#NewsBytesExplainer: बॉलीवुड फिल्मों में क्यों होता है इंटरवल और असल में क्या हैं इसके मायने?
हर शुक्रवार बॉलीवुड की कोई न कोई फिल्म रिलीज होती है। हम अमूमन हीरो, हीरोइन या निर्माता-निर्देशक पर ध्यान देते हैं। कुछ चीजें हैं, जो हमें अक्सर हर फिल्म में दिखती हैं, लेकिन हम उन्हें तरजीह नहीं देते। ऐसी ही एक चीज है इंटरवल, जिसके होते ही आपके मन में शायद पॉपकॉर्न खाने का मन करता होगा, लेकिन क्या कभी आपके मन में ख्याल आया कि आखिर ये इंटरमिशन या इंटरवल होता क्यों है? आइए आपको विस्तार से बताते हैं।
तकनीकी कारण के चलते भारतीय फिल्मों में दिए जाते हैं इंटरवल
कई लोगों को लगता है कि इंटरवल भारतीय फिल्मों में इसलिए दिए जाते हैं क्योंकि भारत में लंबी अवधि की फिल्में बनती हैं। ऐसे में बीच में दर्शकों को ध्यान में रखकर कुछ समय का ब्रेक दिया जाता है ताकि उस बीच वे अपनी सीट से उठ सकें और कुछ खाने-पीने का लुत्फ उठा सकें। हालांकि, इसके पीछे तकनीकी वजह है। दरअसल, पहले सिनेमाघरों में फिल्में रील में चला करती थीं और हम तकनीकी रूप से उतने समृद्ध नहीं थे।
रील बदलने के लिए लिया जाता था ब्रेक
यह उस दौर की बात है्, जब देश में सिनेमाघरों की शुरुआत ही हुई थी। फिल्में रील में चला करती थीं तो एक रील के खत्म हाेते ही दूसरी रील को लगाने में कम से कम 5 से 10 मिनट लगते थे। इन रील्स के बिना फिल्मों की स्क्रीनिंग संभव ही नहीं थी। प्रोजेक्शनिस्ट को रील बदलने के लिए समय चाहिए होता था, इसी काम के लिए मुख्य रूप से फिल्मों के बीच में ब्रेक लिया जाता था।
इंटरवल का फायदा उठाकर बाजारवाद ने जमाई अपनी पैठ
मशीनें इतनी गर्म हो जाती थीं कि उन्हें ठंडा करना भी जरूरी होता था। 10 मिनट के ब्रेक में दर्शक खाने-पीने की चीजें तलाशने लगे। इसी बीच बाजारवाद ने अपनी पैठ जमाई। इंटरवल से सबसे ज्यादा फायदा थिएटर वालों का होता है। इस समय सबसे ज्यादा लोग थिएटर से खाने-पीने के चीजें खरीदते हैं। इंटरवल में होने वाली कमाई थिएटर की कुल आय का बड़ा हिस्सा होती है क्योंकि टिकट का ज्यादातर पैसा डिस्ट्रीब्यूटर और सरकार के पास जाता है।
क्या कहते हैं दर्शक और समीक्षक?
दर्शकों और कई फिल्म समीक्षकों का तो यह मानना है कि बॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल की बात तब समझ आती है, जब उन फिल्मों की लंबाई 3 घंटों के आसपास या उससे ज्यादा रहती है। गानों की वजह से बॉलीवुड फिल्में काफी लंबी होती हैं और इस वजह से इन फिल्मों में इंटरवल का होना जरूरी हो जाता है क्योंकि लंबाई ज्यादा होने के कारण फिल्म देखते हुए बोरियत आने लगती है। इससे बचने के लिए इंटरवल लिया जाता है।
विदेशी फिल्मों में क्यों नहीं होता इंटरवल?
हॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल या इंटरमिशन जैसी कोई चीज होती ही नहीं है। इनमें इंटरमिशन न होने की मुख्य वजह इनको लिखे जाने का तरीका है। दरअसल, ये फिल्में 'थ्री-एक्ट स्ट्रक्चर' को ध्यान में रखकर लिखी जाती हैं। पहले एक्ट में किरदारों को स्थापित किया जाता है। दूसरे में संघर्ष या टकराव के बारे में बात की जाती है और आखिरी एक्ट में टकराव का समाधान होता है। इस वजह से बीच में ब्रेक लेने का कोई मतलब नहीं बनता।
फिल्म की अवधि है बड़ी वजह
बॉलीवुड का मानदंड हॉलीवुड में लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि हॉलीवुड फिल्में 2 घंटे से कम समय की होती हैं। इन फिल्मों में दर्शकों को ब्रेक की जरूरत भी नहीं पड़ती। वहां फिल्म शुरू होने से पहले ही खाने-पीने की चीजें लेने का चलन है। हॉलीवुड की तुलना में बॉलीवुड फिल्में काफी लंबी होती हैं। कई फिल्में तो 4 घंटे या फिर उससे ज्यादा की भी रही हैं। 'संगम' और 'मेरा नाम जोकर' में तो 2-2 इंटरवल थे।
'इंटरवल' की प्रथा के खिलाफ नहीं जाना चाहते मल्टीप्लेक्स मालिक
कई लोग मानते हैं कि फूड बिजनेस में मुनाफे के कारण मल्टीप्लेक्स मालिक इंटरवल की प्रथा के विरुद्ध नहीं जाना चाहते हैं। एक अनुमान के अनुसार, सिनेमा हॉल या मल्टीप्लेक्स मालिक को 1 टिकट से 25-30 रुपये की कमाई होती है। उनकी कमाई का 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा खाने और पीने की चीजों से आता है। एक अनुमान के मुताबिक, एक फिल्म शो के दौरान मल्टीप्लेक्स वाले 15,000 से 20,000 रुपये खाने-पीने की चीजों की बिक्री से कमाते हैं।
'इत्तेफाक' थी बिना इंटरवल वाली हिंदी सिनेमा की पहली फिल्म
यश चोपड़ा की आखिरी फिल्म 'इत्तेफाक' पहली ऐसी फिल्म थी, जिसमें पहली बार कोई इंटरवल नहीं था। इसी फिल्म के बाद यश ने अपनी खुद की कंपनी यशराज फिल्म्स की नींव डाली। राजेश खन्ना अभिनीत इस फिल्म की कुल अवधि 1 घंटा 41 मिनट है। सिर्फ 1 हफ्ते में इस फिल्म की कहानी तैयार हो गई थी और यश ने पूरी फिल्म 28 दिन में शूट कर डाली थी। फिल्म 'इत्तेफाक' की अधिकतर कहानी पूरी एक रात में घटती है।