अंतरिक्ष में तेजी से बढ़ रहा मलबा, क्यों जरूरी है इसे हटाना?
अंतरिक्ष में अलग-अलग देशों के अपने सैटेलाइट हैं, जो समय-समय पर निष्क्रिय होने लगते हैं। इस दौरान ये सैटेलाइट छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित होकर पृथ्वी के चारों तैरने लगते हैं। पृथ्वी के चारों ओर बढ़ता यह मलबा भविष्य में अंतरिक्ष की खोज में एक बाधा बन सकता है, जिसके लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक चिंतित हैं। अंतरिक्ष में फैले मलबे को स्पेस जंक भी कहा जाता है। आइये जानते हैं कि इसे हटाना क्यों जरूरी है।
स्पेस जंक को SSN द्वारा किया जाता है ट्रैक
जानकारी के मुताबिक, पृथ्वी के चारों ओर अंतरिक्ष में तैर रहे मलबे की निगरानी रक्षा विभाग के वैश्विक अंतरिक्ष निगरानी नेटवर्क (SSN) सेंसर द्वारा की जाती है। यह स्पेस जंक के 27,000 से अधिक टुकड़े को ट्रैक करता है। ये टुकड़े ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में हैं और लगभग 15,700 मील प्रति घंटे की रफ्तार से ग्रह के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं। इनमें से कुछ टुकड़े एक सेंटीमीटर से बड़े हैं, जो सैटेलाइट से टकरा सकते हैं।
अंतरिक्ष अभियान में रोड़ा बनेगा स्पेस जंक
अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) की सुरक्षा और कार्यक्षमता को बनाए रखने के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम लगातार स्पेस जंक पर नजर रख रही है, जो पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में और इसके बाहर मौजूद है। वैज्ञानिकों की मानें तो अगर इस कचरे को साफ नहीं किया गया तो यह बहुत तेजी से पृथ्वी को चारों ओर से कैद कर लेगा और भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए बड़ा संकट बन सकता है।
अंतरिक्ष से मलबे को हटाने के लिए ESA का अभियान
अंतरिक्ष में तैर रहे मलबे को हटाने की जिम्मेदारी पहली बार यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) ने ली है। इसके अभियान में क्लियरस्पेस नाम का स्विस स्टार्टअप मदद कर रही है, जो जल्द ही मिशन की तैयारी शुरू कर देगी। यह अंतरिक्ष से मलबे को हटाने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन होगा। इस मिशन को 2025 में लॉन्च करने की योजना है। ESA के नए स्पेस सेफ्टी प्रोग्राम के तहत इस मिशन की शुरूआत की जाएगी।
कैसे काम करेगा यह अभियान?
क्लियरस्पेस -1 मिशन के तहत वेस्पा को करीब 800 किमी से 660 किमी की ऊंचाई की कक्षा में छोड़ा जाएगा और दूसरी तरफ 500 किलोमीटर की निचली कक्षा में क्लियरस्पेस -1 चेजर को लॉन्च किया जाएगा। यह कक्षा दोनों में तैर रहे मलबे को निशाना बनाएंगे और ESA की निगरानी में इनके रोबोटिक आर्म्स मलबे को पकड़ेंगे। इस प्रक्रिया के बाद चेजर और वेस्पा दोनों को डी-ऑर्बिट करके वायुमंडल में जला दिया जाएगा।