पाकिस्तान: आम चुनाव लड़ने वाली पहली हिंदू महिला सवेरा प्रकाश कौन हैं?
पाकिस्तान में 8 फरवरी, 2024 को आम चुनाव होने जा रहे हैं। इन आम चुनावों के लिए पहली बार किसी हिंदू महिला ने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है। इस हिंदू महिला का नाम सवीरा प्रकाश है और वे खैबर पख्तूनख्वा की एक सीट से चुनाव लड़ेंगी। इसके लिए उन्होंने अपना नामांकन पत्र आधिकारिक तौर पर दाखिल कर दिया है। आइए जानते हैं कौन हैं सवीरा प्रकाश और उन्होंने क्यों लिया चुनाव लड़ने का फैसला।
कौन हैं सवीरा प्रकाश?
सवीरा ने एबटाबाद इंटरनेशनल मेडिकल कॉलेज से 2022 में स्नातक किया था। वर्तमान में वह पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) महिला विंग के महासचिव के रूप में कार्यरत हैं। वे महिलाओं की बेहतरी के लिए काम करती हैं और उनके अधिकारों की वकालत करती हैं। वे महिलाओं को एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए प्रयासरत हैं। सवीरा के पिता का नाम ओम प्रकाश हैं। उनके पिता सेवानिवृत्त डॉक्टर हैं और पिछले 35 वर्षों से PPP के सदस्य हैं।
अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना चाहती हैं सवीरा
पाकिस्तानी अखबार डॉन के अनुसार, मेडिकल क्षेत्र के परिवार से ताल्लुक रखने वाली सवीरा ने कहा कि अगर वह चुनी गईं तो अपने क्षेत्र में गरीबों और महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने के अपने पिता के नक्शेकदम पर चलेंगी। बता दें कि सवीरा ने 23 दिसंबर को खैबर पख्तूनख्वा जिले में पीके-25 की सामान्य सीट के लिए आधिकारिक तौर पर PPP की तरफ से अपना नामांकन पत्र जमा किया था।
सवीरा ने बताया क्यों लिया चुनाव लड़ने का फैसला?
सवीरा ने मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ही राजनीति में आने का सपना देखा था। उन्होंने सरकारी अस्पतालों में खराब प्रबंधन और लाचारी के अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के बाद एक निर्वाचित नेता बनने का फैसला किया। उन्होंने अखबार से बातचीत में कहा कि "मानवता की सेवा करना" उनके खून में है। बता दें कि पाकिस्तान चुनाव आयोग (ECP) द्वारा हाल में किये गए संशोधनों में सामान्य सीटों पर महिला उम्मीदवारों को 5 प्रतिशत करने की बात कही गई है।
स्थानीय लोगों का मिला समर्थन
फर्स्टपोस्ट के अनुसार, बुनेर से सोशल मीडिया इन्फ्लूएंशर इमरान नोशाद खान ने अखबार से बातचीत में सवीरा की सराहना की। उन्होंने कहा कि वह सवेरा प्रकाश का पूरे दिल से समर्थन करते हैं, भले ही उनकी राजनीतिक संबद्धता कुछ भी हो। उन्होंने कहा, "वह पारंपरिक पितृसत्ता द्वारा कायम रूढ़ियों को तोड़ रही हैं। बुनेर के पाकिस्तान में विलय के बाद एक महिला को आगे बढ़ने और चुनाव लड़ने में 55 साल लग गए।"