#NewsBytesExplainer: कर्नाटक में क्या हैं जातिगत समीकरण और पार्टियों के लिए किसे साधना अहम?
पिछले करीब एक महीने से कर्नाटक में जारी चुनाव प्रचार आज थम गया। राज्य में 10 मई को विधानसभा चुनाव का मतदान होगा और 13 मई को नतीजे घोषित किए जाएंगे। प्रचार के दौरान कर्नाटक में जातियों को लेकर खूब चर्चा रही। इसकी वजह है कि राज्य में सत्ता तक पहुंचने के लिए जातियों को साधना सभी पार्टियों के लिए बेहद जरूरी है। आइए कर्नाटक में जातियों की स्थिति और उनकी अहमियत को समझते हैं।
सबसे पहले जानिए कर्नाटक में जातियों की स्थिति
2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक की कुल आबादी 6.11 करोड़ है। इनमें सबसे ज्यादा 5.13 करोड़ हिन्दू हैं। इसके बाद 79 लाख मुस्लिम, 11 लाख ईसाई और 4 लाख जैन समुदाय के लोग हैं। राज्य में लिंगायत समुदाय की सबसे ज्यादा 17 फीसदी आबादी है। इसके बाद करीब 14 प्रतिशत लोग वोक्कालिग्गा समुदाय से हैं। अनुसूचित जाति (SC) की आबादी 17 प्रतिशत के आसपास है। कुरबा समुदाय की आबादी भी 7 प्रतिशत के करीब है।
कितनी सीटों पर किस समुदाय का प्रभाव?
लिंगायत समुदाय का राज्य की 67 सीट, वोक्कालिग्गा का 48 सीट, SC का 36 सीट, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का 24 सीट, कुरबा का 10 सीट, ईसाईयों का 10 सीट और मुस्लिमों का 50 सीट पर प्रभाव माना जाता है। हालांकि, ये केवल मोटा-मोटा अनुमान है। अलग-अलग सीटों पर अलग-अलग जातियों और समुदायों का प्रभाव कम-ज्यादा हो सकता है। जैसे राज्य में दलितों के लिए 36 सीट आरक्षित हैं, लेकिन वो इससे भी ज्यादा सीटों पर प्रभाव रखते हैं।
टिकट बंटवारे में पार्टियों ने कैसे रखा जातियों का ख्याल?
लिंगायत समुदाय के 68 उम्मीदवारों को भाजपा, 46 को कांग्रेस और 43 को जनता दल सेक्युलर (JDS) ने टिकट दिया है। वोक्कालिग्गा समुदाय के 42-42 लोग कांग्रेस और भाजपा की टिकट पर मैदान में हैं, वहीं JDS ने 54 वोक्कालिग्गों को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा और JDS ने SC समुदाय से 36-36 उम्मीदवारों औऱ कांग्रेस ने 37 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। ST समुदाय से कांग्रेस ने 18, भाजपा ने 17 और JDS ने 14 लोगों को टिकट दिए हैं।
मुस्लिमों को किस पार्टी के कितनी टिकट मिलीं?
भाजपा ने इस बार चुनाव में एक भी मुस्लिम या ईसाई उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है। पिछले चुनाव में भी भाजपा ने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था। कांग्रेस ने 15 और JDS ने 22 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है। कांग्रेस ने कुरबा समुदाय से 15, भाजपा ने 7 और JD(S) ने 7 लोगों को टिकट दिया है। भाजपा के 13, कांग्रेस के 7 और JD(S) के 2 उम्मीदवार ब्राह्मण समुदाय से हैं।
राज्य के बड़े नेता किन समुदायों से?
राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई लिंगायत समुदाय से आते हैं। राज्य के अब तक के 23 मुख्यमंत्रियों में से 10 मुख्यमंत्री इसी समुदाय से रहे हैं। भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से हैं, लेकिन इस बार वे चुनावी मैदान से दूर हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और वोक्कालिग्गा समुदाय से हैं। कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार भी इसी समुदाय से हैं। भाजपा के पास वोक्कालिग्गा समुदाय से कोई बड़ा चेहरा नहीं है।
पारंपरिक तौर पर किस पार्टी को किस समुदाय का वोट मिलता है?
चुनाव में लिंगायत समुदाय भाजपा के पक्ष में खड़ा नजर आता है। 1990 तक ये समुदाय कांग्रेस के साथ था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लिंगायत मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल से अचानक इस्तीफा ले लिया था। तब से ये समुदाय भाजपा का वोटर बन गया। वोक्कालिग्गा समुदाय को आमतौर पर JDS और कांग्रेस का वोटर माना जाता है। मुस्लिम समुदाय भी इन दोनों पार्टियों को वोट करता है। राज्य का OBC आमतौर पर बिखरा हुआ रहता है।
मठों की भी राजनीति में खास भूमिका
कर्नाटक में 600 से भी ज्यादा मठ हैं। आमतौर पर चुनाव में अगर किसी मठ का समर्थन उम्मीदवार को मिल जाता है तो उस मठ के अनुयायी भी उसी उम्मीदवार को वोट करते हैं, इसीलिए चुनावों से पहले सभी पार्टियों के बड़े नेता मठों में माथा टेकने जाते हैं। लिंगायत समुदाय का मुख्य मठ सिद्ध गंगा, वोक्कालिग्गा समुदाय का मुख्य मठ आदिचुनचुनगिरी और कुरबा समुदाय का मुख्य मठ श्रीगैरे है।
पिछले चुनाव में क्या रहे थे नतीजे?
2018 के चुनाव में भाजपा को 104, कांग्रेस को 80 और JDS को 37 सीटें मिली थीं। चुनाव के बाद कांग्रेस और JDS ने मिलकर सरकार बनाई और एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। हालांकि, जुलाई 2019 में कांग्रेस और JDS के कई विधायकों के इस्तीफे के बाद सरकार गिर गई। इसके बाद भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाई। जुलाई, 2021 में येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और बसवराज बोम्मई नए मुख्यमंत्री बने।