#NewsBytesExplainer: महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल खत्म, मुख्यमंत्री भी तय नहीं; फिर क्यों नहीं लगा राष्ट्रपति शासन?
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के नतीजे आए हुए 6 दिन हो गए हैं। नतीजों में महायुति गठबंधन को बहुमत मिला है, लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई चेहरा तय नहीं हो पाया है। इस बीच महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल भी खत्म हो चुका है और एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया है। इस दौरान चर्चाएं हैं कि राज्य में राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगाया गया। आइए इसकी वजह जानते हैं।
26 नवंबर को खत्म हो चुका विधानसभा का कार्यकाल
दरअसल, महाराष्ट्र की 14वीं विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को समाप्त हो चुका है। संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक, मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले नई सरकार का गठन किया जाना चाहिए। वहीं, 26 नवंबर को ही एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। फिलहाल राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने शिंदे को कार्यवाहक मुख्यमंत्री नियुक्त किया है। नई सरकार के गठन तक शिंदे महाराष्ट्र के कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
राष्ट्रपति शासन पर क्या कहता है कानून?
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन तब लगाया जाता है, जब कोई पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में न हो या फिर सरकार गठन से पहले विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो जाए। इसके अलावा राज्य में गठबंधन टूटने से सरकार अल्पमत में आ जाए और मुख्यमंत्री निर्धारित समय के भीतर बहुमत साबित न कर पाए। ऐसी स्थिति में राज्यपाल राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 365 में राष्ट्रपति शासन का जिक्र है।
महाराष्ट्र में क्यों नहीं लगाया गया राष्ट्रपति शासन?
दरअसल, चुनाव आयोग ने नई विधानसभा के सभी विधायकों के नाम अधिसूचना के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार के राजपत्र में प्रकाशित कर दिए हैं। अधिकारियों ने राज्यपाल को नए विधायकों के नाम के साथ राजपत्र की प्रतियां भी सौंप दी हैं। जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 73 के मुताबिक, चुने गए सदस्यों की अधिसूचना राज्यपाल के सामने प्रस्तुत करने के बाद विधानसभा का विधिवत गठन हो जाता है। इस हिसाब से 15वीं विधानसभा अस्तित्व में आ चुकी है।
इस वजह से भी नहीं लगा राष्ट्रपति शासन
चुनाव नतीजे आने और विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद राज्यपाल केंद्र सरकार को राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट भेज सकता है। हालांकि, ये रिपोर्ट तभी भेजी जाती है, जब राज्यपाल को लगता है कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता है और कोई भी गठबंधन या पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। चूंकि, महाराष्ट्र में महायुति को स्पष्ट बहुमत मिला है, इसलिए परिस्थितियां ऐसी नहीं हैं।
अपने आप राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या कहते हैं जानकार?
कहा जा रहा था कि कार्यकाल खत्म होते ही अपने आप राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा। हालांकि, जानकारों का कहना है कि ऐसी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है, क्योंकि पहले भी कई बार विधानसभा कार्यकाल खत्म होने के बाद मुख्यमंत्री ने शपथ ली है।
क्या पहले भी शपथ में देरी हुई है?
2004 में विधानसभा का कार्यकाल 19 अक्टूबर को खत्म हो गया था, लेकिन मुख्यमंत्री ने 1 नवंबर को शपथ ली थी। इसी तरह 2009 में 11वीं विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर को खत्म हुआ था, जबकि मुख्यमंत्री द्वारा शपथ 7 नवंबर को ली गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2019 में भी 13वीं विधानसभा का कार्यकाल 9 नवंबर को खत्म हो गया था, लेकिन शपथ ग्रहण समारोह 28 नवंबर को हुआ था।
कितने दिन बाद मुख्यमंत्री को शपथ लेना जरूरी?
TV9 से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील आशीष पांडे ने कहा, "भारत के संविधान में इसको लेकर कोई स्पष्ट नियम नहीं है, लेकिन विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का जरूर होता है। महाराष्ट्र में विधानसभा का कार्यकाल इसी नवंबर के अंतिम सप्ताह में पूरा हो गया है। अगर कोई पार्टी सरकार बनाने का दावा नहीं करती है तो राज्यपाल सबसे ज्यादा मत जीतने वाली पार्टी को सरकार बनाने के लिए कहते हैं।"
महाराष्ट्र में 3 बार लग चुका है राष्ट्रपति शासन?
महाराष्ट्र में 3 बार राष्ट्रपति शासन लगा है। पहली बार 17 फरवरी, 1980 से लेकर अगले 112 दिनों तक राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन था। तब शरद पवार मुख्यमंत्री थे और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद 28 सितंबर, 2014 से 31 अक्टूबर, 2014 राष्ट्रपति शासन लगा था। 2019 में विधानसभा चुनावी नतीजों के बाद उथलपुथल के दौरान 12 से 23 नवंबर तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा।