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    #NewsBytesExplainer: चंद्रयान-3 अब कहां है और कैसा होगा आगे का इसका सफर?
    चंद्रयान-3 अभी पृथ्वी के चौथे ऑर्बिट में है और 25 जुलाई को इसे अगले ऑर्बिट में प्रवेश कराया जाएगा

    #NewsBytesExplainer: चंद्रयान-3 अब कहां है और कैसा होगा आगे का इसका सफर?

    लेखन रजनीश
    Jul 24, 2023
    12:51 pm

    क्या है खबर?

    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने 14 जुलाई, 2023 को चंद्रयान-3 को लॉन्च किया। यह मिशन अभी चांद के सफर पर है। इसका उद्देश्य चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग है, जिसके लिए इसे अभी और सफर करना है।

    ISRO के अभी तक के ट्वीट के मुताबिक, चंद्रयान-3 अभी चौथे ऑर्बिट में है और अगले ऑर्बिट में इसे प्रवेश कराने के लिए 25 जुलाई की तारीख तय की गई है।

    आइये इस बारे में विस्तार से जानते हैं।

    लैंडिंग

    पृथ्वी के बाद चांद के ऑर्बिट के चक्कर लगाएगा चंद्रयान-3

    चांद की सतह पर पहुंचने से पहले चंद्रयान-3 पृथ्वी के ऑर्बिट के बाद अब चांद के ऑर्बिट के चक्कर लगाएगा।

    चंद्रयान-3 जैसे-जैसे अपने आगे के सफर पर बढ़ता जाएगा, उसी तरह ISRO की चुनौती भी बढ़ती जाएगी।

    पृथ्वी के ऑर्बिट के चक्कर लगाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चंद्रयान-3 को चांद के ऑर्बिट में ले जाने के लिए वैज्ञानिक धीरे-धीरे इसकी गति और धरती से इसकी दूरी को बढ़ा रहे हैं।

    ऑर्बिट

    पृथ्वी के ऑर्बिट से निकलकर लूनर ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी में जाएगा

    चंद्रयान-3 को 31 जुलाई और 1 अगस्त के बीच पृथ्वी के ऑर्बिट से निकालकर चांद की तरफ बढ़ाया जाएगा। यानी यह मिशन लंबी लूनर ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी में चला जाएगा। इस रास्ते को पृथ्वी और चंद्रमा के बीच का हाइवे कह सकते हैं।

    चंद्रयान-3 लूनर ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी में 5 दिन यात्रा करेगा। इसके बाद इसे 5-6 अगस्त को चांद के ऑर्बिट में भेजा जाएगा।

    चांद के ऑर्बिट में पहुंचने पर चंद्रयान-3 पर यहां का गुरुत्वाकर्षण भी काम करना शुरू कर देगा।

    अलग

    चांद के ऑर्बिट को पकड़ना है जरूरी

    चांद मिशन को लूनर ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी से चांद की सतह पर पहुंचाना चुनौती भरा काम है। अगर चंद्रयान-3 चांद के ऑर्बिट को नहीं पकड़ पाया तो यह चांद के पीछे चला जाएगा।

    यदि सबकुछ तय प्लान के हिसाब से ठीक ढंग से चलता रहा तो 17 अगस्त को प्रोपल्शन सिस्टम लैंडर रोवर से अलग होगा।

    मॉड्यूल के अलग होने के बाद लैंडर रोवर को चांद के 100X30 KM की ऑर्बिट में भेजा जाएगा और यहीं से लैंडिंग प्रक्रिया शुरू होगी।

    चुनौती

    इस बार बढ़ाया गया है लैंडिंग क्षेत्रफल

    लैंडिंग की प्रक्रिया को 23-24 अगस्त को अंजाम दिया जाएगा। यह मिशन का सबसे चुनौतीपूर्ण काम है।

    सॉफ्ट लैंडिंग को सफल बनाने के मिशन के डिजाइन से लेकर सॉफ्टवेयर आदि में कई बदलाव किए गए हैं।

    लैंडर के पैरों को मजबूत किया गया है। इसमें कई नए सेंसर्स जोड़े गए हैं और पर्याप्त पावर सप्लाई के लिए बड़े सोलर पैनल लगाए गए हैं।

    इसके अलावा इस बार लैंडिंग क्षेत्रफल भी बढ़ाकर 4X2.5 किलोमीटर रखा गया है।

    लक्ष्य

    सॉफ्ट लैंडिंग के बाद लैंडर से बाहर निकलेगा रोवर

    लैंडिंग के समय लैंडिंग साइट पर कुछ दिक्कत होने पर चंद्रयान-3 का लैंडर वैकल्पिक साइट पर भी जाने में सक्षम है।

    सफल सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर लैंडर से बाहर निकलेगा और तय किए गए लक्ष्यों को प्राप्त करेगा।

    चंद्रयान-3 के चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिग के साथ ही अमेरिका, चीन और रूस के बाद चांद की सतह पर उतरने की उपलब्धि हासिल करने वाला भारत चौथा देश होगा।

    संभावना

    दक्षिणी ध्रुव पर होगी लैंडिंग

    चंद्रयान-3 की लैंडिंग चांद के दक्षिणी ध्रुव पर होगी। हालांकि, दक्षिणी ध्रुव ज्यादा ऊबड़-खाबड़ और जोखिम भरे इलाके वाले क्षेत्र हैं। इस इलाके की लैंडिंग से वैज्ञानिकों को चांद की सतह पर पानी मिलने की उम्मीद है।

    दक्षिणी ध्रुव के कई हिस्सों पर हजारों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती, जिससे ये इलाके पूरी तरह से अंधेरे में हैं। यहां पर तापमान -248 डिग्री सेल्सियस से नीचे जा सकता है, जिससे यहां बर्फ और पानी की संभावना है।

    सुराग

    इस वजह से दिलचस्प है दक्षिणी ध्रुव

    ISRO की वेबसाइट के मुताबिक, दक्षिणी ध्रुव इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि छाया में रहने वाला चांद की सतह का क्षेत्र उत्तरी ध्रुव की तुलना में बहुत बड़ा है।

    दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ऐसे गड्ढे हैं, जो पूरी तरह से ठंडे हैं और इनसे चांद की उत्‍पत्ति के साथ ही सौरमंडल के शुरुआती दिनों के जीवाष्म और अन्य सुराग भी मिल सकते हैं।

    इसके आस-पास स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों में पानी की मौजूदगी की संभावना हो सकती है।

    जानकारी

    मानव लैंडिंग के लिए माना जाता है अच्छा टारगेट

    वैज्ञानिक दक्षिणी ध्रुव को भविष्य में मानव लैंडिंग के लिए भी अच्छा टारगेट मानते हैं, क्योंकि रोबोटिक रूप से यह चांद पर सबसे ज्यादा गहन जांचा गया क्षेत्र है और यहां काफी संभावनाएं हैं।

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