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    #NewsBytesExplainer: महाराष्ट्र निकाय चुनाव अकेले क्यों लड़ेगी उद्धव ठाकरे की शिवसेना? ये हैं कारण
    महाराष्ट्र निकाय चुनावों में उद्धव ठाकरे की शिवसेना अकेले उतरेगी

    #NewsBytesExplainer: महाराष्ट्र निकाय चुनाव अकेले क्यों लड़ेगी उद्धव ठाकरे की शिवसेना? ये हैं कारण

    लेखन आबिद खान
    Jan 11, 2025
    05:03 pm

    क्या है खबर?

    महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में हार के बाद से कयास लग रहे थे कि विपक्षी महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन बिखर सकता है।

    अब निकाय चुनावों से ठीक पहले उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने बड़ा ऐलान कर दिया है। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव अकेले लड़ेगी। उन्होंने कहा कि गठबंधन से संगठन के विकास में बाधा आती है।

    आइए जानते हैं शिवसेना (UBT) ने ये फैसला क्यों लिया है।

    बयान

    राउत बोले- गठबंधन लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए

    राउत ने कहा, "INDIA और MVA गठबंधन लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए है। गठबंधन में व्यक्तिगत पार्टी के कार्यकर्ताओं को अवसर नहीं मिलते हैं और यह संगठनात्मक विकास में बाधा डालता है। हम अपनी ताकत के दम पर मुंबई, ठाणे, नागपुर और अन्य नगर निगमों, जिला परिषदों और पंचायतों के चुनाव लड़ेंगे। पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पार्टी को संकेत दिए हैं कि उसे अकेले ही चुनाव लड़ना चाहिए। हम अपने कार्यकर्ताओं को पूरा मौका देंगे।"

    कार्यकर्ता

    कार्यकर्ताओं का था दबाव

    गठबंधन में सीट बंटवारे के चलते कई दावेदारों को मौका नहीं मिलता है।

    कथित तौर पर शिवसेना (UBT) के कई पूर्व पार्षदों ने पार्टी में दरकिनार किए जाने पर नाराजगी जताई है। कहा जा रहा है कि कई भाजपा और एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना के संपर्क में भी हैं।

    उद्धव को पार्टी कार्यकर्ताओं ने सुझाव दिया था कि निकाय चुनावों में अकेले ही उतरना चाहिए, ताकि निकाय स्तर पर नया और युवा नेतृत्व तैयार किया जा सके।

    पवार परिवार

    पवार परिवार को लेकर अटकलें

    विधानसभा चुनावों के बाद चर्चाएं हैं कि शरद पवार और अजित पवार फिर से साथ आ सकते हैं। हाल ही में दोनों गुटों के नेताओं ने इसके संकेत दिए हैं।

    शरद पवार के जरिए ही शिवसेना और कांग्रेस साथ आए थे। अगर ऐन वक्त पर पवार परिवार में मतभेद सुलझ जाते हैं तो इसका सीधा असर शिवसेना (UBT) के प्रदर्शन पर पड़ेगा।

    इस वजह से उद्धव पहले से ही अपनी सियासी पिच तैयार करने में जुटे हैं।

    कांग्रेस

    कांग्रेस का ढीला रवैया

    राउत ने आज ही कहा, "हम INDIA के लिए एक संयोजक भी नियुक्त नहीं कर पाए। यह अच्छा नहीं है। गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बैठक बुलाना कांग्रेस की जिम्मेदारी थी।"

    इससे पहले भी कांग्रेस के ढीले रवैये की सहयोगी पार्टियों ने आलोचना की है। विधानसभा चुनाव के दौरान भी आखिरी वक्त तक कांग्रेस और शिवसेना में करीब 30 सीटों पर पेच फंसा रहा। दोनों पार्टियों को इसका नुकसान भी हुआ।

    शिवसेना

    शिवसेना का गढ़ रही है BMC

    बृहन्मुंबई नगरपालिका (BMC) ठाकरे परिवार का गढ़ रही है। यहां पर 1995 से शिवसेना का कब्जा है। ऐसे में अगर उद्धव गठबंधन में रहते तो उन्हें सीटें साझा करनी पड़ती।

    पार्टी की मजबूत स्थिति जानते हुए भी गठबंधन में रहना और फिर सीट साझा करना सोचा-समझा फैसला नहीं था।

    सीट बंटवारे से समर्पित कार्यकर्ता पार्टी से दूर जा सकते थे। इस वजह से भी उद्धव ने अकेले ही मैदान में उतरने का फैसला किया।

    हिंदुत्व

    हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर हो सकेगी पार्टी 

    शिवसेना शुरू से ही हिंदुत्व के मुद्दों की राजनीति करती रही है। मुंबई और कोकण इलाकों में पार्टी के मजबूत जनाधार की ये बड़ी वजह है। MVA में सहयोगी पार्टियों की नाराजगी के डर से उद्धव खुलकर हिंदुत्व पर नहीं बोल पा रहे थे।

    हाल ही में बाबरी विध्वंस की बरसी पर एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर भी सहयोगी पार्टियों ने नाराजगी जताई थी।

    गठबंधन से बाहर होकर पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे पर और मुखर हो सकती है।

    चुनाव

    करीब 3 साल से नहीं हुए निकाय चुनाव

    महाराष्ट्र में देश की सबसे अमीर BMC समेत 27 नगर निगमों के लिए चुनाव होना हैं। 2 नई निगमों- इच्छालकरंजी और जालना में भी पहली बार चुनाव होंगे।

    राज्य में पिछले पौने 3 साल से स्थानीय निकायों के चुनाव नहीं हुए हैं, क्योंकि आरक्षण को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

    इसी महीने मामले की अगली सुनवाई होनी है। माना जा रहा है कि इसमें कुछ फैसला आ सकता है।

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