#NewsBytesExplainer: बिहार में डॉन आनंद मोहन की रिहाई की अटकलें क्यों लगाई जा रही हैं?
क्या है खबर?
उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर अतीक अहमद की हत्या के बीच बिहार के पूर्व सांसद और डॉन आनंद मोहन की रिहाई की अटकलों पर राज्य की सियासत गरम है। बिहार सरकार के कारा नियमों में बदलाव करने के बाद डॉन आंनद की रिहाई को लेकर अटकलें तेज हुई हैं।
डॉन आनंद को IAS अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
आइये इस पूरे मामले को समझते हैं।
कौन
डॉन आनंद मोहन कौन है?
आनंद बिहार के सहरसा जिले से ताल्लुक रखते हैं। 1990 बिहार चुनाव में जनता दल के टिकट से उन्होंने महिसी विधानसभा सीट से चुनाव जीता था। वह विधायक रहते हुए एक कुख्यात सांप्रदायिक गिरोह के अगुवा थे, जो आरक्षण के विरोध में था।
इस दौरान OBC आरक्षण को लेकर मंडल आयोग की सिफारिश का जनता दल ने भी समर्थन किया था। इसके बाद आनंद ने जनता दल से नाता तोड़कर 1993 में खुद की बिहार पीपुल्स पार्टी (BPP) बनाई थी।
क्या है मामला
आनंद को किस मामले में हुई थी सजा?
5 दिसंबर, 1994 को गोपालगंज के दलित IAS अधिकारी और जिलाधिकारी जी कृष्णैया की भीड़ ने पिटाई की और फिर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। इस भीड़ को आनंद ने ही उकसाया था। इस मामले में आनंद और उसकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया था।
साल 2007 में पटना हाई कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और फांसी की सजा सुनाई। हालांकि, 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।
नियम
बिहार सरकार ने कारा नियमों में क्या संसोधन किया है?
बिहार सरकार ने कारा अधिनियम में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है। बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम 481 (1) (क) में संशोधन किया गया है। इसमें से उस वाक्यांश को हटा दिया गया है, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था।
संसोधन के बाद ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या अपवाद की श्रेणी में नहीं आएगी, बल्कि इसे भी एक साधारण हत्या माना जाएगा। गृह विभाग ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है।
चर्चा
डॉन आनंद को सरकार से क्यों जोड़ा जा रहा?
आनंद इन दिनों अपने बेटे की शादी के सिलसिले में पैरोल पर बाहर है। उसकी और जनता दल यूनाइटेड (JDU) अध्यक्ष ललन सिंह की एक-दूसरे से गले मिलने की एक तस्वीर वायरल होने के बाद इन अटकलों को और बल मिला है।
जनवरी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में आयोजित एक राजपूत सम्मेलन में शिरकत की थी। इस दौरान आनंद के समर्थकों ने नीतीश से उनकी रिहाई की मांग की थी और नीतीश ने भी उन्हें आश्वासन दिया था।
क्या है राजनीति
आंनद के लिए नियमों में बदलाव का क्या माना जा रहा कारण?
मार्च, 2021 में बिहार सरकार ने आनंद की सजा माफ करने की मांग को खारिज कर दिया था। तब नीतीश भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहे थे और राजपूत वोट बैंक को लेकर उन्हें असुरक्षा नहीं थी।
आनंद के बेटे और पत्नी बिहार में नीतीश की मौजूदा सहयोगी RJD के विधायक और नेता हैं औ उनको साथ लेकर चलने की जरूरत है।
बीते चुनावों में नीतीश का जनाधार लगातार घट रहा है और उन्हें जातीय समीकरण भी साधने होंगे।
क्यों
क्या राजपूत वोट बैंक पर है नीतीश की नजर?
आनंद एक राजपूत हैं और बिहार के राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मिथिलांचल क्षेत्र में उनका गहरा प्रभाव है। रिपोर्ट्स के अनुसार, नीतीश की आनंद को जेल से बाहर लाकर उच्च जाति के वोटर्स को एक बड़ा संदेश भेजने की कोशिश है, जिसमें राजपूत एक प्रमुख घटक हैं।
राजपूत उच्च जाति के वोट बैंक का 4 प्रतिशत हिस्सा हैं, जो राज्य के मतदाताओं का करीब 12 प्रतिशत हैं। ये आमतौर पर भाजपा को वोट देते आए हैं।
राजनीति
बिहार की राजनीति में आनंद का दबदबा
सजा सुनाए जाने के बाद आनंद मोहन चुनाव नहीं लड़ सका, लेकिन जेल में होने के बावजूद उसने अपनी पत्नी को चुनाव लड़वाया था।
लवली आनंद ने 2010 के बिहार चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में और 2014 में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा।
बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का दबदबा हमेशा से रहा है। कयास हैं नीतीश 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ-साथ 2025 बिहार चुनाव में आनंद की छवि को भुनाना चाहते हैं।