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    कश्मीर: राज्यपाल और राष्ट्रपति शासन में आई पत्थरबाजी के मामलों में कमी

    कश्मीर: राज्यपाल और राष्ट्रपति शासन में आई पत्थरबाजी के मामलों में कमी
    लेखन मुकुल तोमर
    Jul 21, 2019, 11:50 am 1 मिनट में पढ़ें
    कश्मीर: राज्यपाल और राष्ट्रपति शासन में आई पत्थरबाजी के मामलों में कमी

    राष्ट्रपति शासन में कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है और इस मामले में उसका प्रदर्शन पिछल सरकार के मुकाबले बेहतर है। इस साल राष्ट्रपति शासन में कश्मीर में अभी तक पत्थरबाजी के 355 मामले सामने आए हैं, वहीं पिछले साल 6 महीने के राज्यपाल शासन में पत्थरबाजी के कुल 349 मामले दर्ज किए गए हैं। बता दें कि किसी भी संकट के समय पत्थरबाजी कश्मीर में एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरता है।

    NC-कांग्रेस सरकार में दर्ज हुए 2,690 मामले

    'हिंदुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, 2009-2014 में जम्मू और कश्मीर की सत्ता पर काबिज रहे नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन के राज में पत्थरबाजी के 2,690 मामले दर्ज किए गए थे। माछिल सेक्टर में सेना के ऑपरेशन के बाद हुए प्रदर्शनों के कारण 2010 में इन मामलों में उछाल देखने को मिला था। बता दें कि NC-कांग्रेस सरकार के इस कार्यकाल में कश्मीर में अपेक्षाकृत शांति रही थी।

    PDP-भाजपा सरकार में पत्थरबाजी के सबसे अधिक मामले

    वहीं, 2014 विधानसभा चुनाव के बाद बनी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और भारतीय जनता पार्टी की सरकार के कार्यकाल में पत्थरबाजी के 4,522 मामले सामने आए। 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद हुए प्रदर्शनों के कारण पत्थरबाजी के मामलों में भारी उछाल देखने को मिला था और इस साल पत्थरबाजी के कुल 2,897 मामले दर्ज किए गए थे। इसका असर सरकार के पूरे कार्यकाल के प्रदर्शन पर देखने को मिला।

    जून 2018 में गिर गई थी भाजपा सरकार

    पिछले साल जून में PDP-भाजपा सरकार गिर गई थी। इसके बाद पहले राज्यपाल शासन लगाया गया, जिसे फिर राष्ट्रपति शासन में बदल दिया गया, यानि अभी राज्य में प्रशासन की डोर अभी राष्ट्रपति के जरिए केंद्र सरकार के हाथ में है।

    NC-कांग्रेस सरकार में प्रतिदिन पत्थरबाजी के सबसे कम मामले

    इन आंकड़ों से पता चलता है NC-कांग्रेस सरकार के राज में प्रति दिन पत्थरबाजी के मामले सबसे कम रहे, वहीं PDP-भाजपा सरकार के शासनकाल में ये सबसे ज्यादा रहे। NC-कांग्रेस सरकार और राष्ट्रपति शासन के आंकड़ों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। NC-कांग्रेस सरकार के बेहतर प्रदर्शन करने का सबसे बड़ा कारण ये भी है कि उसके शासनकाल में परिस्थितियां अपेक्षाकृत शांत थी, जिनमें बुरहान वानी की मौत के बाद वृद्धि देखने को मिली।

    उत्तर कश्मीर में लश्कर तो दक्षिण कश्मीर में हिजबुल, जैश का दबदबा

    आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के गढ़ श्रीनगर में पत्थरबाजी के सबसे अधिक मामले देखने को मिले। इसके बाद जमात-ए-इस्लामी के गढ़ सोपोर, बारामुला और पुलवामा का नंबर आता है। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर कश्मीर में जहां पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का दबदबा है, वहीं पुलवामा, कुलगाम, अनंतनाग जैसे दक्षिण कश्मीर के इलाकों में हिजबुल और जैश-ए-मोहम्मद का दबदबा है। अन्य इलाके अपेक्षाकृत शांत रहे।

    सुरक्षा बलों को खुली छूट के कारण आई कमी

    जम्मू-कश्मीर पुलिस के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने राज्यपाल और राष्ट्रपति शासन में सुरक्षा बलों को मिली खुली छूट को पत्थरबाजी के मामलों में गिरावट का मुख्य कारण बताया है। बता दें कि अभी कश्मीर में कुल 300 आतंकवादियों सक्रिय है, जिसमें 115 पाकिस्तान या अफगानिस्तान से हैं। सुरक्षा बलों का मकसद इस आंकड़े को बढ़ने से रोकना है और वह कश्मीरी युवाओं को आतंक की राह पर जाने से रोक रहे हैं।

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