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करगिल विजय दिवस: 21वीं वर्षगांठ पर जानिए 1999 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की कुछ महत्वपूर्ण बातें

करगिल विजय दिवस: 21वीं वर्षगांठ पर जानिए 1999 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की कुछ महत्वपूर्ण बातें

Jul 26, 2020
10:49 am

क्या है खबर?

करगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों के साथ हुए युद्ध में भारत की जीत को आज 21 साल हो गए हैं। आज ही के दिन भारतीय सेना ने वायुसेना की मदद से लद्दाख सेक्टर में करगिल की चोटियों पर वापस अपना अधिकार जमाया था। इस दिन को पूरे देश में विजय दिवस के नाम से मनाया जाता है। आइए आज इसके मौके पर हम आपको 1999 में हुए इस युद्ध से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताते हैं।

जानकारी

दो महीने से ज्यादा चला था युद्ध

जम्मू-कश्मीर के करगिल जिले में 1999 में मई से जुलाई के बीच -10 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर करगिल युद्ध हुआ था। यह युद्ध दो महीने से ज्यादा चला और 26 जुलाई, 1999 को समाप्त हुआ। युद्ध में दौरान 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे।

घुसपैठ

चरवाहों की मदद से लगाया घुसपैठ वाली जगहों का पता

करगिल का युद्ध भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी घुसपैठियों के बाहर खदेड़ने के लिए हुआ था। घुसपैठियों के भेष में पाकिस्तानी सैनिकों ने ये घुसपैठ की थी। शुरुआत में पाकिस्तानी सैनिकों को लाभ हुआ क्योंकि उन्होंने पहले ही खुद को चोटियों पर तैनात कर लिया था। भारतीय सेना ने स्थानीय चरवाहों की जानकारी के आधार पर घुसपैठ करने वाली जगहों का पता लगाया और 'ऑपरेशन विजय' का शुभारंभ किया।

योजना

वायुसेना ने बनाई थी पाकिस्तान में बम गिराने की योजना

भारतीय वायुसेना ने 26 मई को सेना के समर्थन में ऑपरेशन सफेद सागर के तहत अपना हवाई अभियान शुरू किया। भारतीय वायुसेना ने अपने मिग-21, मिग-27 और मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने करगिल युद्ध में रॉकेट और मिसाइलों से दुश्मन के गढ़ वाले ठिकानों पर हमला किया। वायुसेना ने युद्ध के दौरान पाकिस्तान में बम गिराने की योजना भी बनाई थी, लेकिन अटल बिहारी के नेतृत्व वाली तत्कालीन NDA सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी।

भारत का नुकसान

पाकिस्तान ने मार गिराए थे दो भारतीय फाइटर जेट

दरअसल, NDA सरकार ने तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एवाय टिपनिस को निर्देश दिया था कि भारतीय लड़ाकू विमानों किसी भी परिस्थिति में नियंत्रण रेखा पार नहीं करने चाहिए। हालांकि वायुसेना करगिल युद्ध के दौरान नियंत्रण रेखा पार करना चाहती थी, लेकिन इस अनुरोध को सरकार ने खारिज कर दिया। युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने दो भारतीय फाइटर जेट मार गिराए थे, जबकि एक अन्य ऑपरेशन के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

नौसेना

युद्ध में नौसेना ने भी निभाई थी अहम भूमिका

भारतीय सेना और वायुसेना के अलावा इस युद्ध में भारतीय नौसेना ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई थी। युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की तेल और ईंधन की आपूर्ति को रोकने के लिए नौसेना ने पाकिस्तानी बंदरगाहों विशेष रूप से कराची में नाकाबंदी करने के लिए ऑपरेशन तलवार शुरू किया था। पश्चिमी और पूर्वी बेड़े ने अरब सागर में गश्त की और पाकिस्तान के व्यापार मार्गों को काटने की धमकी भी दी।

गुहार

पाकिस्तान ने लगाई थी अमेरिका से हस्तक्षेप की गुहार

करगिल युद्ध से घबराए पाकिस्तान ने अमेरिका से हस्तक्षेप की गुहार लगाई, लेकिन अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने साफ-साफ मना कर दिया और कहा कि इस्लामाबाद को नियंत्रण रेखा से अपने सैनिकों को वापस बुलाना चाहिए। युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा अपने सैनिकों को वापस बुलाए जाने के बाद भारतीय सशस्त्र बलों ने बाकी चौकियों पर हमला बोल दिया और 26 जुलाई तक उन पर कब्जा कर लिया।

युद्ध

शुरुआत में पाकिस्तान ने घुसपैठ में अपना हाथ होने से किया था इनकार

पाकिस्तान ने शुरुआत में करगिल युद्ध में अपनी कोई भूमिका होने से साफ इनकार कर दिया था और कहा था कि भारत, कश्मीरी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ युद्ध लड़ रहा है। हालांकि युद्ध के बाद पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को मेडल से सम्मानित किया था। करगिल युद्ध में अधिकारिक तौर पर 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे और 1,300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे, जबकि पाकिस्तान के 357 से लेकर 453 सैनिकों की मौत हुई थी।

मौत

युद्ध में हो सकती थी मुशर्रफ और नवाज शरीफ की मौत

एक अंग्रेज़ी अखबार के अनुसार, करगिल युद्ध में अगर चूक न हुई होती तो परवेज मुशर्रफ और नवाज शरीफ की भी मौत हो सकती थी। दरअसल, 24 जून, 1999 को सुबह 08:45 बजे जब युद्ध अपने चरम पर था, उस समय भारतीय वायुसेना के एक जगुआर ने नियंत्रण रेखा के ऊपर उड़ान भरी। उसका निशाना सीधे पाकिस्तानी सेना के एक अग्रिम ठिकाने पर था और उस समय वहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ भी मौजूद थे।

जानकारी

टारगेट पर बम गिराने से चूक गया जगुआर

उसके पीछे एक अन्य जगुआर था, जिसे टारगेट पर बम गिराना था लेकिन वो चूक गया। जानकारी के अनुसार, अगर दूसरा जगुआर सही जगह बम गिराता तो पाकिस्तान के तत्कालीन जनरल परवेज मुशर्रफ और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की वहीं मौत हो गई होती।