कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए क्या कर रहे भारत समेत अन्य देश?
भारत, अमेरिका, चीन, रूस और यूरोपीय संघ दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश हैं। ये पांचों पर्यावरण में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं, जो ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बड़ा कारण है। इन पांचों ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए 2015 में हुए पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। अब ये देश एक बार फिर जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर रहे हैं। आइये, जानते हैं कि इन्होंने तब तक से लेकर क्या किया है।
चीन सबसे बड़ा उत्सर्जक
चीन दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है। उसका कहना है कि 2030 तक कार्बन उत्सर्जन पीक पार कर जाएगा और उसने 2060 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। सितंबर में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ऐलान किया था कि उनका देश विदेशों में कोयले से चलने वाले संयंत्र को आर्थिक मदद नहीं देगा। साथ ही 2026 के बाद से उसने कोयले के इस्तेमाल को कम करने का फैसला किया है।
क्या पर्याप्त हैं चीन के लक्ष्य?
BBC के अनुसार, चीन ने रीन्यूएबल एनर्जी के मामले में अपने कदम आगे बढ़ाए हैं। दुनिया की एक तिहाई सौर ऊर्जा का उत्पादन केवल चीन में होता है और यह पवन ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक है। हालांकि, क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर का कहना है कि चीन के लक्ष्य अपर्याप्त हैं। वहीं इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने कहा है कि चीन को 2060 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए कोयले की खपत को 80 प्रतिशत कम करना होगा।
प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के मामले में अमेरिका सबसे आगे
अमेरिका ने 2030 तक नए बिकने वालों में 50 प्रतिशत इलेक्ट्रिक व्हीकल शामिल करने और 2050 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। यहां की 80 प्रतिशत ऊर्जा फॉसिल फ्यूल्स से आती है। हालांकि, रीन्यूएबल एनर्जी के स्त्रोत बढ़ रहे हैं और पिछले दशक से कार्बन उत्सर्जन कम हो रहा है। राष्ट्रपति जो बाइडन ने फॉसिल फ्यूल का इस्तेमाल बंद करने वाली कंपनियों के लिए 150 बिलियन डॉलर के कार्यक्रम की भी घोषणा की है।
कम हो रहा है यूरोपीय संघ का कार्बन उत्सर्जन
यूरोपीय संघ ने 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य रखा है। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर का कहना है कि इसकी नीतियां और कदम वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए 'लगभग पर्याप्त' हैं और यहां 2018 के बाद से कार्बन उत्सर्जन कम हो रहा है। यूरोपीय संघ 2030 तक अपनी 40 प्रतिशत ऊर्जा को रीन्यूएबल स्त्रोतों से हासिल करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहा है।
रूस कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए क्या कर रहा है?
रूस ने 2060 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। हालांकि, क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर का कहना है कि धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए रूस की नीतिया और कदम पर्याप्त नहीं हैं।
2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करेगा भारत
बीते दो दशकों से भारत का कार्बन उत्सर्जन बढ़ा है, लेकिन यह शीर्ष उत्सर्जकों में से प्रति व्यक्ति सबसे कम कार्बन उत्सर्जित करता है। ग्लासगो सम्मेलन में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान किया था कि भारत 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। साथ ही 2030 तक रीन्यूएबल एनर्जी की अपनी क्षमता को 500 गीगावट कर देगा और कार्बन इंटेन्सिटी (कार्बन उत्सर्जन प्रति GDP यूनिट) 2005 के मुकाबले 45 प्रतिशत कम करेगा।
क्या है नेट जीरो उत्सर्जन?
नेट जीरो उत्सर्जन का मतलब है कि वातावरण में केवल उतनी ग्रीनहाउस गैसें छोड़ी जाएं जितनी पेड़ या नई टेक्नोलॉजी आदि सोख सकें, यानि वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़े नहीं। कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और फ्लोरिनेटेड गैस मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं। कोयला, पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग करने पर वातावरण में ये गैसें छूटती हैं। यातायात से लेकर उद्योगों तक में इन ईंधनों का उपयोग होता है।