कर्नाटक विधानसभा उपचुनाव: जानिए कैसे इन चुनावों का नतीजा तय करेगा भाजपा सरकार गिरेगी या रहेगी
कर्नाटक की 15 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की वोटिंग खत्म हो गई है। इस चुनाव के नतीजे 9 दिसंबर को घोषित किये जाएंगे। यूं तो अधिकांश मामलों में उपचुनावों का ज्यादा महत्व नहीं होता, लेकिन इन उपचुनाव के मामले में ऐसा नहीं है। इन उपचुनावों का नतीजा कर्नाटक में किसी एक पार्टी की सरकार गिरा सकता है और दूसरी पार्टी की सरकार बनवा सकता है। आइए इस पूरे समीकरण को आंकड़ों के जरिए विस्तार से समझते हैं।
क्या है कर्नाटक विधानसभा का मौजूदा गणित?
कर्नाटक विधानसभा में कुल 225 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 113 विधायकों का समर्थन होना जरूरी है। विधानसभा में भाजपा के 105, कांग्रेस के 66 और जनता दल (सेक्युलर) के 34 विधायक हैं। राज्य में अभी भाजपा ने एक निर्दलीय यानि कुल 106 विधायकों के समर्थन से सरकार बना रखी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कांग्रेस-JD(S) के 17 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द हो गई थी जिससे विधानसभा का संख्याबल 208 और बहुमत का आंकड़ा 105 पर आ गया।
उपचुनाव के बाद फिर से बढ़ जाएगा विधानसभा का संख्याबल
आज अयोग्य घोषित किये गए विधायकों की 17 में से 15 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं। दो सीटों पर आज चुनाव नहीं हुए, क्योंकि 2018 के चुनावों के परिणामों को चुनौती देने वाली अलग-अलग चुनाव याचिकाएं कर्नाटक हाई कोर्ट में लंबित हैं। उपचुनावों के बाद ये संख्याबल फिर से बढ़कर 221 हो जाएगा और तब भाजपा को अपना बहुमत फिर से साबित करना होगा। बहुमत साबित करने के लिए भाजपा को 112 विधायकों का समर्थन चाहिए होगा।
भाजपा के लिए कम से कम छह सीटें जीतना आवश्यक
दक्षिण भारत में कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य है जहां भाजपा की सरकार है और ऐसे में इस उपचुनाव के नतीजों पर उसका काफी कुछ दांव पर होगा। अगर भाजपा को अपनी सरकार बचानी है तो उसे इन 15 में से न्यूनतम छह सीटों पर जीत दर्ज करनी होगी। ऐसा होने पर उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 111 हो जाएगी और वो 223 सदस्यीय विधानसभा में एक निर्दलीय विधायक के साथ बहुमत के आंकड़े 112 सीट तक पहुंचने में कामयाब रहेगी।
कांग्रेस और JD(S) से छीननी होंगी भाजपा को सीटें
आंकड़ों के लिहाज से 15 में से छह सीट जीतना भले ही भाजपा के लिए आसान कार्य लग रहा हो, लेकिन ऐसा है नहीं। जिन 15 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं उनमें से 12 सीटें पहले कांग्रेस के खाते में थी, जबकि दो सीटों पर JD(S) का कब्जा था। यानि भाजपा को अपनी हिस्से की छह सीटें इन दोनों पार्टियों के हिस्से से छीननी होंगी और ये कार्य उसके लिए मुश्किल साबित हो सकता है।
भाजपा के नाकाम रहने पर पैदा होगी महाराष्ट्र जैसी स्थिति
अगर भाजपा इन उपचुनाव में छह सीटें जीतने में असफल साबित होती है तो कर्नाटक में भी महाराष्ट्र जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। राज्य में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी तो बनी रहेगी, लेकिन उसके पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं होगा। ऐसे में महाराष्ट्र के नतीजों से सीख लेते हुए कांगेस एक बार फिर अपने गठबंधन के पूर्व सहयोगी JD(S) के साथ सरकार बना सकती है और दोनों पार्टियों के पास मिलाकर बहुमत से अधिक सीटें होंगी।
इसलिए भाजपा को पटखनी देना चाहेगी कांग्रेस
कांग्रेस के JD(S) के साथ सरकार बनाने की संभावना इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि दक्षिण भारत में ये एकमात्र ऐसा राज्य है जहां भाजपा और कांग्रेस की सीधी टक्कर है। ऐसे में कांग्रेस भाजपा को पटखनी देना जरूर चाहेगी और अगर ऐसा होता है तो ये भाजपा के लिए महाराष्ट्र के बाद एक और बड़ा झटका होगा। भाजपा के छह से अधिक सीटें न जीतने और कांग्रेस-JD(S) के साथ न आने की स्थिति में राज्य में दोबारा चुनाव होंगे।