भाजपा की बजाय शिवसेना में क्यों शामिल हुए मिलिंद देवड़ा?
क्या है खबर?
14 जनवरी को पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा कांग्रेस छोड़कर शिवसेना में शामिल हो गए थे। देवड़ा को राहुल गांधी का करीबी माना जाता था।
पिछले कुछ सालों में राहुल के करीबी रहे कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी है। इनमें से ज्यादातर भाजपा में शामिल हुए हैं, लेकिन देवड़ा ने शिवसेना को अपना ठिकाना बनाया है।
विश्लेषक देवड़ा के इस कदम के कई मायने निकाल रहे हैं। आइए जानते हैं कि देवड़ा शिवसेना में ही क्यों शामिल हुए।
कारोबार
शिवसेना में शामिल होने के कारोबारी कारण?
माना जा रहा है कि देवड़ा राजनीतिक से ज्यादा कारोबारी वजहों से शिवसेना में शामिल हुए हैं।
पार्टी की सदस्यता लेने के 2 दिन बाद ही देवड़ा दावोस में वविश्व आर्थिक मंच में शामिल होने चले गए, जहां वो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का प्रतिनिधित्व करेंगे।
देवड़ा के शिंदे के सांसद बेटे श्रीकांत शिंदे से भी अच्छे संबंध हैं और उनके भाजपा के ऊपर शिवसेना को चुनने का एक कारण ये भी हो सकता है।
राज्यसभा
देवड़ा के पाला बदलने के और क्या कारण?
देवड़ा के शिवसेना में शामिल होने की एक अन्य वजह फिर से सांसद बनने की उनकी चाहत है।
दरअसल, देवड़ा अभी सांसद नहीं हैं और पिछले 2 लोकसभा चुनाव में मुंबई दक्षिण सीट से हार चुके हैं। हालांकि, इसके बावजूद वो इस बार भी इसी सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन INDIA गठबंधन के तहत ये सीट उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना को जानी है।
इसी कारण देवड़ा ने पाला बदल दिया और शिवसेना उन्हें राज्यसभा भेज सकती है।
फायदा
देवड़ा के आने से शिवसेना को क्या फायदा?
अंग्रेजी बोलने वाले देवड़ा की गिनती महाराष्ट्र के उन चुनिंदा नेताओं में होती है, जिनके कारोबारी घरानों में अच्छे संबंध हैं।
इसकी एक बानगी 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिली थी, जब मुकेश अंबानी और उदय कोटक जैसे दिग्गज कारोबारियों ने देवड़ा का समर्थन किया था।
शिवसेना देवड़ा के इन संबंधों का फायदा उठाना चाहती है। देवड़ा के आने से शिवसेना को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रतिनिधित्व करने वाला और कारोबारी हलकों में पकड़ वाला चेहरा मिल गया है।
देवड़ा
कौन हैं देवड़ा?
देवड़ा दिग्गज कारोबारी, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सामाजिक कार्यकर्ता मुरली देवड़ा के बेटे हैं। 2004 में उन्होंने पहली बार मुंबई दक्षिण सीट से भाजपा प्रत्याशी को हराकर लोकसभा चुनाव जीता था। 2009 में उन्होंने फिर जीत दर्ज की, लेकिन 2014 और 2019 में चुनाव हार गए।
वे रक्षा, नागरिक उड्डयन, योजना, शहरी विकास, सूचना और प्रौद्योगिकी के राज्य मंत्री रह चुके हैं और कई संसदीय समितियों के भी सदस्य रहे हैं।