कितने तरह की होती हैं इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियां और इनके दाम ज्यादा क्यों होते हैं?
भारत में कई तरह की इलेक्ट्रिक गाड़ियां मौजूद हैं। कुछ की रेंज (माइलेज) कम होती तो कुछ ज्यादा रेंज का वादा करती हैं। रेंज में उतार-चढ़ाव इनमे मिलने वाली बैटरी की वजह से होता है। आज कल ज्यादातर वाहनों में लिथियम-आयन बैटरी का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन इसके अलावा भी कई तरह के बैटरी विकल्प बाजार में मौजूद है। इसलिए आज हम आपको वाहनों में लगने वाली इन बैटरियों और इससे जुड़ी बातें बताने जा रहे हैं।
क्या होती है इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी?
जिस तरह फ्यूल इंजन वाली गाड़ियों को चलने के लिए पेट्रोल या डीजल की जरुरत होती है, ठीक उसी तरह इलेक्ट्रिक वाहनों में बैटरी से मिलने वाली पावर इस कमी को पूरा करती है। एक इलेक्ट्रिक वाहन या तो लिथियम-आयन बैटरी पैक या निकल-मेटल हाइड्राइड द्वारा संचालित होता है। बैटरी इकाई की ऊर्जा क्षमता को मापने के लिए उपयोग की जाने वाली यूनिट को किलोवाट-घंटे (या kWh) कहा जाता है और इससे तय की गई दूरी रेंज कहलाती है।
कितने तरह की होती हैं बैटरी?
वाहनों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली बैटरी लिथियम-आयन होती है। यह काफी हद तक स्मार्टफोन में लगी बैटरी की तरह काम करती है। इसमें कई सारे बैटरी सेल को एक साथ पैक किया जाता है, जो अंत में हमारी इलेक्ट्रिक गाड़ी को चला सकने जितना पावर जनरेट करती है। इसके अलावा लिथियम आयरन फॉस्फेट बैटरी (LFP), लिथियम निकल मैंगनीज कोबाल्ट ऑक्साइड (NMC), लिथियम मैंगनीज ऑक्साइड और लिथियम टाइटेनेट (LTO) और मेटल एयर का उपयोग भी किया जाता है।
कितने दिनों तक चलती है ये बैटरी?
किसी भी इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी की लाइफ इस पर निर्भर करती है कि उसमें लगने वाला बैटरी पैक कितनी पावर का है। अगर भारत की बात करें तो टाटा टिगोर जैसी गाड़ियां आठ साल या 1,60,000 किलोमीटर की वारंटी देती है। वहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी लाइफ 10 साल के आसपास होती है। हालांकि, मौसम, सड़क की स्थिति और बैटरी पैक की गुणवत्ता जैसे कई कारक भी हैं जो इसके लाइफ को कम करते हैं।
क्यों महंगी होती हैं ये बैटरियां?
इलेक्ट्रिक वाहनों में सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि ये गाड़ियां सामान्य गाड़ियों से काफी महंगी होती है और इसका मुख्य कारण इनमें लगने वाला बैटरी पैक है। अधिकांश बैटरी पैक काफी बड़े होते हैं और यह तकनीक अभी भी काफी नई है। इस वजह से इनकी कीमतें भी काफी ज्यादा हैं। पेट्रोल से चलने वाली टिगोर कॉम्पैक्ट सेडान के बेस वर्जन की तुलना में टाटा टिगोर EV की कीमत लगभग दोगुनी है।
क्या फ्यूल कारों की जगह लें पायेंगी बैटरी से चलने वाली गाड़ी?
जैसे-जैसे तकनीक विकसित हो रही है वैसे ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमतों में कमी भी देखी जा रही है। इसके अलावा इसकी चार्जिंग की चिंता को दूर करने के लिए लगातार चार्जिंग स्टेशन लगाए जा रहे हैं। टाटा, होंडा जैसी बड़ी कंपनियों के अलावा बाउंस और ओला जैसी स्टर्टअप भी अपने चार्जिंग स्टेशनों को स्थापित कर रहे हैं। दूसरी तरफ FAME-II के तहत मिलने वाली सब्सिडी ने भी कई लोगों का ध्यान इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर आकर्षित किया है।