चुनावी बॉन्ड: लोकसभा में उठा मुद्दा, जानें क्या है ये बॉन्ड और क्यों हो रहा विवाद
क्या है खबर?
कांग्रेस ने गुरूवार को लोकसभा में चुनावी बॉन्ड (इलेक्टॉरल बॉन्ड) का मुद्दा जोरशोर से उठाया।
जहां पार्टी सांसद मनीष तिवारी ने इसे एक सार्वजनिक महत्व का मुद्दा बताया, वहीं शशि थरूर ने कहा कि चुनावी बॉन्ड आसानी से धनी कंपनियों और व्यक्तियों के राजनीतिक पार्टियों खासकर सत्तारूढ़ पार्टी को गलत तरीके से प्रभावित करने का तरीका बन सकता है।
आखिर चुनावी बॉन्ड हैं क्या और इसे लेकर विवाद क्यों हो रहा है, आइए आपको बताते हैं।
जानकारी
क्या होते हैं चुनावी बॉन्ड?
केंद्र सरकार ने वित्त विधेयक 2017 में चुनावी बॉन्ड शुरू करने का ऐलान किया था।
केवल भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ही ये बॉन्ड जारी कर सकता है और इन पर नोटों की तरह उनकी कीमत छपी होती है।
चुनावी बॉन्ड्स एक हजार, दस हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपये के मल्टीपल्स में खरीदे जा सकते हैं।
SBI हर तिमाही में 10 दिन के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करता है। ये ब्याज मुक्त होते हैं।
प्रक्रिया
क्या है चुनावी बॉन्ड खरीदने और कैश कराने की प्रक्रिया?
कोेई भी व्यक्ति या कंपनी SBI द्वारा जारी ये चुनावी बॉन्ड खरीद सकती है और उनका बैंक में KYC पूरा होना जरूरी है।
चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों को 15 दिन के अंदर उन्हें अपनी मनपसंद राजनीतिक पार्टी को चंदे के तौर पर देना होता है।
राजनीतिक पार्टी अपने वेरिफाइड अकाउंट में उन्हें प्राप्त चुनावी बॉन्ड्स को कैश करा सकती है।
लोकसभा या विधानसभा चुनाव में न्यूनतम एक प्रतिशत वोट पाने वालीं पार्टियों को ही चुनावी बॉन्ड दिया जा सकता है।
विरोध का कारण
क्यों हो रहा चुनावी बॉन्ड का विरोध?
केंद्र सरकार जब चुनावी बॉन्ड लाई थी तो उसने इसका मकसद चुनावी सुधार और राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाना बताया था।
लेकिन विरोधियों के अनुसार चुनावी बॉन्ड इसके विपरीत काम करेगा और किस कंपनी ने किसे चंदा दिया, ये पता नहीं चल पाएगा।
दरअसल, चुनावी बॉन्ड की पूरी प्रक्रिया में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी केवल बैंक के पास होती है और राजनीतिक पार्टियां अपने चंदे की जानकारी देने की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाती हैं।
अहम बिंदु
नहीं पता चलेगा किस कंपनी ने किस पार्टी को चंदा दिया
चुनावी बॉन्ड के विरोधियों का कहना है कि इसके जरिए कोई भी कंपनी या धनी व्यक्ति किसी भी पार्टी को मनचाहा चंदा दे सकता है और किसी कंपनी ने किस पार्टी को चंदा दिया ये कभी सामने नहीं आ पाएगा।
इस चंदे के बदले में कंपनियां या धनी व्यक्ति राजनीतिक पार्टियों को अपने पक्ष में प्रभावित कर सकते हैं।
इसके अलावा विरोधी चुनावी बॉन्ड के जरिए कालेधन को सफेद किए जाने की आशंका भी जताते हैं।
कांग्रेस का विरोध
कांग्रेस ने कहा- चुनावी बॉन्ड देने वालों की पहचान का खुलासा करे केंद्र सरकार
बुधवार को चुनावी बॉन्ड का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस ने केंद्र सरकार से राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड देने वालों की पहचान का खुलासा करने को कहा था।
गुरूवार को लोकसभा की कार्रवाई शुरू होने से पहले थरूर ने कहा, "जब चुनावी बॉन्ड लाए गए थे, तब हमने गंभीर आपत्तियां उठाते हुए बताया था कि कैसे ये आसानी से धनी कंपनियों और व्यक्तियों के राजनीतिक पार्टियों खासकर सत्तारूढ़ पार्टी को गलत तरीके से प्रभावित करने का तरीका बन सकता है।"
बयान
"RBI और चुनाव आयोग की आपत्ति के बावजूद चुनावी बॉन्ड लाई केंद्र सरकार"
लोकसभा में चुनावी बॉन्ड का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और चुनाव आयोग की आपत्ति के बावजूद केंद्र सरकार ये योजना लाई। मुद्दे पर कांग्रेस सदन से वॉकआउट कर गई है।