राजस्थान: क्यों आमने-सामने हैं अशोक गहलोत और सचिन पायलट और कब क्या-क्या हुआ?

राजस्थान के सियासी संकट में रोजाना नए मोड़ आ रहे हैं और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने पास पूर्ण बहुमत होने का दावा कर रहे हैं और राज्यपाल से विधानसभा सत्र बुलाने का अनुरोध किया है। वहीं सचिन पायलट का खेमा गहलोत सरकार के अल्पमत में होने का दावा कर रहा है और अपनी सदस्यता बचाने में लगा हुआ है। ये पूरा मामला क्या है, आइए आपको बताते हैं।
राजस्थान में लड़ाई अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच है। दोनों के बीच 2018 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने से ही सहज नहीं है, जब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने गहलोत को पायलट पर तरजीह देते हुए मुख्यमंत्री बना दिया था। इसके बाद ही कई बार दोनों नेता खुलेआम एक-दूसरे के खिलाफ बयान दे चुके हैं और पायलट गहलोत पर सरकार में उन्हें किनारे करने का आरोप लगाते रहे हैं।
पायलट और गहलोत के बीच ये टकराव जुलाई की शुरूआत में तब चरम पर पहुंच गया, जब राज्य सरकार गिराने की साजिश के एक मामले में पायलट को गहलोत के अंतर्गत काम करने वाले राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) से समन मिला। इसके बाद पायलट ने बगावत कर दी और कहा कि वह ये अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। तभी से वह अपने खेमे के विधायकों के साथ गुरूग्राम के दो होटलों में डेरा डाले हुए हैं।
पायलट की बगावत के बाद कांग्रेस ने व्हिप जारी कर विधायकों को विधायक दल की दो बैठकों में शामिल होने को कहा। पायलट और उनका खेमा इन बैठकों में शामिल नहीं हुआ, जिसके बाद कांग्रेस ने विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी से पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए पायलट समेत 19 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की। कांग्रेस की शिकायत पर स्पीकर ने बागियों को नोटिस जारी किया और इसी नोटिस के खिलाफ पायलट खेमा कोर्ट पहुंचा है।
राजस्थान हाई कोर्ट आज मामले पर अपना फैसला सुनाने वाला था, लेकिन ऐन मौके पर पायलट खेमे ने मामले में केंद्र सरकार की राय जानने की अपील दायर कर दी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। इस अपील को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने बागियों की सदस्यता पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। स्पीकर की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार करने की बात कही है।
मौजूदा घटनाक्रम से साफ है कि पायलट खेमे के पास 19 विधायक हैं, वहीं गहलोत खेमे में 103 विधायक हैं। गहलोत को 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में बहुमत साबित करने का पूरा भरोसा है और इसी कारण वह विधानसभा सत्र बुला बहुमत साबित करना चाहते हैं, ताकि पायलट के और विधायक तोड़ने के खतरे को खत्म किया जा सके। उन्होंने राज्यपाल से सत्र बुलाने को कहा है और ऐसा न करने पर धरने की धमकी दी है।
बागी विधायकों की सदस्यता रद्द होना सीधे तौर पर गहलोत सरकार के भविष्य से जुड़ा है। अगर बागियों की सदस्यता रद्द होती है तो विधानसभा का संख्याबल गिरकर 181 पर आ जाएगा और बहुमत का आंकड़ा 92 होगा। 103 विधायकों के समर्थन वाला गहलोत खेमा आसानी से बहुमत साबित कर देगा। लेकिन अगर उनकी सदस्यता बरकरार रहती है तो कांग्रेस को बहुमत साबित करने के लिए 101 वोट चाहिए होंगे और कुछ विधायक इधर-उधर होने पर उसकी सरकार गिर जाएगी।
पूरे संकट के बीच कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सचिन पायलट को वापस लाने की कोशिश भी की थी, हालांकि वह इसमें नाकाम रहा। खबरों के अनुसार, पायलट एक साल के अंदर मुख्यमंत्री बनाने की शर्त पर ही वापस आने को तैयार थे।
बगावत से पहले 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के 107 विधायक थे और उसकी सरकार को 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल था। इसके अलावा राष्ट्रीय लोकदल और भारतीय ट्राइबल पार्टी के तीन विधायकों ने भी गहलोत सरकार को समर्थन दिया हुआ था। इसका मतलब गहलोत सरकार को कुल 123 विधायकों का समर्थन हासिल था। वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के विधानसभा में 72 विधायक हैं। भाजपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन विधायक हैं।