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    #NewsBytesExplainer: चंद्रयान-2 मिशन के साथ क्या हुआ था और यह कितना सफल रहा? 
    ISRO का चंद्रयान-2 मिशन कितना कामयाब रहा?

    #NewsBytesExplainer: चंद्रयान-2 मिशन के साथ क्या हुआ था और यह कितना सफल रहा? 

    लेखन प्रमोद कुमार
    Jul 12, 2023
    04:47 pm

    क्या है खबर?

    हर बीतते पल के साथ चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग करीब आ रही है। अगर सब कुछ ठीक रहता है तो 14 जुलाई को दोपहर 2:35 मिनट पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्रयान-3 को लॉन्च कर देगा।

    यह चांद की सतह पर उतरने की भारत की दूसरी कोशिश है। चार साल पहले भी भारत ने चंद्रयान-2 के साथ ऐसी कोशिश की थी, लेकिन यह पूरी तरह सफल नहीं हो पाई।

    आइये जानते हैं कि चंद्रयान-2 के साथ क्या हुआ था।

    चंद्रयान-2

    सबसे पहले चंद्रयान-2 के बारे में जानें 

    चंद्रयान-2 चांद की सतह पर उतरने की भारत की पहली कोशिश थी। इस मिशन की लागत 978 करोड़ रुपये थी।

    इससे पहले 2008 में ISRO ने चंद्रयान-1 लॉन्च किया था, जिसने चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया था। हालांकि, यह चांद की सतह पर नहीं उतरा था।

    चंद्रयान-2 के सहारे चांद की सतह पर मैग्निशियम, कैल्शियम जैसे खनिज तत्वों को खोजने, पानी की मौजूदगी को तलाशने और चांद की बाहरी परत की जांच करने का लक्ष्य था।

    चंद्रयान-2

    चंद्रयान-2 में क्या-क्या उपकरण भेजे गए थे? 

    चंद्रयान-2 मॉड्यूल में एक ऑर्बिटर, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान शामिल था।

    ऑर्बिटर का काम चांद की सतह से 100 किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगाना था, जबकि लैंडर को चांद के दक्षिण ध्रुव के पास सतह पर उतरना और रोवर प्रज्ञान को चांद की सतह पर प्रयोग करने थे।

    तब ISRO ने कहा था कि अगर यह मिशन सफल रहता है तो चांद के बारे में समझ बढ़ेगी और यह भारत और पूरी मानवता के हक में होगा।

    लैंडिंग

    लॉन्चिंग देखने के लिए ISRO कंट्रोल रूम पहुंचे थे प्रधानमंत्री 

    22 जुलाई, 2019 को लॉन्च हुआ चंद्रयान-2 लाखों किलोमीटर की दूरी तय कर 6-7 सितंबर, 2019 की रात को चांद की सतह के करीब पहुंच गया था। इसे रात में 1:52 बजे चांद की सतह पर उतरना था।

    इस लैंडिंग पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई थीं और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद यह लैंडिंग देखने के लिए ISRO मुख्यालय पहुंचे थे।

    उन समेत करोड़ों लोगों को चंद्रयान-2 की चांद पर सफल लैंडिंग की उम्मीद थी।

    झटका

    ...और पल भर में टूट गईं उम्मीदें 

    चंद्रयान-2 मिशन में भेजे गए लैंडर को चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी। सॉफ्ट लैंडिंग यानी नियंत्रित स्पीड से तय स्थान पर आराम से उतरना था। इसके लिए इसकी स्पीड को हजारों किमी प्रति घंटे से कम कर 7 किमी प्रति घंटे पर लाना था।

    लाखों किलोमीटर की दूरी तय कर यह चांद की सतह से लगभग 2 किलोमीटर ही दूर रहा था कि लैंडिंग के तय समय से 90 सेकंड पहले इसका कंट्रोल रूम से संपर्क टूट गया।

    चंद्रयान-2

    आखिरी वक्त पर क्या हुआ था? 

