अमेरिका: कैसे चुना जाता है दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति? जानें राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया
अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने जा रहे हैं और इन चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन के बीच मुकाबला होगा। दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति को चुनने के लिए होने वाले इन चुनावों पर दुनियाभर की नजरें रहती हैं और इसकी प्रक्रिया इतनी सरल नहीं होती जितनी बाहर से दिखती है। चलिए फिर आपको अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की पूरी प्रक्रिया बताते हैं।
राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए ये तीन शर्तें पूरी करना अनिवार्य
अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए किसी भी व्यक्ति के लिए तीन शर्तों को पूरा करना अनिवार्य है। पहली शर्त ये है कि उसकी पैदाइश अमेरिका की होनी चाहिए, दूसरी कि उसकी उम्र कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए और आखिरी शर्त है कि वह व्यक्ति पिछले 14 साल से अमेरिका में रह रहा हो। चुनाव में मुख्य टक्कर रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों में होती है, हालांकि अन्य कोई भी चुनाव लड़ सकता है।
कैसे अपने उम्मीदवार चुनती हैं पार्टियां?
रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी दो तरीके से राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों का चुनाव करती हैं- कॉकस और प्राइमरी। इनमें पार्टी का कोई भी सदस्य खड़ा हो सकता है। कॉकस में एक पार्टी के समर्थक एक जगह इकट्ठा होकर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते हैं और उम्मीदवारों की बात सुनने के बाद हाथ उठाकर उन्हें समर्थन देते हैं। वहीं प्राइमरी में बैलेट वोटिंग के जरिए उम्मीदवारों का चयन किया जाता है। ज्यादातर राज्य प्राइमरी का उपयोग करते हैं।
सम्मेलन में होता है अंतिम उम्मीदवार का ऐलान
प्राइमरी और कॉकस में उम्मीदवारों को जितने वोट मिलते हैं, उसके आधार पर दोनों पार्टियां अपने सम्मेलन में एक विजेता का ऐलान करती हैं जो पार्टी का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार होता है। यह उम्मीदवार अपने उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन करता है। इसके बाद दोनों पार्टियों के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार देशभर में प्रचार करते हैं और उनके बीच विभिन्न मुद्दों पर कई चरण की लाइव बहस भी होती है।
इलेक्टर्स के जरिए राष्ट्रपति चुनते हैं अमेरिकी लोग
अंतिम चरण में नवंबर के पहले मंगलवार को राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग होती है। इस बार पहला मंगलवार 3 नवंबर को है और इसी दिन वोटिंग होगी। इस वोटिंग में लोग सीधे राष्ट्रपति का चुनाव नहीं करते, बल्कि इलेक्टर्स के जरिए राष्ट्रपति चुनते हैं। इस व्यवस्था को 'इलेक्टोरल कॉलेज' कहा जाता है। हर राज्य में जनसंख्या समेत अन्य चीजों के हिसाब से इलेक्टर्स की एक निश्चित सीमा निर्धारित होती है और पूरे देश से कुल 538 इलेक्टर्स चुने जाते हैं।
कैसे काम करता है इलेक्टोरल कॉलेज?
अमेरिका में इलेक्टोरल व्यवस्था 'सब कुछ विजेता के नाम' प्रणाली के आधार पर काम करती है, यानि राज्य में जिस राष्ट्रपति उम्मीदवार को ज्यादा वोट मिलते हैं, उसके समर्थक सभी इलेक्टर्स को विजेता माना जाता है। उदाहरण के तौर पर कैलिफोर्निया से 55 इलेक्टर्स चुने जाते हैं और जिस उम्मीदवार को यहां सबसे अधिक वोट मिलेंगे, ये सभी 55 इलेक्टर्स उसके खाते में चले जाएंगे। केवल दो राज्य- मेन और नेब्रास्का- में वोटों के अनुपात में इलेक्टर्स चुने जाते हैं।
270 इलेक्टर्स जीतने वाला उम्मीदवार बनात है विजेता, उसी दिन आ जाता है नतीजा
सभी राज्यों में मिलाने के बाद जो उम्मीदवार 538 इलेक्टर्स के आधे से अधिक यानि 270 इलेक्टर्स जीतने में कामयाब रहता है, उसे विजेता माना जाता है। चुनाव की रात ही विजेता के बारे में पता चल जाता है, लेकिन वास्तविक तौर पर इलेक्टर्स 14 दिसंबर को अपना वोट डालकर राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं और अगले साल 20 जनवरी को विजेता उम्मीदवार राष्ट्रपति पद की शपथ लेता है।