लाई में बदलाव नहीं होता है तो कुल मांग में गिरावट से वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में गिरावट आती है।
मांग
इन वजहों से होती है मांग में गिरावट
कुल मांग में गिरावट के पीछे मौद्रिक नीति जैसे बढ़ती ब्याज दरें और विपरीत आर्थिक परिस्थितियां आदि कारण हो सकते हैं।
ब्याज दर बढ़ने से लोग खर्च के बजाय बचत पर जोर देते हैं। कम खर्च से वस्तुओं और सेवाओं की मांग में कमी आती है।
विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में खर्चे को लेकर लोगों का आत्मविश्वास घट जाता है। उदाहरण के लिए, महामारी और बेरोजगारी की चिंता से लोग कम खर्च करते हैं और इससे भी मांग घटती है।
सप्लाई
सप्लाई में वृद्धि के पीछे होती हैं ये वजहें
सप्लाई में वृद्धि का मतलब है कि बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण उत्पादकों और कंपनियों को अपने सामानों की कीमतें कम करनी पड़ रही हैं। कुल सप्लाई में यह वृद्धि उत्पादन लागत में गिरावट के कारण हो सकती है।
यदि माल का उत्पादन करने में लागत कम आएगी तो कंपनियां उसी कीमत पर अधिक उत्पादन कर सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप मांग से अधिक आपूर्ति (सप्लाई) और कीमतें कम हो सकती हैं।
असर
डिफ्लेशन के होते हैं ये नकारात्मक परिणाम
शुरुआत में तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमत गिरना अच्छा लग सकता है, लेकिन अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत नकारात्मक असर पड़ सकता है।
कीमतें गिरने से कंपनी का मुनाफा कम होता है और कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी करके लागत में कटौती करती हैं।
कीमतें घटने से उत्पादन घटेगा और कम उत्पादन से वेतन कम हो सकता है।
ऐसे में बेरोजगारी बढ़ने, ब्याज दरें बढ़ने, वेतन कम होने और आर्थिक स्थिति खराब होने जैसे नतीजे देखने को मिल सकते हैं।
इंफ्लेशन
इंफ्लेशन की तुलना में अधिक हानिकारक है डिफ्लेशन
डिफ्लेशन की इन्हीं खराबियों के चलते इसे इंफ्लेशन की तुलना में अधिक हानिकारक कहा जाता है।
इंफ्लेशन में कीमतें बढ़ती हैं और मुद्रा की ताकत कम होती है। इंफ्लेशन में रुपये या मुद्रा की कीमत उतना आगे नहीं बढ़ती है।
यह ब्याज की वैल्यू को भी कम करती है। ऐसे में लोग कर्ज लेते रहते हैं और कर्जदार अपने कर्ज का भुगतान करते रहते हैं।
अर्थव्यवस्था आमतौर पर प्रति वर्ष 1 प्रतिशत से 3 प्रतिशत इंफ्लेशन का अनुभव करती है।
निवेश
डिफ्लेशन के दौरान जोखिम भरा होता है निवेश
डिफ्लेशन के दैरान लोग नकद पैसा रखने पर जोर देते हैं। इस दौरान स्टॉक, कॉर्पोरेट बॉन्ड और रियल एस्टेट आदि में निवेश जोखिम भरे होते हैं।
दरअसल, इस दौरान व्यवसाय कठिन हालातों का सामना कर सकते हैं या फिर पूरी तरह से फेल भी हो सकते हैं।
हालांकि, विभिन्न देशों की सरकारें कुछ रणनीतियों के जरिए डिफ्लेशन पर लगाम लगाने के उपाय करती हैं। इनमें पैसे की सप्लाई बढ़ाने और उधार लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने जैसे उपाय हैं।
महामंदी
1929 की महामंदी का कारण माना जाता है डिफ्लेशन
डिफ्लेशन को 1929 की महामंदी का कारण भी माना जाता है। इसकी शुरुआत 1929 में मंदी के रूप में हुई, लेकिन वस्तुओं और सेवाओं की डिमांड तेजी से घटने से कीमतों में काफी गिरावट आई। इससे कई कंपनियां बंद हो गईं और बेरोजगारी दर बढ़ गई।
महामंदी के कारण डिफ्लेशन दुनिया के लगभग हर दूसरे औद्योगिक देश में हुआ। महामंदी से अमेरिका का उत्पादन वर्ष 1942 तक पहले की स्थिति में नहीं पहुंचा था।
जानकारी
1998 के बाद से जापान में डिफ्लेशन
जापान ने भी 1990 के दशक के मध्यम-हल्के डिफ्लेशन का अनुभव किया। 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट से पहले की एक छोटी अवधि को छोड़कर वर्ष 1998 के बाद से जापानी CPI लगभग हमेशा थोड़ा निगेटिव रहा है।