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    राजनीति

    महात्मा गांधी पर प्रधानमंत्री मोदी के लेख का विश्लेषण, दिखावटी है मोदी का गांधी प्रेम

    महात्मा गांधी पर प्रधानमंत्री मोदी के लेख का विश्लेषण, दिखावटी है मोदी का गांधी प्रेम
    लेखन मुकुल तोमर
    Oct 02, 2019, 07:26 pm 1 मिनट में पढ़ें
    महात्मा गांधी पर प्रधानमंत्री मोदी के लेख का विश्लेषण, दिखावटी है मोदी का गांधी प्रेम

    पूरी दुनिया आज महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रही है और हर तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें याद करते हुए अमेरिकी अखबार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' में एक लेख लिखा है। अपने इस लेख में मोदी ने गांधी को लेकर तमाम अच्छी बातें कहीं हैं। लेकिन उनकी खुद की विचारधारा और कार्यों को देखते हुए गांधी के प्रति उनका ये प्यार खोखला और दिखावटी नजर आता है। ऐसा क्यों? आइए जानते हैं।

    हिंदू-मुस्लिम एकता पर एक शब्द भी नहीं

    मोदी के लेख में सबसे रोचक बात यह है कि जिस हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए महात्मा गांधी जिये और जिसके लिए उनकी हत्या की गई, उस पर इसमें एक शब्द भी नहीं लिखा गया है। एक जगह जब अपने लेख में मोदी लिखते हैं कि 'महात्मा गांधी पर समाज के सभी वर्गों को भरोसा था' तो लगता है कि वह हिंदू-मुस्लिम एकता पर बात करेंगे, जिसे तोड़ने का आरोप अक्सर उन पर लगता है, लेकिन वो ऐसा नहीं करते।

    मोदी लगाते हैं विरोधियों पर गलत छवि पेश करने का आरोप

    मोदी अक्सर आरोप लगाते हैं कि उनके विरोधी मुस्लिमों में उनकी गलत छवि पेश करते हैं और उन्हें डराकर उनका वोट हासिल करते हैं। वो ये भी आरोप लगाते रहे हैं कि देश में हिंदू-मुस्लिमों के बीच "तनाव और असहनशीलता" की बात कह कर विपक्ष दुनिया में भारत की छवि खराब कर रहा है। वहीं, कश्मीर पर फैसले के बीच इमरान खान भी दुनिया के सामने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और मोदी की मुस्लिम विरोधी छवि पेश कर चुके हैं।

    फायदे का सौदा साबित होता हिंदू-मुस्लिम एकता पर लिखना

    ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक महात्मा गांधी की जयंती पर एक अंतरराष्ट्रीय अखबार में लिखे गए इस लेख में हिंदू-मुस्लिम एकता पर बात करके एक तीर से कई निशाने साध सकते थे। वह देश के मुस्लिमों को भरोसा दिला सकते थे कि उनके प्रधानमंत्री के लिए सभी नागरिक बराबर हैं और उन्हें अन्य नागरिकों जितना ही प्यार करते हैं। वह दुनिया को संदेश दे सकते थे कि इमरान के आरोपों में कोई दम नहीं है।

    देश में सब कुछ ठीक होने का संदेश भी होता और पुख्ता

    मोदी अपने NRI दोस्तों को भी ये संदेश दे सकते थे कि देश में हिंदू-मुस्लिम के बीच बढ़ते तनाव और असहनशीलता के आरोपों में कोई दम नहीं है और भारत में सब कुछ ठीक है। लेकिन मोदी ये बेहतरीन मौका चूक गए।

    राष्ट्रवाद पर गांधी की विरोधी विचारधारा का चेहरा बने हुए हैं मोदी

    अपने लेख में प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रवाद पर महात्मा गांधी के विचारों के बारे में लिखा है। उनके अनुसार, गांधी का भारतीय राष्ट्रवाद संकीर्ण नहीं था और इसने पूरी मानवता की सेवा के लिए काम किया। गांधी के राष्ट्रवाद को लेकर मोदी की ये बात जितनी ऐतिहासिक और सत्य है, उनकी ही सत्य और ऐतिहासिक ये बात भी है कि आज वह जिस विचारधारा का नेतृत्व करते हैं, वह गांधी की कट्टर विरोधी रही है।

    RSS के वैचारिक गुरुओं के राष्ट्रवाद में शामिल नहीं मुस्लिम

    जिस RSS को मोदी पूज्यनीय मानते हैं, उसकी राष्ट्रवाद की विचारधारा बेहद संकीर्ण रही है। RSS के वैचारिक गुरू और सरसंघचालक रहे एमएस गोलवलकर ने अपनी किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' में भारत के लिए तीन खतरे बताए हैं- मुस्लिम, ईसाई और वामपंथी। वहीं हिंदू नेताओं के दूसरे वैचारिक गुरू वीर सावरकर ने भी अपनी किताब 'हिंदुत्व- हू इज़ हिंदू?' में कहा है कि मुस्लिमों और ईसाइयों की भारत में कोई जगह नहीं क्योंकि उनके सर्वोच्च धार्मिक स्थान यहां नहीं हैं।

    दो विरोधी विचारधाराओं में कैसे तालमेल बैठाते हैं मोदी?

