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    महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को जारी किया नोटिस

    महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को जारी किया नोटिस
    लेखन भारत शर्मा
    Feb 26, 2020, 07:01 pm 1 मिनट में पढ़ें
    महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को जारी किया नोटिस

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह याचिका मुफ्ती की बेटी इल्तिजा ने दायर की थी। कोर्ट ने इल्तिजा को भी किसी अन्य अदालत में हिरासत के खिलाफ याचिका दायर नहीं करने का हलफनामा देने को कहा है।

    18 मार्च को होगी अगली सुनवाई

    आपको बता दें कि इल्तिजा ने अपनी याचिका में अपनी मां महबूबा मुफ्ती के खिलाफ 5 फरवरी को सरकार द्वारा PSA के तहत केस दायर करने के आदेश को चुनौती दी थी। मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी।

    इल्तिजा ने याचिका में दी थी यह दलील

    इल्तिजा ने अपनी याचिका में कहा था कि यह नजरबंदी जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) की द्वेषपूर्वक तैयार की रिपोर्ट के आधार पर है। इस रिपोर्ट में केवल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) प्रमुख की टिप्पणियों का हवाला दिया गया है, जबकि उन्होंने कभी भी किसी हिंसक गतिविधि में हिस्सा नहीं लिया था। रिपोर्ट में उनके द्वारा मुस्लिम समुदाय को भड़काने वाली टिप्पणियों का हवाला दिया गया है, जबकि उन बयानों से हिंसा भड़क ही नहीं सकती है।

    अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद से ही नजरबंद है मुफ्ती

    आपको बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से गत 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था। उसके बाद से ही पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और कई अलगावदी नेताओं को हिरासत में रखा गया है। हालांकि प्रशासन की ओर से अब तक करीब 20 नेताओं को छोड़ दिया गया है, लेकिन उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती आदि की नजरबंदी अभी तक बरकरार है। इन नेताओं पर PSA के तहत केस दर्ज किया गया था।

    उमर अब्दुल्ला की बहन ने भी दायर की थी याचिका

    आपको बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्‍दुल्‍ला पायलट ने भी गत 10 फरवरी को ऐसी ही एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर PSA के तहत उनकी नजरबंदी को चुनौती दी थी। उस दौरान भी जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी कर 2 मार्च तक जवाब देने का आदेश दिया था। सारा ने अपनी याचिका में अपने भाई पर लगाए गए PSA को गैरकानूनी बताया था।

    शक के आधार पर हिरासत में ले सकती है सरकार

    PSA एक ऐसा कानून है, जिसमें यदि सरकार को शक होता है कि कोई भी व्यक्ति जन सुरक्षा या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं तो उसे बिना किसी अपराध के हिरासत में लिया जा सकता है। PSA को 8 अप्रैल, 1978 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल की मंजूरी मिली थी। यह कानून शेख अब्दुल्ला सरकार लकड़ी तस्करों पर लगाम कसने के लिए लाई थी। कानून के तहत बिना ट्रायल के 2 साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

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