पब्लिक ट्रांसपोर्ट को पूरी तरह फ्री करने वाला दुनिया का पहला देश बना लग्जमबर्ग
क्या है खबर?
लग्जमबर्ग दुनिया का पहला देश बन गया है जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करना बिल्कुल मुफ्त हो गया है।
ट्रैफिक जाम कम करने के उद्देश्य से सरकार ने 29 फरवरी से देश के पब्लिक टांसपोर्ट को फ्री कर दिया है।
ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर ने बताया कि ऐसा पहली बार हुआ है जब पूरे देश में ऐसी योजना लागू की गई है।
इस वजह से हर व्यक्ति सालाना लगभग 8,000 रुपये की बचत करने में सफल हो सकेगा।
सर्वे
अधिकतर लोग इस्तेमाल करते हैं निजी कारें
देश में फ्री ट्रांसपोर्ट होने के बावजदू ट्रेन के फर्स्ट क्लास कोच और रात में चलने वाली कुछ बसों में सफर करने के लिए यात्रियों को पैसे देने होंगे।
एक सर्वे के मुताबिक, यहां अधिकतर लोग अपनी कारों से सफर करते हैं। महज 32 प्रतिशत लोग काम पर जाने के लिए बस और 19 प्रतिशत लोग ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं।
अभी तक कई शहरों में ट्रांसपोर्टेशन फ्री था, लेकिन पूरे देश में फ्री पहली बार हुआ है।
लग्जमबर्ग
जाम लगने की वजह क्या है?
लग्जमबर्ग में लंबे समय से ट्राम के लिए निर्माण कार्य चल रहा है। इस वजह से सड़कों पर अकसर जाम लगता है।
यहां निर्माण कार्य कई सालों से जारी है। हालांकि, कई हिस्सों में ट्राम संचालन शुरू हो गया है, लेकिन कई इलाकों में लंबे समय तक काम चलेगा।
जानकारी के लिए बता दें कि लग्जमबर्ग यूरोप के सबसे छोटे देशों में एक है। बेल्जियम, जर्मनी और फ्रांस की सीमा से घिरे इस देश की जनसंख्या 6.14 लाख है।
खर्च
प्रोजेक्ट पर आएगी इतनी लागत
इस पूरे प्रोजेक्ट पर 3 अरब, 17 करोड़, 57 लाख रुपये का खर्च आएगा, जो अब सरकार वहन करेगी।
हालांकि, लग्जमबर्ग में यात्रा करना पहले भी महंगा नहीं था। यात्री 160 रुपये देकर पूरे दिन का पास बनवा सकते थे।
सरकार चाहती है कि आने वाले पांच सालों में 20 प्रतिशत ज्यादा लोग सफर के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें।
बता दें, लग्जमबर्ग के लगभग दो लाख काम के लिए बेल्जियम, फ्रांस और जर्मनी से आना-जाना करते हैं।
कारण
लग्जमबर्ग में पड़ोसी देशों की तुलना में सस्ती हैं कारें
लग्जमबर्ग में ट्रैफिक की समस्या के साथ-साथ बस और रेल की व्यवस्था भी अच्छी नहीं है।
दूसरी तरफ इसके पड़ोसी देशों के मुकाबले यहां पेट्रोल और डीजल कारें सस्ती हैं। इसलिए लोग बस और ट्रेन की बजाय कार लेना ज्यादा पसंद करते हैं।
साथ ही चूंकि लोग दूसरे देशों में काम के लिए जाते हैं इसलिए वो उन्हीं देशों से अपनी कारों में ईंधन भरवाते हैं। इस वजह से सरकार को उस तरह से भी नुकसान उठाना पड़ता है।