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    #NewsBytesExplainer: क्या है अमेरिका का ऋण संकट और इसका क्या असर पड़ सकता है?
    अमेरिका ऋण संकट का सामना कर रहा है

    #NewsBytesExplainer: क्या है अमेरिका का ऋण संकट और इसका क्या असर पड़ सकता है?

    लेखन सकुल गर्ग
    May 23, 2023
    08:50 pm

    क्या है खबर?

    अमेरिका बैंकिंग संकट के बाद अब ऋण संकट से जूझ रहा है।

    अमेरिकी सरकार अगर ऋण सीमा को बढ़ाने या निलंबित करने में कामयाब नहीं होती है तो अमेरिका डिफॉल्ट कर जाएगा, जो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए काफी घातक साबित हो सकता है।

    अमेरिका में ऋण सीमा को 1917 से अब तक कई बार बढ़ाया जा चुका है, लेकिन इस बार स्थिति अधिक नाजुक है।

    आइए इस पूरे संकट को समझने की कोशिश करते हैं।

    संकट

    ऋण सीमा का मौजूदा संकट क्या है?

    अमेरिकी खजाने में पैसों की कमी के कारण सरकार के पास देश के बिलों का भुगतान करने के लिए अधिक धन नहीं बचा है।

    अमेरिकी सरकार के पास ऋण सीमा को 1 जून तक बढ़ाने का समय है, जिसके बाद देश डिफॉल्ट हो जाएगा।

    इसका अर्थ है कि यदि ऋण सीमा को बढ़ाया या निलंबित नहीं किया जाता है तो अमेरिकी सरकार ऋण लेने और इससे अपनी बकाया राशि का भुगतान करने में सक्षम नहीं होगी।

    कारण 

    क्या है मौजूदा संकट का कारण? 

    मौजूदा ऋण संकट के पीछे अमेरिका का राजकोषीय घाटा एक मुख्य कारण है।

    अमेरिकी सरकार की आय व्यय से कम होने के कारण उसे ऋण लेना पड़ता है। ऋण की एक सीमा होती है और इसे समय-समय पर बढ़ाया जाता है, जिससे सरकार और अधिक ऋण ले सके और अपने खर्चों का भुगतान करती रहे।

    अमेरिका में कांग्रेस (संसद) देश को चलाने के लिए कार्यकारी शाखा के लिए बजट और धन को मंजूरी देती है।

    संकट 

    ऋण सीमा बढ़ाने पर कहां पेंच फंसा?

    रिपब्लिकन पार्टी अप्रैल में एक विधेयक लेकर आई थी, जिसमें अमेरिका की मौजूदा ऋण सीमा को 1.5 लाख करोड़ डॉलर बढ़ाने का प्रावधान था।

    हालांकि, इस विधेयक की शर्तों को लेकर उसके और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच सहमति नहीं बन पा रही है।

    रिपब्लिकन नेताओं का कहना है कि उनके द्वारा प्रस्तावित उपाय अर्थव्यवस्था को उबारने में मदद करेंगे, जबकि डेमोक्रेट्स का आरोप है कि विधेयक के जरिए कल्याणकारी योजनाओं में कटौती की जा रही है।

    असर 

    ऋण सीमा न बढ़ने का अमेरिका पर क्या असर पड़ेगा?

    ऋण संकट खत्म नहीं होने और अमेरिका के डिफॉल्ट होने का उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।

    मूडीज एनालिटिक्स के एक अनुमान के मुताबिक, अगर ऋण सीमा को एक सप्ताह के अंदर नहीं बढ़ाया गया तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था काफी तेजी के साथ कमजोर होगी। इसके कारण करीब 15 लाख नौकरियां भी खतरे में पड़ सकती हैं।

    CNBC के अनुसार, अमेरिका आर्थिक मंदी की चपेट में आ जाएगा, जिसके कारण शेयर बाजार में भी अस्थिरता देखने को मिलेगी।

    अनुमान 

    डिफॉल्ट होने पर अमेरिका में और क्या-क्या हो सकता है?

    इन्वेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैक्स ने अनुमान लगाया है कि यदि अमेरिका अपने ऋण संकट को जल्द से जल्द हल नहीं कर पाता है तो देश में 3 सप्ताह के अंदर नकदी समाप्त हो जाएगी।

    उसका अनुमान है कि अमेरिका के खजाने में 8 या 9 जून तक सिर्फ 30 अरब डॉलर (2.48 लाख करोड़ रुपये) की नकदी बचेगी, जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए काफी कम है।

    डिफॉल्ट 

    क्या पहले भी डिफॉल्ट हो चुका है अमेरिका?

    अमेरिका ने अभी तक केवल एक बार अपने ऋण पर डिफॉल्ट किया है। हालांकि, यह किसी राजनीतिक संकट की जगह लेखा-जोखा की त्रुटि के कारण हुआ था।

    CNBC के मुताबिक, अमेरिका में 1979 में ऋण पर डिफॉल्ट हो गया था। तब बही-खाते में तकनीकी गड़बड़ी के परिणामस्वरूप बांड भुगतान में देरी हुई थी। हालांकि, इस गलती को जल्द ठीक कर लिया गया था और इससे कुछ ही निवेशक प्रभावित हुए थे।

    समाधान 

    संकट से निपटने के लिए राष्ट्रपति बाइडन क्या कर रहा है?

    अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिकी संसद के स्पीकर और रिपब्लिकन पार्टी के नेता केविन मैक्कार्थी के साथ देश की ऋण सीमा को बढ़ाने पर चर्चा करने के लिए सोमवार को बैठक की। हालांकि, बैठक में कोई समाधान नहीं निकल सका।

    बाइडन ने कहा कि वह डिफॉल्ट को रोकने और अमेरिका की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं।

    ऋण संकट के चलते बाइडन ने अपना ऑस्ट्रेलिया दौरा भी रद्द कर दिया है।

    असर 

    अमेरिका की स्थिति का दुनिया पर क्या असर होगा?

    अमेरिका के ऋण पर डिफॉल्ट होने से दुनिया के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा और बड़ा आर्थिक संकट पैदा हो सकता है।

    अमेरिका को इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचने वाली चीनी फैक्ट्रियों के ऑर्डर समाप्त किए जा सकते हैं, जबकि अमेरिका के खजाने के स्विस निवेशकों को भी नुकसान उठाना होगा।

    अपनी मुद्रा के विकल्प के रूप में डॉलर का इस्तेमाल करने वाले देशों को भी परेशानी का सामना करना होगा।

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