#NewsBytesExplainer: कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में इतने अहम क्यों हैं?
क्या है खबर?
राष्ट्रपति भवन की ओर से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा की है।
इस फैसले का लगभग सभी पार्टियों ने स्वागत किया है और बिहार की सभी पार्टियां खुद को ठाकुर की सियासी जमीन और प्रभाव के करीब दिखाने के पूरे प्रयास कर रही हैं।
आइए जानते है कि आखिर बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं और कैसे उनके फॉर्मूले से नीतीश कुमार सत्ता में बने हुए हैं।
परिचय
कर्पूरी ठाकुर कौन थे?
कर्पूरी ठाकुर का 24 जनवरी, 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव (अब कर्पूरी ग्राम) में एक नाई परिवार में जन्म हुआ था। वे छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय थे।
वे समाजवादी विचारधारा के थे। राम मनोहर लोहिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण उनके राजनीतिक गुरु थे।
वे 1967 में प्रमुखता से उस समय उभरे, जब राज्य में महामाया प्रसाद सिंहा के नेतृत्व में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में वह उपमुख्यमंत्री बने।
जननायक
कर्पूरी ठाकुर को कहा जाता था पिछड़ी जातियों का मसीहा
कर्पूरी ठाकुर दिसंबर, 1970 से जून, 1971 और दिसंबर, 1977 से अप्रैल, 1979 तक 2 बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे।
सादा जीवन और सामाजिक न्याय के पक्षधर होने के कारण वह लोकप्रिय थे। 1952 में पहली बार जीतने के बाद वह कभी कोई चुनाव नहीं हारे।
अपने कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए, जिसने उन्हें पिछड़ी जातियों का मसीहा बना दिया और उन्हें 'जननायक' की उपाधि दी गई।
आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा पाईं।
अहम
कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में इतने अहम क्यों हैं?
ठाकुर बिहार में पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण पर जोर देने वाले पहले नेता थे और उन्होंने 1970 के दशक में बिहार में पिछड़ी जातियों को संगठित किया।
उन्होंने 1978 में सरकारी सेवाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 26 प्रतिशत आरक्षण दिया। इसी से मंडल आयोग का रास्ता साफ हुआ और 1990 में देशभर में OBC को आरक्षण मिला।
बिहार की राजनीति में आज तक पिछड़ी जातियां हावी हैं, इसलिए ठाकुर इतने अहम बने हुए हैं।
राजनीतिक गुरु
कर्पूरी लालू और नीतीश दोनों के राजनीतिक गुरु
कर्पूरी ठाकुर को बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके लालू प्रसाद यादव और मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक गुरू भी माना जाता है।
दोनों ने ही ठाकुर की राजनीतिक विरासत को भुनाया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 1990 के दशक के बाद बागडोर पिछड़े वर्गों के हाथों से फिसल न जाए।
नीतीश बिहार में नौकरियों के आरक्षण के संदर्भ में ठाकुर के फॉर्मूले को लागू करके ही लंबे समय तक पद पर बने रहे हैं।
नक्शेकदम
नीतीश कैसे चले कर्पूरी के नक्शेकदम पर?
दरअसल, ठाकुर ने पिछड़ी जातियों को 'अपेक्षाकृत अधिक पिछड़ा' और 'अपेक्षाकृत कम पिछड़ा' में विभाजित किया था।
नीतीश ने पिछड़े वर्गों को अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में बांटकर ठाकुर के फॉर्मूले का इस्तेमाल किया।
नीतीश ने लालू के वोट बैंक का मुकाबला करने के लिए खुद को EBC नेता के रूप में स्थापित किया और सरकारी नौकरियों में EBC और OBC को क्रमशः 18 प्रतिशत और 12 प्रतिशत आरक्षण दिया।
अधिक जानकारी
न्यूजबाइट्स प्लस
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ठाकुर को भारत रत्न दिया जाना लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का एक बड़ा कदम है और उसने अति पिछड़ों के वोटबैंक को साधने की कोशिश की है।
दरअसल, बिहार में EBC की आबादी करीब 36 प्रतिशत है और ठाकुर की जाति इसी वर्ग में आती है। इसके अलावा OBC की 27 प्रतिशत आबादी है।
भाजपा ने OBC को पहले से ही साधा हुआ है और अब उसे EBC को भी साधा है।