कैसा रहा जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे का सफर, जिनकी हत्या कर दी गई?
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की आज गोली मारकर हत्या कर दी गई। सुबह नारा शहर में एक चुनावी सभा को संबोधित करते वक्त उन पर हमला किया गया और एक गोली उनके सीने में लगी। गोली लगते ही वे गिर पड़े और अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। आबे जापान के मौजूदा दौर के सबसे बड़े नेता थे। आइए उनके राजनीतिक सफर और नीतियों के बारे में जानते हैं।
1993 में पहली बार सांसद बने थे शिंजो आबे
सितंबर, 1954 में टोक्यो में जन्मे शिंजो आबे एक प्रबुद्ध राजनीतिक परिवार से थे और उनके नाना जापान के प्रधानमंत्री रह चुके थे। अपने पिता की मौत के बाद 1993 में वह पहली बार जापानी संसद के लिए चुने गए और उत्तर कोरिया के प्रति सख्त रुख की बदौलत राष्ट्रीय पहचान बनाने में कामयाब रहे। 2006 में वह देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने, लेकिन एक साल बाद ही बीमारी के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
2012 में दोबारा प्रधानमंत्री बने आबे
इसके पांच साल बाद आबे ने फिर से राजनीति में वापसी की और उनके नेतृत्व में उनकी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) ने 2012 के चुनाव में जीत दर्ज की। इस जीत के बाद वह दोबारा जापान के प्रधानमंत्री बने और 2020 में इस्तीफे तक इस पद पर बने रहे। दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने जापानी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए तीन चरण की आर्थिक नीति घोषित की जिसे आमतौर पर 'आबेनॉमिक्स' के नाम से जाना जाता है।
रक्षा क्षेत्र में आबे ने किए अहम बदलाव
अपने कार्यकाल के दौरान आबे ने रक्षा क्षेत्र में खर्च को बढ़ाया और द्वितीय विश्व युद्ध के समय बने उस समझौते को बदलने की कोशिश भी की जिसके कारण जापान अपनी स्थायी सेना नहीं रख सकता। वह इसमें नाकाम रहे, लेकिन वह जापान के मौजूदा सुरक्षा बलों को पहले के मुकाबले अधिक शक्ति देने में कामयाब रहे और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार जापानी बलों को विदेश जाकर लड़ने का अधिकार देने के लिए संविधान में बदलाव किया।
चीन की शक्ति को चुनौती देने के लिए भारत जैसे देशों से बढ़ाई नजदीकी
चीन की बढ़ती शक्ति को चुनौती देने के लिए राष्ट्रवादी छवि रखने वाले आबे ने भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से नजदीकियां बढ़ाईं। इसके अलावा उन्होंने अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया के क्वाड समूह को फिर से सक्रिय करने की कोशिशों को भी तेज किया। आज यह समूह एक बड़ा रूप ले चुका है और चीन को चुनौती दे रहा है। आबे को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब भी माना जाता था और मोदी उन्हें अपना दोस्त कहते हैं।
महामारी से निपटने के तरीकों को लेकर हुई थी आबे की आलोचना
आबे को अपने कार्यकाल के दौरान कई बार आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। हालिया समय में उन्हें कोरोना वायरस महामारी से निपटने के उनके तरीके पर सवाल उठे। महामारी से निपटने के लिए जापान ने शुरूआत में लॉकडाउन का इस्तेमाल किया था, लेकिन इसका उसकी अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा असर पड़ा और ये सबसे अधिक गिरावट दर्ज करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में रही। अपनी पार्टी के सदस्यों पर लगे स्कैंडल के आरोपों के कारण भी उनकी आलोचना हुई।
2020 में दिया प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा
इन आलोचनाओं के बीच आबे ने 28 अगस्त, 2020 को अचानक से प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपनी बीमारी के कारण यह इस्तीफा दिया था। आबे को युवावस्था से ही अल्सरेटिव कोलाइटिस (आंत और पाचनतंत्र से जुड़ी एक बीमारी) थी।
फरवरी में परमाणु हथियारों पर आबे के बयान ने मचा दी थी हलचल
आबे आखिरी बार परमाणु हथियारों को लेकर अपने एक बयान के लिए अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में रहे थे। इसी साल फरवरी में दिए गए अपने इस बयान में उन्होंने कहा था कि जापान को परमाणु हथियारों की अपनी नीति को बदलने के बारे में सोचना चाहिए और अमेरिका को जापानी जमीन पर परमाणु हथियार तैनात करने की अनुमति देनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि अगर यूक्रेन अपने परमाणु हथियार नहीं त्यागता तो उसे रुस के हमले का सामना नहीं करना पड़ता।