जानिए क्या है जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाली धारा 35A और इससे जुड़ा पूरा विवाद
सुप्रीम कोर्ट 26 से 28 फरवरी के बीच जम्मू-कश्मीर विधानसभा को विशेष अधिकार प्रदान करने वाले धारा 35A पर सुनवाई कर सकती है। कोर्ट में दायर याचिकाओं में 35A को असंवैधानिक बताते हुए इसे खारिज करने की अपील की गई है। आपने जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार प्रदान करने वाली धारा 370 के बारे में तो सुना होगा, लेकिन आपको धारा 35A के बारे में शायद ही पता हो। आइए आपको धारा 35A और इससे जुड़े विवाद की पूरी जानकारी देते हैं।
कैसे हुआ धारा 35A का जन्म?
संविधान की धारा 35A, धारा 370 से ही उपजी है। दरअसल, इसे 1954 में जवाहर लाल नेहरू सरकार की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने संविधान में शामिल किया था। इसके लिए संसद से मंजूरी नहीं ली गई थी और धारा 370(1)(d) में राष्ट्रपति को दिए गए विशेषाधिकार का प्रयोग किया गया था। इसकी नींव प्रधानमंत्री नेहरू और जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के 1952 दिल्ली समझौते के आधार पर रखी गई थी।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा को विशेषाधिकार देती है धारा 35A
जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को भारतीय नागरिकता के अधीन लाने के लिए नेहरू ने राज्य को धारा 35A के तहत कुछ विशेषाधिकार प्रदान किए थे। यह राज्य विधानसभा को स्थाई नागरिकता, अचल संपत्ति, सरकारी नौकरी और स्थायी निवास पर अपने हिसाब से नियम बनाने का विशेषाधिकार देती है। इसके बाद 1956 में बने जम्मू-कश्मीर के संविधान में इन अधिकारों को प्रयोग करते हुए बाहरी लोगों को राज्य का नागरिक बनने से रोकने के प्रावधान किए गए हैं।
नागरिकता और अचल संपत्ति को लेकर नियम
जम्मू-कश्मीर के संविधान के तहत राज्य का स्थायी नागरिक वही व्यक्ति है जो 14 मई, 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो, साथ ही जिसके पास यहां अचल संपत्ति हो। इसके तहत आजादी के वक्त जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तान जाने वाले प्रवासियों को भी राज्य का नागरिक माना गया है। नियमों के तहत राज्य से बाहर का कोई भी व्यक्ति यहां अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता।
महिलाओं से भेदभाव करती है धारा 35A
धारा 35A के तहत बने नियमों के अनुसार, अगर राज्य की कोई लड़की किसी बाहरी व्यक्ति से शादी करती है तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाएगी। जबकि अगर कोई लड़का किसी बाहरी लड़की से शादी करता है तो उसकी नागरिकता जारी रहेगी। हालांकि, अक्टूबर 2002 में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में ऐसी लड़कियों की नागरिकता जारी रखने का आदेश दिया था, लेकिन उनके बच्चों को राज्य की नागरिकता नहीं मिलेगी।
विरोधी बताते हैं धारा 35A को असंवैधानिक
धारा 35A के विरोधी इसे महिला विरोधी और असंवैधानिक बताते हैं। दिल्ली स्थित NGO 'वी द सिटिजंस' ने अपनी याचिका में कहा है कि यह अंसवैधानिक है क्योंकि इसे संसद के सामने पेश नहीं किया गया। साथ ही धारा 35A के कारण आजादी के वक्त पाकिस्तान से आए शरणार्थी अभी तक राज्य के मौलिक अधिकारों तथा नागरिकता से वंचित हैं। वह लोकसभा चुनाव में तो वोट दे सकते हैं, लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में वोट नहीं दे सकते।
भाजपा करती रही है धारा 35A विरोध
केंद्र शासित भारतीय जनता पार्टी धारा 35A का यह कह कर विरोध करती रही है कि यह अलगाववाद की भावना को बढ़ावा और एक भारत की सोच को चुनौती देती है। हालांकि, भाजपा की केंद्र स्थित सरकार ने 14 मई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि यह एक बेहद संवेदनशील मामला है और समाधान के लिए चल रहे वार्ता के प्रयासों के बीच इस पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
जम्मू-कश्मीर के बड़े नेता धारा को हटाने के विरोध में
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का कहना है कि धारा 370 और धारा 35A भारत और जम्मू-कश्मीर के बीच संवैधानिक कड़ी है। उन्होंने कहा कि अगर इसे हटाया जाता है तो इसके बाद कश्मीर में जो हो, उसके लिए कश्मीरियों को दोष नहीं दिया जाना चाहिए। वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला का कहना है कि अगर इसे हटाया गया तो राज्य के हालात अरुणाचल प्रदेश से भी ज्यादा खराब हो जाएंगे।