कोरोना वैक्सीनेशन: जर्मनी ने लोगों से दो अलग-अलग वैक्सीनों की खुराक लेने को कहा
पिछले कुछ समय से इस बात पर बहस हो रही है क्या दो अलग-अलग कोरोना वायरस वैक्सीनों की खुराक लेने से संक्रमण के खिलाफ बेहतर सुरक्षा मिलती है। कई देशों में इसे लेकर प्रयोग चल रहा है। बीते महीने भारत में भी सरकार ने संकेत दिए थे कि इसका ट्रायल शुरू हो सकता है। अब जर्मनी ने इस दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए अपने नागरिकों को अलग-अलग वैक्सीन की खुराकें लगवाने को कहा है।
ऐसी सिफारिशें लागू करने वाला पहला देश बना जर्मनी
CNN के अनुसार, वैक्सीनेशन पर बनी जर्मनी की स्टैंडिंग कमेटी STIKO ने कहा है कि जिन लोगों को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की पहली खुराक लगी है, उन्हें दूसरी खुराक किसी mRNA वैक्सीन की लगवानी चाहिए, भले ही उनकी उम्र कितनी भी हो। इस तरह की सिफारिशें लागू कर जर्मनी दुनिया का पहला देश बन गया है, जिसने एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की पहली खुराक ले चुके लोगों को फाइजर या मॉडर्ना (दोनों ही mRNA वैक्सीन) की दूसरी खुराक लेने को कहा है।
एंजेला मार्केल ने भी ली हैं अलग-अलग वैक्सीन की खुराकें
जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल ने खुद दो अलग-अलग वैक्सीनों की खुराक ली थीं। उन्होंने एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की खुराक लगवाने के बाद मॉडर्ना वैक्सीन की दूसरी खुराक ली थी। STIKO ने कहा कि मौजूदा अध्ययन के नतीजे दिखाते हैं कि अलग-अलग वैक्सीनों की खुराक (मिक्स्ड वैक्सीन) से बेहतर सुरक्षा मिलती है। जर्मनी से पहले कनाडा ने भी एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन ले चुके लोगों को दूसरी खुराक के लिए mRNA वैक्सीन को प्राथमिकता देने को कहा था।
मिक्स्ड वैक्सीन से मिलती है अधिक सुरक्षा- शोध
कनाडा की समिति ने कहा था कि वह मिक्स्ड वैक्सीन से बेहतर सुरक्षा मिलने के बात कहने वाले सबूतों के आधार पर यह सिफारिश कर रही है। पिछले महीने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध में भी यह बात निकलकर सामने आई थी कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के बाद फाइजर वैक्सीन की खुराक लेने से कोरोना के खिलाफ बेहतर प्रतिरक्षा मिलती है। शोध में पता चला कि चार सप्ताह के अंतराल पर ये खुराकें देने से शरीर में ज्यादा एंटीबॉडीज बनती हैं।
यूरोप पर मंडरा रहा तीसरी लहर का खतरा
वैक्सीन को लेकर जर्मनी की नई सिफारिशें ऐसे समय पर लागू हुई हैं, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि अगस्त में यूरोपीय देशों पर कोरोना संक्रमण की नई लहर का खतरा मंडरा रहा है। पाबंदियों से छूट, संक्रामक वेरिएंट का प्रसार और वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार इसके कारण हो सकते हैं। संगठन का कहना है गर्मियों की समाप्ति तक कोरोना का डेल्टा वेरिएंट यहां प्रमुखता से फैलना वाला स्ट्रेन बन सकता है।
भारत में शुरू हो सकता है ऐसा ट्रायल
बीते महीने खबर आई थी कि भारत सरकार यह जानने के लिए ट्रायल शुरू करने की योजना बना रही है कि क्या लाभार्थी को अलग-अलग वैक्सीनों की खुराकें देने से प्रभावकारिता बढ़ती है और क्या ऐसा करने से उन खुराकों का असर लंबे समय तक रहेगा? तब कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ वीके पॉल ने कहा था कि इस मुद्दे पर वैज्ञानिक समझ बढ़ रही है और भारत को भी इस दिशा में सोचना चाहिए।