#NewsBytesExplainer: गाड़ियों में पावरट्रेन कितने प्रकार के होते हैं और कब हुई थी इनकी शुरुआत ?
पावरट्रेन या इंजन किसी भी गाड़ी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही कार की परफॉरमेंस को भी निर्धारित करता है। आपने ध्यान दिया होगा कि भारतीय बाजार में उपलब्ध गाड़ियां पेट्रोल, डीजल, CNG या हाइब्रिड इंजन के साथ आती हैं। आज हम आपके लिए भारतीय बाजार में अलग-अलग गाड़ियों में मिलने वाले पावरट्रेन के प्रकार के बारे में जानकारी लेकर हैं। आइये जानते हैं कि देश में उपलब्ध गाड़ियों में कितने प्रकार के पावरट्रेन का इस्तेमाल होता है।
इंटरनल पेट्रोल कंबशन इंजन
इंटरनल पेट्रोल कंबशन इंजन या पेट्रोल इंजन की शुरुआत 1876 में जर्मनी में हुई थी। पेट्रोल इंजन में स्पार्क प्लग का इस्तेमाल होता है, जिससे ईंधन जलता है और ऊर्जा पैदा करता है। देश में उपलब्ध गाड़ियों में BS6 फेज-II मानकों वाले इंजन का इस्तेमाल होता है। इसमें गाड़ियों से कम मात्रा में उत्सर्जन होता है, जिससे प्रदूषण कम होता है। टाटा पंच, वेन्यू और सोनेट जैसी गाड़ियों में इस इंजन का इस्तेमाल होता है।
इंटरनल डीजल कंबशन इंजन
पहली बार इंटरनल डीजल कंबशन इंजन या डीजल इंजन के प्रोटोटाइप को 1893 में तैयार किया गया, वहीं गाड़ियों में इसका इस्तेमाल 1897 से शुरू हुआ। डीजल इंजन में ईंधन में स्पार्क प्लग की जरूरत नहीं होती। इसमें ईंधन को सीधे सिलेंडर में स्प्रे किया जाता है। एक लीटर डीजल एक लीटर पेट्रोल की तुलना में अधिक ऊर्जा पैदा करता है। टाटा सफारी, हैरियर, महिंद्रा स्कॉर्पियो और बोलेरो जैसी गाड़ियों में डीजल इंजन का इस्तेमाल होता है।
कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) इंजन
CNG तकनीक का प्रयोग मौजूदा समय में पेट्रोल इंजन वाले वाहनों के साथ किया जाता है। इसके लिये वाहन में एक किट लगाई जाती है। साल 1901 में पहली बार CNG इंजन का इतेमाल कार में हुआ था। इसके गैस सिलेंडर को कार के बूट स्पेस में रखा जाता है। पेट्रोल की ऊंची कीमतों और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के चलते CNG का प्रयोग निजी कार, ऑटो रिक्शा, पिकअप ट्रक, ट्रांजिट और स्कूल बसों में किया जा रहा है।
लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (LPG) इंजन
LPG इंजन वाली कार काफी हद तक CNG कार के समान ही होती हैं। इनमें ईंधन के रूप में रसोई में इस्तेमाल होने वाले LPG का इस्तेमाल किया जाता है। मारुति ने देश की पहली LPG इंजन वाली गाड़ी 2006 में रोल आउट की थी। बता दें कि सुरक्षा के लिहाज से गाड़ियों में LPG रेट्रो फिटिंग का इस्तेमाल सही नहीं है। यही वजह है कि वर्तमान में देश में कोई भी LPG गाड़ी बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं है।
माइल्ड हाइब्रिड इंजन
माइल्ड हाइब्रिड वाहनों में ICE इंजन के साथ-साथ एक इलेक्ट्रिक मोटर होती है। इसकी शुरुआत 1902 में हुई थी। इस तरह के वाहन की इलेक्ट्रिक मोटर और बैटरी में इतनी पावर यानी क्षमता नहीं होती, जो वह स्वयं वाहन को चला सके। यह तकनीक कार के इंजन को केवल सहायता प्रदान करती है, जिससे उस पर अधिक लोड नहीं बनता है। मारुति सुजुकी ने सियाज, एर्टिगा, नई ब्रेजा, आगामी ग्रैंड विटारा आदि कारों में माइल्ड हाइब्रिड सुविधा दी है।
स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इंजन
स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड वाहनों में भी एक ICE इंजन और इलेक्ट्रिक मोटर होती है। हालांकि, इस तकनीक में ऐसी इलेक्ट्रिक मोटर और बैटरी पैक का इस्तेमाल होता है जो वाहन को इंजन से स्वतंत्र रखकर भी चला सकती है। इस तरह की कारों में माइल्ड और स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड दोनों के लिए मोड्स दिए जाते हैं। स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड में इलेक्ट्रिक मोटर कार को धीमी गति में ही पावर दे सकती है। तेज गति पर कार का इंजन स्वत: शुरू हो जाता है।
बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEV)
भारत में धीरे-धीरे बैटरी संचालित इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार बढ़ रहा है। इसमें इलेक्ट्रिक मोटर और बैटरी लगी होती है। गाड़ी में लगी बैटरी से इलेक्ट्रिक मोटर को पावर मिलता है। 1993 में देश में पहली इलेक्ट्रिक गाड़ी 'लवबर्ड' सड़कों पर चली थी। इन बैटरी को चार्जिंग स्टेशन या घर पर आसानी से चार्ज किया जा सकता है। वर्तमान में देश में टाटा नेक्सन इलेक्ट्रिक, महिंद्रा XUV400 और MG ZS EV जैसी कई गाड़ियां बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।
फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहन (FCEV)
फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहन में हाइड्रोजन का इस्तेमाल फ्यूल के रूप में होता है। अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने के लिए भी इसी फ्यूल का इस्तेमाल किया जाता है। वाहनों में इसका इस्तेमाल 2014 में शरू हुआ। इलेक्ट्रिक वाहनों की तरह इनमें भी बैटरी और इलेक्ट्रिक मोटर लगी होती है। हालांकि, इन्हे चार्ज नहीं किया जाता। ये हाइड्रोजन फ्यूल की मदद से पावर जनरेट करती हैं और चलती हैं। देश में टोयोटा मिराई हाइड्रोजन कार पेश हो चुकी है।