अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुका तालिबान पंजशीर घाटी को नियंत्रण में क्यों नहीं ले पाया?
लगभग पूरा अफगानिस्तान तालिबान के कब्जे में आ चुका है, लेकिन पंजशीर घाटी अभी भी उसके नियंत्रण से बाहर है। अशरफ गनी के देश छोड़ने के बाद खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर चुके अमरुल्ला सालेह और पूर्व रक्षा मंत्री बिस्मिला मोहम्मदी यहीं से तालिबान से खिलाफ रणनीति बनाने में जुटे हैं। माना जा रहा है कि पंजशीर से तालिबान को कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है। आइये, जानते हैं कि तालिबान पंजशीर तक क्यों नहीं पहुंच पाया?
भौगोलिक स्थिति बनाती है पंजशीर को खास
काबुल से लगभग 150 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित पंजशीर घाटी का अफगानिस्तान के सैन्य इतिहास में अहम स्थान है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे बाकी देश से अलग करती है। चारों तरफ पहाड़ों से घिरी इस घाटी में जाने का रास्ता एक संकरे पास से होकर गुजरता है, जिसे सेना की मदद से आसानी से सुरक्षित किया जा सकता है। हिंदूकुश पहाड़ों से घिरी पंजशीर घाटी पर तालिबान आज तक कभी भी कब्जा नहीं कर पाया है।
पंजशीर में ज्यादातर ताजिक लोग
पंजशीर की करीब 1.5 लाख आबादी में से अधिकतर ताजिक जातीय समूह से संबंध रखते हैं, जबकि तालिबान के अधिकतर लड़ाके पश्तून हैं। यह घाटी पन्ने के लिए भी मशहूर है और इससे होने वाली आय यहां से सत्ता के खिलाफ चले तमाम विद्रोही अभियानों को फंड करने में इस्तेमाल होती आई है। अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने से पहले पंजशीर के लोग लगातार केंद्रीय सरकार से अपने लिए अधिक स्वायत्तता की मांग करते रहे थे।
प्रतिरोध का लंबा इतिहास
तालिबान के सत्ता से बेदखल होने और दोबारा सत्ता की दहलीज तक पहुंचने के बीच के समय में पंजशीर को अफगानिस्तान का सबसे सुरक्षित इलाका माना जाता था। इस घाटी के इतिहास को अहमद शाह मसूद के नाम के साथ याद किया जाता है। शाह मसूद तालिबान के खिलाफ लड़ने वाले अनुभवी ताजिक कमांडर थे। 2001 में हत्या से पहले तक वो लगातार तालिबान के खिलाफ लड़ाई और विरोध की अगुवाई कर रहे थे।
90 के दशक में तालिबान नहीं कर पाया था कब्जा
1953 में पैदा हुए अहमद शाह ने खुद को 'मसूद' नाम दिया था। काबुल में साम्यवादी सरकार के साथ-साथ सोवियत संघ के कड़े विरोधी मसूद देश के सबसे प्रभावशाली मुजाहिद्दीन कमांडर बन गए थे। 1989 में सोवियत संघ की वापसी के बाद अफगानिस्तान में गृह युद्ध शुरू हो गया, जिसमें आगे चलकर तालिबान की जीत हुई। हालांकि, मसूद और उनके यूनाइटेड फ्रंट (नॉर्दन अलायंस) ने पंजशीर के साथ-साथ पूर्वोत्तर अफगानिस्तान के बड़े हिस्से को तालिबान के नियंत्रण से आजाद रखा।
2001 में कर दी गई थी मसूद की हत्या
मसूद ने रूढ़िवादी इस्लाम का भी समर्थन किया, लेकिन वो लोकतांत्रिक संस्थाएं बनाने और महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने के हिमायती थे। वो एक ऐसा अफगानिस्तान बनाना चाहते थे, जहां जातीय और धार्मिक सीमाओं की रेखा धुंधली हो। हालांकि, मानवाधिकारों पर नजर रखने वाली संस्थाओं का आरोप था कि गृह युद्ध के दौरान मसूद के लिए लड़ रहे लोगों ने मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया था। 2001 में अल कायदा ने उनकी हत्या कर दी।
पिता के कदमों पर चल रहे बेटा
अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद अब अपने पिता के कदमों पर चल रहे हैं। घाटी में मिलिशिया का नेतृत्व करने वाले अहमद मसूद का कहना है कि उन्हें अफगान सेना की स्पेशल फोर्स का समर्थन मिल रहा है और कई सैनिक उनके साथ आ गए हैं। हाल ही में सामने आई तस्वीरों में उन्हें कार्यवाहक राष्ट्रपति सालेह के साथ बैठक करते देखा गया था। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से हथियारों और गोला-बारूद की भी मांग की है।
रूस बोला- तालिबान का पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं
रूस ने भी गुरुवार को कहा है कि पंजशीर घाटी में प्रतिरोध अभियान की नींव तैयार हो रही है, जिसका नेतृत्व सालेह और मसूद कर रहे हैं। रूस के विदेश मंत्री ने कहा था कि तालिबान का पूरे अफगानिस्तान पर नियंत्रण नहीं हुआ है।
क्या तालिबान के लिए बड़ी चुनौती होगा ऐसा अभियान?
DW से बात करते हुए दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुलमैन ने कहा कि तालिबान ने युद्ध खत्म होने की बात कही है। इसका मतलब है कि वह अपने नियंत्रण में नहीं आए इलाकों पर कब्जे की कोशिश नहीं करेगा, लेकिन इसके लिए इंतजार करना होगा। वहीं अगर तालिबान को बड़ी चुनौती नजर आई तो वह पंजशीर पर कब्जे की कोशिश करेगा। अगर वह ऐसा करता है तो उसके लिए पंजशीर पर नियंत्रण पाना मुश्किल नहीं होगा।