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तीन तलाक और नागरिकता बिल हुए निरस्त, राज्यसभा में नहीं हो सके पेश, अब आगे क्या?

तीन तलाक और नागरिकता बिल हुए निरस्त, राज्यसभा में नहीं हो सके पेश, अब आगे क्या?

Feb 13, 2019
05:33 pm

क्या है खबर?

राज्यसभा में बजट सत्र का आखिरी दिन राफेल पर CAG रिपोर्ट पर विपक्ष के हंगामे की भेट चढ़ गया। इसी के साथ तीन तलाक और नागरिकता पर मोदी सरकार के 2 बड़े बिल निरस्त हो गए। दोनों लोकसभा में पहले ही पारित हो चुके थे और इन्हें राज्यसभा में पारित कराना बाकी रह गया था, लेकिन हंगामे के कारण ऐसा नहीं हो सका। लोकसभा चुनाव से पहले 16वीं लोकसभा का यह आखिरी दिन था, इसलिए दोनों बिल निरस्त हो गए।

तीन तलाक

क्या है तीन तलाक बिल?

मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से सुरक्षा प्रदान करने वाले मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकार संरक्षण) बिल को मोदी सरकार 27 दिसंबर, 2018 को लोकसभा में पारित कराने में कामयाब रही थी। बिल में मुस्लिमों के बीच प्रचलित विवादित तत्काल तीन तलाक को कानूनी अपराध बनाया गया था। इसके लिए 3 साल की सजा का प्रावधान था। बिल को चुनाव से पहले मुस्लिम महिलाओं में सरकार की पैठ बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा था।

नागरिकता संशोधन बिल

क्या है नागरिकता संशोधन बिल?

नागरिकता संशोधन बिल 8 जनवरी को लोकसभा में पारित हुआ था और राज्यसभा में लटका हुआ था। इसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भागे और 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आने वाले वाले गैर-मुस्लिम समुदायों (हिंदू, ईसाई, पारसी, सिख, बौद्ध, जैन) के अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता देने का प्रस्ताव किया गया था। बिल का उत्तर-पूर्व के राज्यों में भारी विरोध हो रहा था और भाजपा के सहयोगी बिल को पारित न कराने की मांग कर रहे थे।

बजट सत्र

बजट सत्र में पारित कराना था अनिवार्य

नागरिकता संशोधन बिल के कारण भाजपा पर पूर्वोत्तर में वह राजनीतिक लाभ गंवाने का भी खतरा था, जो उसने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (NRC) के जरिए कमाया था। बता दें कि राज्यसभा के नियमों के मुताबिक, लोकसभा के विलय पर वो बिल जो लोकसभा में पारित हो चुके हैं, लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हुए, निरस्त हो जाते हैं। इसी कारण इन्हें बजट सत्र के आखिरी दिन पारित कराया जाना अनिवार्य था, लेकिन सरकार ऐसा करने में नाकामयाब रही।

विकल्प

अब आगे क्या रास्ता?

अब सरकार के पास आगे बहुत ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं। तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम प्रभावी दिशा-निर्देश होगा। सरकार अध्यादेश लाकर भी दोनों बिलों को संजीवनी दे सकती है, लेकिन लोकसभा चुनाव को देखते हुए इसकी संभावना भी कम नजर आ रही है। विधेयक लाने से पहले सरकार को यह साबित करना होगा कि यह देश के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन चुनाव से पहले सरकार ऐसा कोई खतरा लेगी, इसकी संभावना कम है।