राजद सबसे बड़ी पार्टी तो कांग्रेस साबित हुई कमजोर कड़ी; क्या रहे बिहार चुनावों के निष्कर्ष?
बिहार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) एक बार फिर सरकार बनाने जा रहा है। भले ही जनता दल यूनाइटेड (जदयू) पिछले चुनावों के मुकाबले कम सीट जीत पाई है, लेकिन भाजपा के शानदार प्रदर्शन के कारण नीतीश कुमार सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। वहीं तेजस्वी यादव अपने दम पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को सबसे बड़ी पार्टी बनाने में सफल साबित हुए हैं। आइये, चुनावों के निष्कर्ष पर एक नजर डालते हैं।
थोड़े अंतर से सरकार बनाने जा रहा NDA
243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 122 है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA 125 सीट जीतने में कामयाब हुआ है। इसमें भाजपा को 74, जदयू को 43, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को चार-चार सीटों पर कामयाबी मिली है। HAM और VIP चुनावों से पहले महागठबंधन छोड़कर NDA में शामिल हुई थीं। इन दोनों पार्टियों को आठ सीटें मिली हैं, जिसने NDA की सीटों का आंकड़ा बहुमत के पार पहुंचा दिया।
सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी राजद
राजद पहली बार अपने सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की गैर-मौजूदगी में चुनाव लड़ी थी। राजद ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। तेजस्वी महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी थे। 2019 लोकसभा चुनाव में राजद अपना खाता नहीं खोल सकी थी, लेकिन इस बार तेजस्वी ने पार्टी में ऐसी जान फूंकी वो 23.11 प्रतिशत वोटों के साथ सबसे ज्यादा वोट पाने वाली पार्टी बन गई।
बिहार में वरिष्ठ सहयोगी की भूमिका में आई भाजपा
केंद्र और अन्य कई राज्यों में अपने नेतृत्व में NDA सरकार चला रही भाजपा अब तक वरिष्ठ सहयोगी की भूमिका में नहीं थी, लेकिन इन चुनावों के बाद यह स्थिति बदल गई है। इस चुनाव में भाजपा को 74 सीटें मिली हैं और वह बिहार में NDA की वरिष्ठ सहयोगी की भूमिका में आ गई है। ऐसे में भले ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन जाए, लेकिन सरकार में भाजपा की हिस्सेदारी पहले की तुलना में अधिक होगी।
लोजपा ने बिगाड़ा जदयू का खेल
चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) भले ही एक सीट जीत सकी, लेकिन उसने जदयू का बड़ी हानि पहुंचाई है। एक विश्लेषण के अनुसार, लोजपा ने कम से कम 30 सीटों पर जदयू का खेल बिगाड़ा है। इसी का नतीजा रहा कि सत्ता में बैठी जदयू इस बार सीटों की संख्या के मामले में तीसरे नंबर पर पहुंच गई। अटकलें हैं कि भाजना ने इसी रणनीति के लिए चिराग को अकेले मैदान में उतारा था।
महागठबंधन की कमजोर कड़ी साबित हुई कांग्रेस
राजद के कई नेता मानते हैं कि तेजस्वी यादव का कांग्रेस को 70 सीटें देना का फैसला गलत साबित हुआ है। कांग्रेस को इन चुनावों में महज 20 सीटों पर जीत मिली है, जो उसके पिछले चुनावों के प्रदर्शन से भी खराब है, जब उसे 27 सीटें मिली थीं। जिन सीटों पर कांग्रेस भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में थी, वहां उसे हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में कांग्रेस महागठबंधन के लिए कमजोर कड़ी साबित हुई।
AIMIM ने किया उम्मीद से बढ़कर प्रदर्शन
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने इन चुनावों में पांच सीटें जीतकर सबको चौंका दिया है। कई विश्लेषक चुनावों से पहले AIMIM को वोट काटने वाली पार्टी बता रहे थे। चुनावों के बाद पार्टी ने कहा कि लोगों ने आलोचकों को करारा जवाब दिया है।
लेफ्ट पार्टियों ने दिलाया दमदार मौजूदगी का अहसास
महागठबंधन में शामिल लेफ्ट पार्टियों ने 29 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और उसे 16 पर जीत मिली। इन पार्टियों का यह प्रदर्शन कई विश्लेषकों की उम्मीद से बेहतर रहा है। लेफ्ट पार्टियों में सबसे बड़ी विजेता CPI-ML बनकर उभरी, जिसके हाथ 12 सीटें लगीं। वहीं CPI और CPI-M के हाथ दो-दो सीटें लगीं। इन चुनावों से पहले बिहार में CPI-ML को छोड़कर बाकी किसी भी लेफ्ट पार्टी का कोई विधायक नहीं था।