जिलाधिकारी की हत्या के दोषी डॉन आनंद मोहन कौन हैं, जिनकी रिहाई पर हो रहा विवाद?
क्या है खबर?
बिहार सरकार ने नए कानून के तहत जेल में बंद 27 कैदियों की रिहाई का आदेश जारी कर दिया है। इन कैदियों में डॉन आनंद मोहन सिंह का नाम भी शामिल है, जो बिहार के एक जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के दोषी हैं।
डॉन आनंद इन दिनों अपने बेटे और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के विधायक चेतन आनंद की शादी को लेकर 15 दिनों की पैरोल पर बाहर हैं।
आइए जानते हैं कि डॉन आनंद मोहन कौन हैं।
प्रोफाइल
आनंद मोहन के दादा थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
बिहार के डॉन आनंद मोहन का जन्म बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ था। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। बिहार की राजनीति से उनका परिचय 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के दौरान हुआ, जिसके कारण उन्होंने अपनी कॉलेज की पढ़ाई तक छोड़ दी।
आनंद को आपातकाल के दौरान 2 साल जेल में भी रहना पड़ा और 17 साल की उम्र में ही उन्होंने अपना सियासी करियर शुरू कर दिया था।
डॉन
राजपूत समुदाय से आते हैं आनंद मोहन
बिहार की राजनीति में बाहुबलियों की दबदबा रहा है। आनंद मोहन जाति से राजपूत हैं और इसी का फायदा उठाकर वो राजपूत समुदाय के नेता बन गए। उन्होंने 1980 में समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की, जो पिछड़ी जातियों के खिलाफ थी।
गुजरते वक्त के साथ-साथ आंनद की गुंडई और दबंगई बढ़ती रही। इस दौरान उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए।
साल 1983 में उन्हें एक अपराध के लिए 3 महीने की जेल भी हुई।
चुनाव
जनता दल के टिकट पर जीता पहला चुनाव
आनंद मोहन ने 1990 बिहार चुनाव में जनता दल के टिकट से महिसी विधानसभा सीट से पहला चुनाव जीता था। वह विधायक रहते हुए एक कुख्यात सांप्रदायिक गिरोह के अगुवा थे, जो आरक्षण के विरोध में था।
इस दौरान OBC आरक्षण को लेकर मंडल आयोग की सिफारिश का जनता दल ने भी समर्थन किया था। इसके बाद आनंद ने जनता दल से नाता तोड़कर 1993 में खुद की बिहार पीपुल्स पार्टी (BPP) बना ली।
हत्या
1994 में भीड़ को उकसाकर की जिलाधिकारी की हत्या
साल 1994 में आनंद मोहन का एक सहयोगी छोटन शुक्ला पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था, जिसके बाद उन्होंने भुटकुन शुक्ला के साथ मिलकर 5 दिसंबर, 1994 को गोपालगंज के दलित IAS अधिकारी और जिलाधिकारी जी कृष्णैया की भीड़ से हत्या करा दी थी।
इस मामले में आनंद और उसकी पत्नी लवली आनंद समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इसी साल लवली आनंद ने वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव जीता था।
चुनाव
1996 में पहली बार चुने गए सांसद
साल 1995 के बिहार चुनाव में आनंद मोहन ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन वो जीत नहीं पाए। साल 1996 के आम चुनाव में उन्होंने जेल में रहते हुए जनता दल की टिकट पर शिवहर सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए।
इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनावों में भी उन्होंने इसी सीट से जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की। चुनाव में RJD ने उनका समर्थन किया था।
सजा
जिलाधिकारी की हत्या के मामले में हुई थी फांसी की सजा
कोर्ट ने 2007 में दलित जिलाधिकारी की हत्या के मामले में आनंद को दोषी ठहराया और फांसी की सजा सुनाई। देश की आजादी के बाद ये पहला मामला था, जिसमें एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी।
हालांकि, साल 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया। आनंद मोहन ने साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
राजनीति
जेल में बंद होने के बावजूद भी राजनीति में दबदबा
आनंद मोहन दोषी करार दिए जाने के कारण चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन जेल में बंद रहते हुए भी वह बिहार की राजनीति में खूब सक्रिय रहे हैं।
2010 में उन्होंने अपनी पत्नी लवली आनंद को कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव और 2014 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़वाया था।
उनके बेटे चेतन आनंद ने 2020 के बिहार चुनाव में RJD के टिकट पर शिवहर विधानसभा से चुनाव जीता था।
नियम
किस नियम से तहत हो रही आनंद मोहन की रिहाई?
बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को कारा अधिनियम, 2012 के नियम 481 (1) (क) में संशोधन किया था। इसमें से उस वाक्यांश को हटा दिया गया है, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था।
इस संसोधन के बाद ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या जल्द रिहाई के लिए अपवाद की श्रेणी में नहीं आएगी, बल्कि इसे भी एक साधारण हत्या माना जाएगा। इसी के तहत अब डॉन आनंद मोहन की रिहाई हो रही है।