एलियंस की खोज के लिए तैरने वाले रोबोट्स बना रही है NASA, स्मार्टफोन जितना होगा आकार
क्या है खबर?
स्मार्टफोन के आकार के तैरने वाले रोबोट्स की मदद से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज कर सकती है।
छोटे रोबोट्स ब्रहस्पति ग्रह के चांद यूरोपा और शनि ग्रह के चांद एन्सेलाडस पर कई किलोमीटर मोटी बर्फ की परत के नीचे तैरकर एलियंस का पता लगा सकेंगे।
रोबोट्स को बर्फ को पिघलाने वाले प्रोब्स के साथ भेजा जा सकता है, जिनसे ये बर्फ की मोटी परत को भेदते हुए उसकी गहराई में छुपे राज खोज निकालेंगे।
कॉन्सेप्ट
तैरने वाले रोबोट्स के कॉन्सेप्ट को मिली फंडिंग
दक्षिणी कैलिफोर्निया में NASA की जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी (JPL) में रोबोटिक्स मैकेनिकल इंजीनियर ईथन स्केलर ने इन रोबोट्स का कॉन्सेप्ट तैयार किया है।
स्केलर के सेंसिंग विद इंडिपेंडेंट माइक्रो-स्विमर्स (SWIM) कॉन्सेप्ट को हाल ही में NASA इनोवेटिव एडवांस्ड कॉन्सेप्ट्स (NIAC) प्रोग्राम के फेज II के तहत 600,000 डॉलर की फंडिंग मिली है।
इस फंडिंग के साथ स्केलर और उनकी टीम अगले दो साल में रोबोट्स के 3D प्रिंटेड प्रोटोटाइप्स बनाएंगे और उनमें सुधार करेंगे।
रोबोट्स
केवल 12 सेमी होगी रोबोट्स की लंबाई
SWIM के अर्ली-स्टेज कॉन्सेप्ट में नुकीले रोबोट्स का जिक्र है, जिनकी लंबाई करीब 12 सेंटीमीटर और वॉल्यूम 60 से 75 क्यूबिक सेंटीमीटर होगा।
उन्हें इस तरह डिजाइन का जाएगा कि करीब चार दर्जन रोबोट्स 25 सेंटीमीटर डायमीटर वाले क्रायोबॉट (बर्फ को भेदने वाली प्रोब) में आ जाएंगे और ये साइंस पेलोड वॉल्यूम का केवल 15 प्रतिशत हिस्सा लेंगे।
इस तरह पेलोड में दूसरे छोटे लेकर शक्तिशाली वैज्ञानिक उपकरणों को शामिल किया जा सकेगा, जिससे महत्वपूर्ण डाटा इकट्ठा किया जा सके।
सेंसर
हर रोबोट में लगा होगा माइक्रो-कंप्यूटर
कॉन्सेप्ट में बताया गया है कि हर रोबोट में अपना प्रपल्शन सिस्टम और ऑनबोर्ड कंप्यूटर होगा।
इसके अलावा अल्ट्रासाउंड कम्युनिकेशंस सिस्टम, तापमान, खारेपन, एसिड और दबाव को मापने के लिए भी इनमें ढेरों सेंसर्स दिए जाएंगे।
स्टडी के फेज II में बायोमार्कर्स से जुड़ा डाटा जुटाने और मॉनीटर करने के लिए केमिकल सेंसर्स को रोबोट का हिस्सा बनाने पर काम किया जाएगा।
इन्हें बर्फ की गहराई में ले जाने का काम न्यूक्लियर बैटरी इस्तेमाल करने वाले क्रायोबॉट का होगा।
मिशन
साल 2024 में बड़े अंतरिक्ष अभियान की तैयारी
NASA का यूरोपा क्लिपर अंतरिक्ष अभियान साल 2024 में लॉन्च करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें ब्रहस्पति के चांद पर कई उपकरण भेजे जाएंगे।
साल 2030 में यूरोपा पर पहुंचने के बाद ये उपकरण ढेर सारा वैज्ञानिक डाटा पृथ्वी पर भेजेंगे।
क्रायोबॉट्स की मदद से यूरोपा के जमे हुए समुद्र की जांच का कॉन्सेप्ट NASA के साइंटिफिक एक्सप्लोरेशन सबसर्फेस ऐक्सेस मैकेनिज्म फॉर यूरोपा (SESAME) प्रोग्राम और NASA टेक्नोलॉजी डिवेलपमेंट प्रोग्राम ने मिलकर तैयार किया है।
तरीका
तैरने वाले रोबोट्स के साथ ऐसे काम करेगा क्रायोबॉट
यूरोपा पर पहुंचने के बाद बर्फ के अंदर तैरने वाले रोबोट्स पहुंचाने वाला क्रायोबॉट सतह पर मौजूद लैंडर के कम्युनिकेशन टेथर के जरिए जुड़ा रहेगा।
सतह पर मौजूद यह लैंडर ही धरती के मिशन कंट्रोलर्स के साथ संपर्क में रहेगा।
इसका मतलब है कि लैंडर से जुड़ा क्रायोबॉट बर्फ को पिघलाते हुए वहां तक जाएगा, जहां नीचे समुद्र में तैरने वाले रोबोट्स छोड़े जा सकते हैं।
हालांकि, इसकी जगह बार-बार नहीं बदली जा सकेगी।
उम्मीद
तैरने वाले रोबोट्स के साथ बेहतर होगी खोज
SWIM टीम के वैज्ञानिक सैमुअल हॉवेल ने कहा, "क्या हो अगर समुद्र तक पहुंचने में लगने वाले कई साल के बाद आप गलत जगह उतर जाएं? क्या हो अगर वहां जीवन के संकेत हों, लेकिन आपके उतरने की जगह से दूर हों? अपने साथ तैरने वाले रोबोट्स ले जाकर हम इससे कहीं ज्यादा खोज कर पाएंगे, जितनी एक क्रायोबॉट करने में सक्षम होगा।"
तैरने वाले ढेरों रोबोट्स यूरोपा में ज्यादा दूरी तक फैल जाएंगे और ज्यादा डाटा वैज्ञानिकों को भेजेंगे।
जानकारी
न्यूजबाइट्स प्लस
जिस तरह चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है, ठीक उसी तरह यूरोपा ब्रहस्पति ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाता है। सूर्य से दूरी ज्यादा होने के चलते वह पूरी तरह बर्फ से ढका हुआ है और उसकी सतह का औसत तापमान माइनस 160 डिग्री सेल्सियस है।