#NewsBytesExplainer: पाकिस्तान की जनता को चुनावों में भरोसा क्यों नहीं, कब-कब लगे धांधली के आरोप?
पाकिस्तान में आज आम चुनावों के नतीजे आ रहे हैं। मुख्य मुकाबला जेल में बंद इमरान खान और 4 साल बाद मुल्क लौटे नवाज शरीफ के बीच है। हालांकि, नवाज की जीत पहले से तय मानी जा रही है। कहा जा रहा है कि इमरान को जेल भेजा जाना और फिर नवाज की देश वापसी पहले से तय थी। ऐसे में चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। आइए पाकिस्तान में विवादित चुनावों का इतिहास जानते हैं।
कैसे रहे थे पाकिस्तान में आखिरी चुनाव?
पाकिस्तान में आखिरी चुनाव 2018 में हुए थे। तब इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) को जीत मिली थी। कहा जाता है कि तब पाकिस्तानी सेना ने इमरान का खुले तौर पर समर्थन किया था। चुनावों से पहले कोर्ट ने नवाज के प्रधानमंत्री पद संभालने पर रोक लगा दी थी, उनकी पार्टी के नेताओं पर भी मुकदमे चले और मीडिया पर पाबंदी लगाई गई। ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषकों ने 2018 के चुनाव को सबसे अनुचित बताया था।
2018 के चुनावों में धांधली के आरोप क्यों लगे?
PML-N और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाए थे कि मतदान स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके प्रतिनिधियों को मतगणना प्रक्रिया देखने की अनुमति नहीं दी गई, जो कि कानून का उल्लंघन है। एक स्वतंत्र पाकिस्तानी चुनाव पर्यवेक्षक ने दावा किया था कि कम से कम 35 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत का अंतर चुनावी अधिकारियों द्वारा खारिज किए गए वोटों की संख्या से भी कम था।
2002 के चुनाव में कैसे थे हालात?
2002 चुनावों से ठीक पहले परवेज मुशर्रफ ने खुद को पाकिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। कहा जाता है कि पहली बार इन चुनावों में सेना की उपस्थिति खुलकर सामने आई। सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए मुशर्रफ ने चुनावों से 3 महीने पहले पाकिस्तान मुस्लिम लीग को तोड़कर एक नया गुट बना लिया, जिसे PML-Q नाम मिला। चुनावों में नई नवेली इस पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं।
2002 के चुनावों में क्या गड़बड़ी हुई थी?
चुनावों से पहले 2 मुख्य पार्टियों पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (PML-N) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) पर कई प्रतिबंध लगाए गए। एक आदेश में कहा गया कि चुनाव लड़ने वाली पार्टी के प्रमुख को पाकिस्तान में ही मौजूद रहना होगा। डॉन न्यूज के पत्रकार जर्रार खुहरो ने कहा था, "2002 के चुनावों में अविश्वसनीय धांधली हुई थी। पुलिस, रिटर्निंग अधिकारियों से लेकर वोटों की गिनती करने वाले लोगों तक हर प्रशासनिक विभाग सरकार की ओर था।"
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- 1990 के चुनावों में हुई धांधली
पाकिस्तान में अक्टूबर, 1990 में चुनाव हुए थे। तब मुख्य मुकाबला PPP और इस्लामी जम्हूरी इत्तेहाद (IJI) के बीच था। बेहद कड़े मुकाबले में PPP की हार हुई। 2012 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि 1990 के चुनावों में धांधली हुई थी। कोर्ट ने कहा था कि तत्कालीन राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान, सेनाध्यक्ष जनरल असलम बेग और खूफिया एजेंसी ISI के असद दुर्रानी ने PPP के खिलाफ साजिश रची थी।
1985 में पार्टियों के चुनाव लड़ने पर थी रोक
1977 में जनरल जिया-उल-हक ने तख्तापलट करते हुए सत्ता पर कब्जा कर लिया था। 8 साल तक देश में चुनाव नहीं हुए। आखिरकार 1985 में चुनाव हुए, लेकिन इसमें किसी भी राजनीतिक पार्टी को भाग लेने की अनुमति नहीं थी। हर उम्मीदवार ने अपने व्यक्तिगत नाम पर चुनाव लड़ा। पत्रकार मजहर अब्बास ने डॉन से बात करते हुए कहा कि 1985 के चुनावों में न केवल धांधली हुई, बल्कि देश के समाज के ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचा।
पाकिस्तान में चुनाव और सेना का हस्तक्षेप
पाकिस्तान की सत्ता में सेना का हस्तक्षेप किसी से छिपा नहीं है। अब तक 3 बार पाकिस्तानी सेना तख्तापलट कर चुकी है। 1958 में जनरल मोहम्मद अयूब खान, 1977 में जनरल जिया उल हक और 1999 में परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट किया था। हाल ही में इमरान के प्रधानमंत्री बनने और फिर जेल में जाने के पीछे भी सेना का हाथ बताया जा रहा है। पाकिस्तान में कोई भी प्रधानमंत्री 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है।