    माना गया कि आखिरी समय पर लैंडर की स्पीड पर नियंत्रण नहीं हो पाया और यह तेज झटके से चांद की सतह पर उतरा। इससे इसे नुकसान पहुंचा और यह कंट्रोल रूम से अपना संपर्क खो बैठा।

    दरअसल, ऐसे मिशन में सॉफ्ट लैंडिंग बहुत चुनौतीपूर्ण होती है। क्रैश लैंडिंग की स्थिति में लैंडर को नुकसान पहुंचता है और मिशन पूरी तरह सफल नहीं होता।

    चंद्रयान-2 से करीब 5 महीने पहले इजरायल को भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा था।

    हौसला-अफजाई

    निराश ISRO वैज्ञानिकों का दुनिया ने बढ़ाया हौसला 

    लैंडर से संपर्क टूटने के कारण ISRO के वैज्ञानिक निराश हो गए। इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों के बीच जाकर उनका हौसला बढ़ाया।

    प्रधानमंत्री ने कहा कि इस घड़ी में पूरा देश उनके साथ है और चांद तक पहुंचना भी कोई छोटी सफलता नहीं है।

    इसी तरह अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने ISRO की सराहना करते हुए कहा कि उसे चंद्रयान-2 से प्रेरणा मिली है। नासा ने भविष्य में साथ काम करने की इच्छा भी जताई थी।

    सवाल

    क्या चंद्रयान-2 मिशन पूरी तरह असफल हुआ था? 

    चंद्रयान-2 मिशन पूरी तरह असफल नहीं हुआ था। इसने चांद तक पहुंचने की भारत की क्षमता तो परखी ही, साथ ही इसमें भेजा गया ऑर्बिटर सही तरीके से काम कर रहा है।

    यह ऑर्बिटर सफलतापूर्वक चांद के चारों ओर चक्कर लगा रहा है और वहां से जरूरी सूचनाएं और तस्वीरें ISRO को भेज रहा है।

    यह कुल 7.5 साल तक काम करता रहेगा और इस दौरान चांद से जुड़ी अहम सूचनाएं भेजेगा।

    चंद्रयान-3 के लिए इसी ऑर्बिटर का इस्तेमाल होगा।

    जानकारी

    ISRO ने मिशन को बताया था 98 प्रतिशत सफल 

    तत्कालीन ISRO प्रमुख के सिवन ने चंद्रयान-2 पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि इस मिशन ने अपना 98 प्रतिशत लक्ष्य पूरा कर लिया है। इसमें भेजे गए ऑर्बिटर में आठ उपकरण लगे हैं और ये बिल्कुल ठीक तरह से काम कर रहे हैं।

    सबक

    गिरकर फिर खड़े होने की कहानी है चंद्रयान-3 

    चंद्रयान-2 से मिले सबक को सीखकर अब ISRO चंद्रयान-3 के साथ आगे बढ़ रहा था।

    चंद्रयान-2 के बाद के सिवन ने कहा था, "मैं आपको भरोसा देता हूं कि ISRO अपना सारा अनुभव, ज्ञान और तकनीकी हुनर लगाकर भविष्य में चांद की सतह पर उतरने में कामयाब होगा। अगर आप असफल नहीं हो रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि आप मेहनत नहीं कर रहे हैं।"

    अब चंद्रयान-3 गिरकर फिर खड़े होने की कहानी है।

    न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)

    अंतरिक्ष मिशनों को लेकर क्या सोचते थे विक्रम साराभाई? 

    विक्रम साराभाई को भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम का जनक कहा जाता है। चंद्रयान-2 में भेजे गए लैंडर का नाम विक्रम साराभाई के नाम पर ही रखा गया था।

    उन्होंने 1960 के दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत को लेकर हो रही आलोचनाएं के जवाब में कहा था, "अंतरिक्ष प्रोग्राम का देश और लोगों की बेहतरी में सार्थक योगदान है। भारत को चाहिए कि समाज और लोगों की समस्या को सुलझाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करे।"

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