कौन है तालिबानी सरकार का कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद?
अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुके तालिबान ने मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को अपनी कार्यवाहक सरकार का प्रधानमंत्री बनाया है। अभी तक वह तालिबान की शक्तिशाली संस्था 'रहबरी शूरा' का नेतृत्व कर रहा था। बताया जा रहा है कि तालिबान के प्रमुख नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा ने उसका नाम इस पद के लिए आगे किया था। दूसरी तरफ उसका नाम संयुक्त राष्ट्र की आतंकियों की सूची में भी शामिल है। आइये, अखुंद के बारे में विस्तार से जानते हैं।
कंधार का रहने वाला है अखुंद
अखुंद की असली उम्र की जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि उसकी उम्र 60 साल या इससे अधिक हो सकती है। वह कंधार का रहने वाला है, जहां से तालिबान का जन्म हुआ था। बताया जा रहा है कि उसने पाकिस्तान के मदरसों से अपनी धार्मिक शिक्षा पूरी की और फिर हिज्ब-ए-इस्लामी के खलीस धड़े में शामिल हो गया था। उसने इस्लाम पर कई किताबें भी लिखी हैं।
विदेश मंत्री और उप प्रधानमंत्री रह चुका है अखुंद
मोहम्मद हसन अखुंद 1996-2001 के बीच तालिबान सरकार में पहले विदेश मंत्री और फिर उप प्रधानमंत्री रहा था। उसने तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के साथ काम किया था और वह उसका नजदीकी सहयोगी और राजनीतिक सलाहकार था। वह कंधार के गवर्नर और मंत्रीपरिषद के उप प्रधान का पद भी संभाल चुका है। रहरबी शूरा में रहते हुए तालिबान के सैन्य मामलों में भी उसकी सलाह ली जाती थी। अखुंद को धार्मिक व्यक्ति के तौर पर जाना जाता है।
तालिबान में सम्मान की निगाह से देखा जाता है अखुंद
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शीर्ष नेतृत्व समेत पूरे तालिबान में अखुंद को सम्मान की निगाह से देखा जाता है। उसने रहबरी शूरा में रहते हुए अहम भूमिका निभाई थी। रहबरी शूरा को क्वेटा शूरा के नाम से भी जाना जाता है और 2001 में तालिबान के सत्ता से बेदखल होने के बाद इसकी शुरुआत हुई थी। इसका काम तालिबान नेतृत्व को अहम मामलों पर सलाह देना होता है और यह पाकिस्तान के क्वेटा से चलती है।
सत्ता से बेदखल होने के बाद पाकिस्तान चला गया था अखुंद
अखुंद ने तालिबान के अन्य नेताओं की तरह मुजाहिद्दीनों के साथ मिलकर सोवियत के खिलाफ युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था, लेकिन तालिबान पर उसका धार्मिक प्रभाव शुरू से ही रहा है। उसकी सलाह पर ही बमियान में बुद्ध की प्रतिमा को तोड़ा गया था। 2001 में सत्ता से बेदखल होने के बाद भी अखुंद पाकिस्तान चला गया और वहां से अपनी गतिविधियां जारी रखी। उसने पाकिस्तान में रहते हुए तालिबान को धार्मिक मार्गदर्शन किया।
क्यों आखिरी मौके पर सामने आया अखुंद का नाम?
पहले माना जा रहा था कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को नई सरकार की कमान सौंपी जाएगी, लेकिन आखिरी मौके पर अखुंद का नाम सामने आ गया। कहा जा रहा है कि बरादर के नाम पर तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच राजनीतिक सहमति नहीं बनी। सरकार के ऐलान में हुई देरी के पीछे यही वजह मानी जा रही है। दोनों पक्षों के मध्य बीच का रास्ता निकालने के लिए अखुंद का नाम आगे किया गया है।
अखुंद की नियुक्ति के अफगानिस्तान के लिए क्या मायने?
अखुंद एक रूढिवादी व्यक्ति है, जो महिलाओं पर पाबंदियां लगाने और धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिक अधिकार न देने में विश्वास रखता है। उसकी सलाह पर पिछली तालिबान सरकार ने महिलाओं की शिक्षा पर पाबंदी लगाने, लिंगभेद लागू करने और कट्टर धार्मिक प्रतिबंध लगाने जैसे कदम उठाए थे। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि तालिबान के तमाम दावों के विपरित इस बार भी अफगान नागरिकों को कड़ी पाबंदियों का सामना करना पड़ सकता है।