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बासमती चावल को लेकर क्यों आमने-सामने हैं भारत और पाकिस्तान?
Source- Adobe Stock

बासमती चावल को लेकर क्यों आमने-सामने हैं भारत और पाकिस्तान?

Jun 13, 2021
08:02 pm

क्या है खबर?

कभी सीमा, कभी कश्मीर तो कभी आतंकवाद को लेकर आमने-सामने रहने वाले भारत और पाकिस्तान इस बार बासमती चावलों को लेकर आमने-सामने हैं। भारत ने यूरोपीय संघ (EU) में संरक्षित भौगोलिक संकेत (PGI) दर्जे के लिए आवेदन किया है और पाकिस्तान इससे बौखला गया है। आइए जानते हैं कि PGI का यह दर्जा क्या है, दोनों इसे लेकर आमने-सामने क्यों हैं और इसका बासमती के व्यापार पर क्या असर पड़ेगा।

PGI

क्या होता है PGI का दर्जा?

EU में PGI का दर्जा कृषि उत्पादों और खीने की चीजों को दिया जाता है और ये एक तरह से गुणवत्ता का सर्टिफिकेट होता है। अगर भारत को यह दर्जा मिलता है तो वो यूरोपीय देशों में 'बासमती चावल' नाम का मालिकाना हक भारत को मिल जाएगा और इससे बासमती चावल के उसके निर्यात को बहुत फायदा होगा। भारत के अलावा इकलौता बासमती निर्यातक पाकिस्तान इसका विरोध कर रहा है क्योंकि इससे उसके निर्यात को नुकसान होगा।

कारण

भारत ने क्यों मांगा बासमती का शीर्षक?

ऐतिहासिक तौर पर भारत में हिमालय के नीचे गंगा के मैदानी इलाकों में खुशबूदार बासमती चावल होते रहे हैं। आधुनिक भारत में ये इलाका हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में फैला हुआ है। इससे बासमती बेल्ट के नाम भी जाना जाता है और चावल के निर्यात से संंबंधित संगठन इस बेल्ट के अलावा अन्य कहीं पर उगने वाले बासमती जैसे चावलों को बासमती का दर्जा देने के खिलाफ रहते हैं।

जानकारी

पाकिस्तान में कहां उगता है बासमती?

पाकिस्तान में भी सदियों से बासमती चावल उगाया जा रहा है। ये पंजाब प्रांत में रवि और चेनब नदियों के बीच पड़ने वाले कलार इलाके में उगाया जाता है और इसका बाहर निर्यात होता है। इसी कारण वह भारतीय आवेदन का विरोध कर रहा है।

अन्य विवाद

क्या पहले भी हुए हैं बासमती को लेकर विवाद?

अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी कीमतों के कारण बासमती का टैग अक्सर विवादों का केंद्र रहता है और बासमती जैसी वैरायटी से बनाए गए और उस जैसी गुणवत्ता वाले चावलों को 'संरक्षित दर्जा' देने को लेकर अक्सर विवाद होता रहता है। भारत की ही बात करें तो यहां मध्य प्रदेश केंद्र सरकार से बासमती चावलों की अपनी वैरायटी के लिए संरक्षित दर्जा मांगता रहा है, हालांकि ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (AIREA) इसके खिलाफ है।

अन्य मामले

अमेरिकी कंपनी से भी लड़ा था भारत

बासमती के शीर्षक को बचाने के भारत के प्रयास बहुत पुराने हैं और 1990 के दशक में इसे लेकर भारत सरकार और अमेरिकी कंपनी 'राइसटेक' के बीच बड़ा विवाद हुआ था। राइसटेक ने बासमती स्ट्रेन से बनाई अपनी कासमती, टेक्समती और जसमती जैसी कई वैरायटी के लिए पेंटेंट मांगा था और 1997 में उसे यह मिल भी गया था। इसके बाद हुई कानूनी लड़ाई के बाद अमेरिकी सरकार ने पेंटेंट को केवल तीन वैरायटी तक सीमित कर दिया था।

जानकारी

"संरक्षित दर्जे से भौगोलिक इलाके से गहरा संबंध"

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ने भी कहा है कि संरक्षित दर्जे का भौगोलिक इलाके से गहरा संबंध है। उसका कहना है कि मध्य प्रदेश को दर्जा देने से अन्य इलाके और पाकिस्तान और चीन भी संरक्षित दर्जा मांगने लगेंगे।