    प्रधानमंत्री मोदी गोलवालकर और सावरकर को अपने वैचारिक गुरू बताते रहे हैं और उसके बड़े प्रशंसक हैं। इन दोनों की विचारधारा के प्रति उनके समर्पण और गांधी के लिए "नए-नवेले प्यार" में वह कैसे तालमेल बैठाते हैं, वह उन्हें देश को जरूर बताना चाहिए। आम समझ यही कहती है कि इन दोनों विचारधाराओं में कोई सामंजस्य नहीं हो सकता और मोदी इसमें से केवल एक विचारधारा (RSS की विचारधारा) को मानते हैं।

    जाति व्यवस्था पर गांधी के सुधार कार्यों का भी कोई जिक्र नहीं

    मोदी ने अपने लेख में जाति व्यवस्था पर गांधी के सुधारक कार्यों और छूआछूत के कट्टर विरोध का भी कोई जिक्र नहीं किया है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ उनके सामाजिक सुधारों में सर्वोच्च स्थान रखता था। गोवलकर इस जाति व्यवस्था के कट्टर समर्थक थे।

    नागरिकों का सम्मान करने की बात कहने वाले मोदी के गृह मंत्री दे रहे भड़काऊ बयान

    अपने लेख में मोदी ने एक जगह लिखा है कि गांधी ने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जहां सभी नागरिकों का सम्मान हो और वह समृद्ध हों। जिस दिन मोदी ने अपने लेख में ये बात कही है, उससे ठीक एक शाम पहले उनके सबसे खास और गृह मंत्री अमित शाह ने NRC पर बयान देते हुए कहा था कि देश में रह रहे हिंदू, बुद्ध, सिख, ईसाई और जैन आदि धर्मों के शरणार्थियों को बाहर नहीं निकाला जाएगा।

    गांधी की विचारधारा से कैसे मेल खाएगा शाह का बयान?

    इन सारे धर्मों को शामिल करने के बाद रह कौन जाता है- मुस्लिम। जिस देश की सरकार और गृह मंत्री शरणार्थियों और "घुसपैठियों" को धर्म की नजर से देख रही हो, वो गांधी के आदर्शों से उतना ही दूर है जितना सच से झूठ। क्या कोई बता सकता है कि गांधी के किस आदर्श के नजरिए से अमित शाह का ये बयान सही है? क्या ये गांधी के प्यार और अहिंसा के सिद्धांत से मेल खाता है?

    गांधी का विचार था- एक घटना से फर्क पड़ता है

    दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी का गांधी से कुछ लेना-देना नहीं है। अगर मोदी सच में गांधी के विचारों में विश्वास करते तो क्या वह झारखंड में तबरेज अंसारी की मॉब लिंचिंग पर सख्त संदेश देने की बजाय ये कहते कि एक घटना के लिए पूरे राज्य को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए? गांधी ने 1992 में चौरी चोरा में हिंसा की मात्र एक घटना के कारण उफान पर चल रहे अपने असहयोग आंदोलन को समाप्त कर दिया था।

    सत्य और अहिंसा पर बेहद खराब है मोदी का रिकॉर्ड

    सत्य और अहिंसा महात्मा गांधी के दो सबसे बड़े सिद्धांत थे। सत्य के लिए जितना तिरष्कार मोदी के मन और वाणी में है, उससे ज्यादा शायद ही किसी और प्रधानमंत्री के मन में रहा हो। अहिंसा पर उनका रिकॉर्ड तो और भी खराब है। आए दिन उनके नेता ऐसे बयान देते हैं जो समाज में हिंसक मानसिकता को बढ़ावा देते हैं और "सख्त और कठोर" मोदी अपने इन बड़बोले नेताओं पर नियंत्रण नहीं लगा पाते।

    देश के सबसे कम गांधीवादी प्रधानमंत्री हैं मोदी

    गांधी की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था। वहीं मोदी की कथनी और करनी में भारत और पाकिस्तान जितना अंतर है। इस अंतर और मोदी की नीतियों को देखकर गांधी आज एक ही बात कहते- हे राम!

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