अमेरिका को कितनी महंगी पड़ी है अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ाई?
क्या है खबर?
करीब दो दशक बाद एक बार फिर अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है और काबुल में उसकी सरकार बनने जा रही है।
2001 में अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया था, लेकिन दोनों के बीच लड़ाई जारी रही।
बीते 20 सालों के दौरान तालिबान को काबुल से दूर रखने के लिए अमेरिका ने दो ट्रिलियन डॉलर से अधिक खर्च किए हैं, लेकिन उसके लौटते ही तालिबान फिर सत्ता पर काबिज हो गया।
अफगानिस्तान
अमेरिका ने रोजाना खर्चे 300 मिलियन डॉलर
फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार, 9 सितंबर, 2001 के बाद से अमेरिका अफगानिस्तान में दो ट्रिलियन डॉलर से अधिक खर्च चुका है। रोजाना की औसत देखें तो यह 300 मिलियन डॉलर होता है। दो दशक में अमेरिका ने अफगानिस्तान में जितना खर्च किया है, वह जेफ बेजोस, एलन मस्क, बिल गेट्स और अमेरिका के 30 सबसे अधिक अमीर लोगों की कुल संपत्ति से भी अधिक है।
हथियारों और सेना की ट्रेनिंग आदि पर यह रकम खर्च हुई है।
अफगानिस्तान में अमेरिका
2.26 ट्रिलियन डॉलर रहा है अब तक का खर्च
रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका इन दो दशकों में 800 बिलियन डॉलर सीधी लड़ाई में और 85 बिलियन डॉलर अफगान सेना को ट्रेनिंग देने पर खर्च कर चुका है।
अफगान सैनिकों को हर साल 750 मिलियन डॉलर के वेतन का भुगतान अमेरिकी नागरिकों की जेब से किया जाता रहा है।
ब्राउन यूनिवर्सिटी के कॉस्ट ऑफ वार प्रोजेक्ट में अनुमान लगाया गया है कि अफगानिस्तान में अमेरिका का खर्च 2.26 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का रहा है।
जानकारी
सैनिकों की वापसी के बाद भी जारी रहेगा खर्च
अमेरिका द्वारा अपने सैनिक वापस बुला लेने के बाद भी कुछ सालों तक यह खर्च बढ़ता रहेगा। बताया जाता है कि अमेरिका ने उधार लेकर अफगानिस्तान में पैसा खर्च किया है।
ब्राउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अमेरिका ब्याज के रूप में अब तक 500 बिलियन डॉलर का भुगतान कर चुका है। 2050 तक उधार रकम का ब्याज ही बढ़ते-बढ़ते 6.5 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा। यानी हर अमेरिकी के सिर पर 20,000 डॉलर का ब्याज होगा।
नुकसान
पैसों के अलावा जानें भी गईं
तालिबान के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई में पैसों से बड़ा जिंदगियों का नुकसान हुआ है। अब तक इस लड़ाई में अमेरिका सेना के 2,500 सैनिक और करीब 4,000 ठेकेदार मारे जा चुके हैं।
इनके अलावा अफगानिस्तान के 69,000 पुलिसकर्मी और सैनिक, 47,000 आम नागरिक, 444 सहायताकर्मी और 72 पत्रकारों की मौत हो चुकी है।
वहीं तालिबान और विरोधी बलों के 51,000 से ज्यादा लड़ाके अब तक इस लड़ाई में ढेर किए गए हैं।
जानकारी
अमेरिका की हो रही आलोचना
अमेरिका के सभी सैनिकों के निकलने से पहले ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया।
ऐसे में कई लोग कह रहे हैं कि अमेरिका की तालिबान के खिलाफ 20 साल की लड़ाई व्यर्थ हुई है। तालिबान के बढ़ते कदमों के बीच बावजूद अमेरिका ने सैनिक वापस बुलाने का अपना फैसला नहीं बदला, जिसके लिए राष्ट्रपति जो बाइडन की तीखी आलोचना हो रही है।
हालांकि बाइडन ने बचाव करते हुए कहा कि फैसले के साथ पूरी तरह से खड़े हैं।
बयान
युद्ध को रोकना थी प्राथमिकता- बाइडन
अफगानिस्तान को गृह युद्ध की स्थिति में छोड़ने के लिए आलोचनाओं का सामना कर रहे बाइडन ने अपने संबोधन में कहा, "मैं पूरी तरह से अपने फैसले के साथ खड़ा हूं। 20 साल बाद मैंने कठोर तरीके से सीखा है कि अमेरिकी सेना की वापसी के लिए कभी भी कोई अच्छा समय नहीं हो सकता।"
उन्होंने कहा कि उनकी प्राथमिकता एक ऐसे युद्ध को रोकना थी जो तालिबान को सबक सिखाने के शुरूआती लक्ष्य से काफी आगे निकल गया था।